इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मानव गरिमा और सम्मान की रक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने इंटरव्यू के दौरान दिव्यांग से साइकिल चलवाए जाने के मामले में 5 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया।
प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मानव गरिमा और सम्मान की रक्षा को लेकर एक महत्वपूर्ण फैसला दिया है। कोर्ट ने सरकारी डिग्री कॉलेज में लाइब्रेरी चपरासी पद के इंटरव्यू के लिए दिव्यांग से साइकिल चलवाने के कृत्य को गंभीरता से लिया। इसी के साथ कहा कि अधिकारियों के इस रवैये से याची के सम्मान को ठेस पहुंची है। मामले में कोर्ट ने दिव्यांग प्रदीप गुप्ता को 5 लाख का मुआवजा देने का आदेश दिया है।
कोर्ट ने कहा- अधिकारियों ने पहुंचाई दिव्यांग के सम्मान को ठेस
मामले को लेकर जस्टिस एसडी सिंह की सिंगल बेंच के द्वारा कहा गया कि सरकारी अधिकारियों ने दिव्यांग के सम्मान को ठेस पहुंचाई। वह सभी उसके अधिकारों की रक्षा करने में असफल रहे। कोर्ट ने अधिकारियों के इस कृत्य को लेकर याची को 5 लाख का मुआवजा 3 माह के भीतर उसके खाते में भेजने का आदेश दिया। जस्टिस एसडी सिंह की सिंगर बेंच ने कहा कि याचिकाकर्ता को यह बताने के लिए मुआवजे की राशि दी जा रही है कि राज्य को अपने अपने नागरिकों और उनकी दुर्दशा को सुनने और समझने में समय तो लग सकता है लेकिन न तो वह बहरा है और न ही वह ह्रदयविहीन। उन्होंने कहा कि नागरिक राज्य में ह्रदय की तरह से काम करता है। जब तक की ह्रदय स्वतंत्र रूप से नहीं धड़कता तब तक जीवन फल-फूल नहीं सकता है।
विज्ञापन में नहीं था साइकिल चलाने का जिक्र
गौरतलब है कि ये मामला उस दौरान सामने आया जब सहारनपुर के प्रदीप कुमार गुप्ता ने राजकीय डिग्री कॉलेज देवबंद सहारनपुर में लाइब्रेरी चपरासी के पद पर आवेदन किया। इस पद के लिए पांचवी पास और साइकिल चलाने की योग्यता मांगी गई थी। याची ने बताया कि साक्षात्कार प्रिसिंपल के द्वारा लिया गया। उन्होंने हाईस्कूल पास की योग्यता मांगी जो कि याची के पास नहीं थी। याची साइकिल नहीं चला सकता था लेकिन फिर भी उससे साइकिल चलाने को कहा गया जो कि गलत है। प्राप्त जानकारी के अनुसार विज्ञापन में भी इस बात का जिक्र नहीं था। याचिका पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने कहा कि हालांकि पद आरक्षित नहीं होने से याची नियुक्ति पर दावा नहीं कर सकता लेकिन हैरानी वाली बात है कि बिना पद चिन्हिंत किए और बिना आरक्षण के विज्ञापन जारी किया गया।