हाईकोर्ट ने 17 अति पिछड़ी जातियों को SC में शामिल करने पर लगाई रोक, कहा-केंद्र राज्य सरकार को बदलाव का अधिकार नहीं

सामाजिक कार्यकर्ता गोरख प्रसाद ने इस मामले में सरकार के फैसले का विरोध करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जिसपर सोमवार को जस्टिस सुधीर अग्रवाल व जस्टिस राजीव मिश्र की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई।

Asianet News Hindi | Published : Sep 17, 2019 9:07 AM IST

प्रयागराज (उत्तर प्रदेश). इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के योगी सरकार के फैसले पर रोक लगा दी है। साथ ही कोर्ट ने मामले में प्रमुख सचिव समाज कल्याण मनोज कुमार सिंह से हलफनामा मांगा है। कोर्ट ने कहा, केंद्र व राज्य सरकारों को बदलाव का अधिकार नहीं। सिर्फ संसद ही एससी/एसटी जाति में बदलाव कर सकती है। 

सामाजिक कार्यकर्ता गोरख प्रसाद ने इस मामले में सरकार के फैसले का विरोध करते हुए हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। जिसपर सोमवार को जस्टिस सुधीर अग्रवाल व जस्टिस राजीव मिश्र की डिवीजन बेंच में सुनवाई हुई। कोर्ट ने प्रदेश सरकार के फैसले को गलत मानते हुए कहा कि केंद्र व राज्य सरकार को इसका संवैधानिक अधिकार नहीं है। 

इन जातियों को एससी में शामिल करने का दिया था आदेश
बता दें, लोकसभा चुनाव के बाद योगी सरकार ने 24 जून 2019 को 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का आदेश जारी किया था। इनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, वाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआरा शामिल थे। 

सपा-बसपा भी कर चुकी हैं कोशिश
योगी सरकार से पहले सपा और बसपा सरकार ने भी 17 ओबीसी जातियों को एससी में शामिल करने का आदेश जारी किया था। साल 2005 में मुलायम सिंह ने इन जातियों को एससी में शामिल करने का आदेश किया, लेकिन हाईकोर्ट ने रोक लगा दी। उसके बाद साल 2007 में मायावती ने इसको लेकर तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को पत्र लिखा, लेकिन केंद्र सरकार ने ध्यान नहीं दिया। साल 2016 में अखिलेश यादव की कैबिनेट ने इन जातियों को एससी में शामिल करने के प्रस्ताव को मंजूरी दी। यही नहीं, केंद्र को नोटिफिकेशन भेज अधिसूचना भी जारी कर दी थी। लेकिन मामला केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय में जाकर रुक गया।

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