2 दिवसीय दौरे पर काशी पहुंचे अमित शाह, बोले-सावरकर न होते तो 1857 का विद्रोह इतिहास न बनता

केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दो दिवसीय दौरे पर गुरुवार को पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। यहां बीएचयू में 17 और 18 अक्टूबर को भारत अध्ययन केंद्र की तरफ से गुप्तवंशक वीर स्कंदगुप्त विक्रमादित्य का ऐतिहासिक पुन: स्मरण एवं भारत राष्ट्र का राजनीतिक भविष्य विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई है।

Asianet News Hindi | Published : Oct 17, 2019 11:09 AM IST

वाराणसी (Uttar Pradesh). केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह दो दिवसीय दौरे पर गुरुवार को पीएम मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी पहुंचे। यहां बीएचयू में 17 और 18 अक्टूबर को भारत अध्ययन केंद्र की तरफ से गुप्तवंशक वीर स्कंदगुप्त विक्रमादित्य का ऐतिहासिक पुन: स्मरण एवं भारत राष्ट्र का राजनीतिक भविष्य विषय पर संगोष्ठी आयोजित की गई है। जिसमें हिस्सा लेते हुए शाह ने कहा, वीर सावरकर अगर न होते तो 1857 का विद्रोह इतिहास नहीं बन पाता। 

इतिहास को नए दृष्टिकोण से लिखने की जरुरत
उन्होंने कहा, 1857 के विद्रोह को हमने इसे सिर्फ अंग्रेजों के दृष्टिकोण से देखा। मैं बता दूं वीर सावरकर ने ही 1857 के विद्रोह का नामकरण कर उसे विद्रोह को पहला स्वतंत्रता संग्राम बताया था। देश में 200 व्यक्तित्व हैं, 25 साम्राज्य हैं, जिन्होंने विद्या दी। अंग्रेजों के जाने के बाद इतिहासकारों के साथ नए दृष्टिकोण से लिखने की जरुरत है। नया जो लिखा जाएगा, वह लंबा चलेगा। 

चंद्रगुप्त के साथ हुआ अन्याय
शाह ने कहा, गुप्त साम्राज्य ने वैशाली और मगध साम्राज्य के बीच टकराव को खत्म कर एक अखंड भारत की रचना की थी। चंद्रगुप्त विक्रमादित्य इतिहास में बहुत फैमस हुए, लेकिन उनके साथ इतिहास में अन्याय भी हुआ। लेकिन उनकी जितनी प्रशंसा होनी चाहिए थी, वो नहीं हुई। भारतीय इतिहास को अंग्रेजों और वामपंथी नजर से न देखें, बल्कि भारतीय परिदृश्य से देखें और उसे दोबारा से लिखें। देश के महापुरुषों, सिख गुरुओं का भी इतिहास संक्षिप्त है। उसको भी संजोने की आवश्यकता है।

इन देशों से आए प्रबुद्धों ने संगोष्ठी में लिया हिस्सा
दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में अमेरिका, जापान, मंगोलिया, बैंकाक, श्रीलंका, वियतनाम व नेपाल से भी प्रबुद्धजन पहुंचे हैं। कार्यक्रम संयोजक प्रोफेसर राकेश कुमार उपाध्याय ने कहा कि, सैदपुर-गाजीपुर में गुप्त वंश के वीर स्कंदगुप्त विक्रमादित्य से जुड़े तमाम ऐतिहासिक तथ्य मौजूद हैं। लेकिन अभी तक इतिहास के पन्नों में दर्ज नहीं हैं।

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