रामजन्मभूमि के परकोटे में उकेरी जाएंगी देवी-देवताओं के मूर्तियां, चित्रकारों ने मंथन कर खींचा खाका

राममंदिर की सुरक्षा के लिए चहारदीवारी यानी की परकोटा का निर्माण होना है। इन दीवारों पर 33 कोटि के देवी-देवताओं की मूर्तियां बनाई जाएंगी। इसको लेकर मंथन भी जारी है। परकोटे में मिर्जापुर या जोधपुर के पत्थर लगाए जाने हैं। इस बात का अंतिम निर्णय ट्रस्ट की अगली बैठक में होगा।

अयोध्या: राममंदिर (Rammandir) की सुरक्षा के लिए ऊंची और बड़ी चहारदीवारी यानी परकोटा का निर्माण होना है। इन दीवारों पर 33 प्रकार (कोटि) के देवी -देवताओं की मूर्तियां बनाई जाएंगी। जिस पर श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट ने मंथन भी शुरू कर दिया है। इसके लिए पुणे व दिल्ली से बड़े चित्रकारों की टीम के साथ ट्रस्ट के पदाधिकारियों के बैठक की। चित्रकारों ने परिसर का भ्रमण कर पूरी योजना पर मंथन खाका खिंचा है। परकोटे में मिर्जापुर या जोधपुर से किसी एक जगह के पत्थर लगाए जानें हैं। इस बात का निर्णय राम जन्मभूमि ट्रस्ट कार्यकारिणी की अगली बैठक में लिया जाएगा। 

हिंदू मान्यता के अनुसार कौन-कौन हैं 33 प्रकार के देवी -देवता
हिंदू मान्यता के अनुसार 33 प्रकार (कोटि) के देवी- देवता होते है। जिसमें 8 वसु, 11 रुद्र, 12आदित्य,इंद्र और प्रजापति शामिल हैं। अगर इनकी व्यख्या करें तो ,8 वसुओं के नाम आप, ध्रुव ,सोम, धर, अनिल, प्रत्यूष और प्रभाष हैं। इसी तरह 11 रुद्रों के नाम मनु ,मन्यु, शिव,महत,ऋतुध्वज,महीनस,उम्रतेरस,काल,वामदेव, भव और धृत-ध्वज है। 12 आदित्य के नाम अंशुमान, अर्यमन, इंद्र, त्वष्टा, धातु, पर्जन्य,पूषा, भग, मित्र,वरूण,वैवस्तव और बिष्णु है।

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मंदिर की फर्श निर्माण के साथ बनाई जाने लगी रिटेनिंग वाल
श्री राम जन्मभूमि तीर्थ क्षेत्र ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय ने बताया सुपर स्ट्रक्चर , मंदिर की फर्श (प्लिंथ) के निर्माण का कार्य युद्ध स्तर पर किया जा रहा है। इसी के साथ रिटेनिंग वाल के निर्माण का कार्य भी शुरू कर दिया गया है। उन्होंने रिटेनिंग वॉल बनाने के पीछे का कारण बताते हुए जानकारी दी कि मंदिर परिसर से सरयू नदी करीब है। इस लिए भविष्य में कभी पानी का आक्रमण होगा तो मिट्टी का कटान होना भी स्वाभाविक है। इसलिए सरयू नदी के जल की सतह से रिटेनिंग वॉल की गहराई ली गई है। यह वाटर लेवल मई-जून के समय का लिया गया है। उन्होंने बताया रिटेनिंग वॉल की चौड़ाई 12 मीटर तय की गई है। अभी पश्चिम दिशा में इसका निर्माण कार्य शुरू कराया गया है। इसके बाद उत्तर दिशा में कार्य होगा। उन्होंने बताया इसरो के वैज्ञानिकों ने जो अध्ययन किया है। उसने यह बात सामने आई है कि पिछले 500 वर्षों में सरयू की धारा 5 बार अपनी दिशा बदल चुकी है। भविष्य में धारा अगर दिशा फिर बदली ती है तो मंदिर को क्षति न पहुंचे इसलिए उसकी तैयारी पहले से कर ली गई है।

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