बीएचयू ने खोजा पराली की समस्या का निदान, हवा नहीं होगी जहरीली और मिट्टी भी होगी उपजाऊ

पराली की समस्या से निपटने के लिए बीएचयू के डॉ. रामस्वरूप मीणा ने नया तरीका खोजा है। उनका दावा है कि इस तरीके के इस्तेमाल से पराली हवा को जहरीला भी नहीं बनाएगी और मिट्टी को उपजाऊ बनाने में भी सहायक होगी। 

अनुज तिवारी
वाराणसी:
ठंड में फसलों की कटाई और खिचड़ी-लोहिड़ी का त्योहार खुशियों के सूचक हैं। बीते वर्षों में फसलों की कटाई से निकलने वाली पराली बड़ी समस्या बनकर उभरी है। इससे निजाद के लिए बीएचयू के कृषि वैज्ञानिक ने एक तरीका खोजा है। उससे पराली हवा को जहरीला नहीं बनाए। वह मिट्टी को बेहद उपजाऊ, सोना बना देगी।

इस तकनीकि से नहीं होगा कोई प्रदूषण 
बीएचयू कृषि विज्ञान संस्थान में एग्रोनॉमी विभाग के डॉ. रामस्वरूप मीणा ने पराली को बायोचार (मिट्टी में मिलने वाला कार्बन) में बदलने की तकनीक पेटेंट कराई है। उन्होंने बताया कि पराली जलाकर मिट्टी में मिलाने से वायु प्रदूषण होता है। उसे नष्ट करने की दूसरी विधियां भी हैं मगर उनसे मिट्टी में मिलने वाला कार्बन दो से तीन साल में माइक्रोब्स के जरिए वातावरण में मिल जाता है। उससे हवा जहरीला ही होती है। डॉक्टर मीणा की तकनीकी में कोई प्रदूषण नहीं होता।  इससे तैयार कार्बन सैकड़ों साल तक मिट्टी में घुला रह सकता है। उन्होंने बताया कि पराली को खेत में ही बायोचार में बदला जा सकता है। इसके लिए एक गड्ढा खोदकर उसमें पराली सुलगाते हैं। फिर गड्ढे को ढंक देते हैं। दो पाइप से नियंत्रित मात्रा में ऑक्सीजन भीतर दी जाती है ताकि पराली सुलगती रहे। इसमें धुआं नहीं निकलता और पराली कोयले जैसे बायोचार में बदल जाती है।

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पराली की समस्या के समाधान के लिए बीएचयू और आईआईटी बीएचयू के वैज्ञानिकों नें और कई भी प्रयोग किए हैं। आईआईटी बीएचयू के डॉ. प्रीतम सिंह ने पराली से हाइड्रोजन तैयार करने की तकनीक ईजाद की, मिर्जापुर के सक्तेशगढ़ में इसका एक प्लांट भी लगाया है।

उत्तर भारत में है बड़ी चुनौती
उत्तर भारत व दिल्ली की आबोहवा के लिए पराली चुनौती है। किसान खेतों में ही पराली जला देते हैं। यह राख मिट्टी में मिला दी जाती है। ताकि मिट्टी में कार्बन का स्तर बना रहे। हालांकि पराली से निकलने वाला धुआं व जहरीली गैस पर्यावरण को बेहद प्रदूषित कर देती हैं। डॉ. रामस्वरूप मीणा के इस प्रयोग को भारत सरकार के सूचना एवं प्रौद्योगिकी (डीएसटी) विभाग ने तीन साल के प्रोजेक्ट के तौर पर स्वीकृत किया है। उन्होंने बताया कि इस दौरान वह मिट्टी में बायोचार और उर्वरकों की अलग-अलग मात्रा के फसल की सेहत पर पड़ने वाले असर की जांच कर रहे हैं। डॉ. मीणा को कृषि अनुसंधान के क्षेत्र में कई सम्मान मिल चुके हैं।

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