मायावती ने कहा कि हमने बसपा के मूवमेंट को ध्यान में रखते हुए एक आदिवासी समाज की योग्य और कर्मठ महिला को देश की राष्ट्रपति बनाने के लिए यह फैसला लिया है।
लखनऊ: बसपा की ओर से राष्ट्रपति चुनाव में द्रौपदी मुर्मू का समर्थन करने का फैसला लिया गया है। मायावती ने कहा कि हमारी पार्टी ने आदिवासी समाज को अपने मूवमेंट का खास हिस्सा मानते हुए द्रौपदी मुर्मू को राष्ट्रपति पद के लिए अपना समर्थन देने का निर्णय लिया है। हमने यह अति महत्वपूर्ण फैसला बीजेपी और एनडीए के पक्ष या फिर विपक्षी पार्टी के विरोध में नहीं लिया है। बल्कि हमने अपनी पार्टी के मूवमेंट को ध्यान में रखते हुए एक आदिवासी समाज की योग्य और कर्मठ महिला को देश की राष्ट्रपति बनाने के लिए यह फैसला लिया है।
'जातिवादी लोग नहीं छोड़ते हमें बदनाम करने का मौका'
बसपा सुप्रीमो मायावती ने कहा कि बसपा एकमात्र ऐसी पार्टी है जिसने दलितों के हितों में हमेशा ही फैसला लिया है। बसपा की कथनी और करनी में कोई भी अंतर नहीं है। यदि कोई विरोधी पार्टी और उनकी सरकार भी दलितों या अन्य दबे समाज के लोगों के हितों में कोई फैसला करती है तो हमारी पार्टी उसका समर्थन भी करती है। भले ही उसका कितना भी नुकसान क्यों न हो लेकिन बसपा उसकी परवाह नहीं करती है। हमारी पार्टी का संकल्प दूसरों की जुमलेबाजी से हटकर संविधान निर्माता डॉ. भीमराव आंबेडकर के हितों में कार्य करने का है। जातिवादी सोच वाले लोग बीएसपी को बदनाम करने में कोई मौका नहीं छोड़ते हैं। जो पार्टी केंद्र औऱ राज्यों की सत्ता में होती है वह अनेकों हथकंडे अपना बसपा के विधायकों को तोड़कर हमारे मूवमेंट को कमजोर करने में लगी रहती है। कांग्रेस और बीजेपी नहीं चाहती है संविधान बाबा साहेब की सही मंशा से देश में लागू हो। यूपी में बीएसपी के चार साल के शासनकाल में लोगों ने देख लिया है कि कैसे लोगों की जीवन में सुधार लाया जा सकता है। हालांकि दूसरी पार्टियों का कार्य मुंह में राम बगल में छूरी जैसा है। जनहित व जनकल्याण में बसपा का आयरन पॉवर दूसरों को कैसे पसंद आ सकता है।
'विपक्ष की ओर से बैठक में नहीं किया गया आमंत्रित'
मायावती ने इस दौरान कहा कि बंगाल की सीएम ममता बनर्जी और पूर्व केंद्रीय मंत्री शरद पवार ने बसपा को राष्ट्रपति उम्मीदवार को तय करने की लिए आयोजित बैठक में ही नहीं बुलाया। विपक्ष की ओर से इसको लेकर कोई सलाह ही बहुजन समाज पार्टी की ओर से नहीं ली गई। जिसके बाद बसपा ने यह कड़ा फैसला समुदाय के लोगों के हितों का ध्यान रखते हुए लिया है।
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