उत्तराखंड के जंगलों में लगी आग से वन्य जीवों के जीवन पर भारी संकट, वन विभाग की कोशिशें हो रही नाकाम

उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में गर्मी शुरू होने के साथ ही जंगल जमकर धधक रहे हैं। लगातार जंगल आग लगने से खाक में मिल रहे हैं। वन संपदा तो खाक हो ही रही है साथ ही वन्य जीवों के जीवन पर भी संकट में हैं।

पिथौरागढ़: उत्तराखंड के पहाड़ी इलाकों में गर्मी शुरू होने के साथ अक्सर एक समस्या देखने को मिलती है। गर्मी शुरू होते ही जंगल जमकर धधक रहे हैं। यहां के हालात ऐसे है कि अब तक कुमाऊं के नॉर्थ रेंज में 768 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गया है। जंगलों में लगी आग से कई दिक्कतों का सामना कराना पड़ रहा है। जंगलों में लगातार धधक रही आग से कई तरह के खतरे भी सामने आ रहे हैं। 

इस बार कुमाऊं के पहाड़ी इलाकों में जंगल धधक रहे हैं वैसा शायद ही कभी हुआ हो। वन विभाग की सारी कोशिशें नाकाम साबित होती हुई नजर आ रही है। कुमाऊं के चार पहाड़ी जिले अल्मोड़ा, बागेश्वर, चम्पावत और  पिथौरागढ़ में अब तक करीब 430 घटनाएं आग लगने की हो चुकी हैं। जिनमें आरक्षित वनों में 294 बार जबकि सिविल वनों में 136 बार आग लग चुकी है। इतना ही नहीं आग लगने से 21 लाख 89 हजार का नुकसान भी हो चुका है। 

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जंगलों में आग बुझाने के लिए तैनात है वनकर्मी 
लगातार धधक रही आग भले ही बारिश होने पर कुछ इलाकों में थम रही हो लेकिन पारा चढ़ने के साथ ही ये फिर विकराल रूप अख्तियार कर रही है। अप्रैल के महीने में रिकॉर्ड तोड़ चुकी फॉरेस्ट फायर की बढ़ती घटनाओं ने वन विभाग को कठघरे में खड़ा कर दिया है। नॉर्थ जोन के वन संरक्षक प्रवीन कुमार की मानें तो जंगली में लग रही आग को बुझाने के लिए वनकर्मी तैनात किए गए हैं। उन्होंने आगे कहा कि फायर स्टेशन संवेदनशील स्थानों पर बनाए गए है और साथ ही संविदा पर भी कर्मचारी आग बुझाने के लिए रखे गए हैं। 

प्राकृतिक जलस्रोतों को भी खासा नुकसान हो रहा
पहाड़ों के जंगलों में लगी आग से वन संपदा तो खाक हो ही रही है साथ ही वन्य जीवों के जीवन पर भी संकट में हैं। हालात यह है कि जंगली जानवर जिंदगी बचाने के लिए रिहायसी इलाकों की ओर कूच करने को मजबूर हो चुके है। लेकिन इसके अलावा कई जानवर जंगलों में जलकर राख हो गए। भू-वैज्ञानिक डॉ जेएस रावत की मानें तो लगातार बढ़ रही आग की घटनाओं से जहां पर्यावरण को खासा नुकसान हो रहा है। वहीं प्राकृतिक जलस्रोतों को भी इससे खासा नुकसान हो रही है। यही नहीं हिमालय की जंगलों की जैवविविधता के लिए ये आग किसी खतरे से कम नहीं है।

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