यूपी के पूर्व कैबिनेट मंत्री और हाथरस के कद्दावर नेता रामवीर उपाध्याय का निधन हो गया। बसपा सरकार में उत्तर प्रदेश में उनकी धाक बनी हुई थी। रामवीर उपाध्याय लगातार 5 बार विधानसभा चुनाव जीत कर विधायक बने थे। वर्तमान में वह भाजपा में थे।
आगरा: उत्तर प्रदेश के पूर्व कैबिनेट मंत्री और भाजपा नेता रामवीर उपाध्याय का शक्रवार देर रात आगरा में निधन हो गया। रामवीर उपाध्याय लंबे समय से बीमार चल रहे थे। उनके निधन की सूचना से परिजनों और उनके समर्थकों में शोक की लहर फैल गई है। रामवीर उपाध्याय लंबे समय से कैंसर से जूझ रहे थे। शुक्रवार देर रात आगरा स्थित आवास उनकी तबियत बिगड़ने लगी। जिसके बाद उन्हें आनन-फानन में आगरा के रेनबो अस्पताल ले जाया गया। जहां पर डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया।
आवास पर ही लगाते थे जनता दरबार
रामवीर उपाध्याय हाथरस के कद्दावर नेता के रूप में जाने जाते थे। मायावती की सरकार में भी वह कैबिनेट मंत्री थे। इसके बाद वह भाजपा में शामिल हो गए थे। रामवीर उपाध्याय की पत्नी सीमा उपाध्याय वर्तमान में जिला पंचायत हाथरस की अध्यक्ष हैं। वह अपने पीछे दो बेटियां और एक बेटा छोड़ गए हैं। लगातार 5 बार वह विधायक रहे हैं और 4 बार प्रदेश की बसपा सरकार में ऊर्जा, सहित कई अन्य विभागों के मंत्री भी रह चुके थे। उनके भाई रामेश्वर ब्लॉक प्रमुख हैं। उनके निधन से राजनीतिक जगत को एक बड़ा झटका लगा है। भाजपा नेता डीके तिवारी के अनुसार, वह अक्सर जनता की समस्याओं के निदान के लिए अपने आवास पर ही जनता दरबाार लगाया करते थे।
आगरा से था गहरा लगाव
बसपा की सरकार में पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय चिकित्सा, शिक्षा और परिवहन मंत्री भी संभाल चुके थे। रामवीर उपाध्याय का आगरा से गहरा जुड़ाव था। ब्राह्मण समाज उनकी अच्छी पकड़ थी। प्रदेश की बसपा सरकार के दौरान यूपी में उनका दबदबा रहता था। हाथरस जिले की तीनों विधानसभाओं से उन्होंने चुनाव लड़ा था और जीते भी थे। पूर्व कैबिनेट मंत्री रामवीर उपाध्याय हाथरस सदर सीट से लगातार 3 बार विधायक चुने गए थे। बसपा सरकार के दौरान उन्होंने अपनी पत्नी को भी आगरा की लोकसभा सीट से चुनाव में उतारा था। जहां पर उनके प्रतिद्वंदी रहे राजबब्बर को हराकर वह चुनाव जीती थीं।
ब्राह्मण समाज में थी अच्छी पकड़
बसपा के कद्दावर नेता माने जाने वाले रामवीर उपाध्याय का 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान पार्टी से मोहभंग हो गया था। जिसके बाद उन्होंने भाजपा का दामन दाम लिया था। जबकि उनकी पत्नी और भाई ने पहले ही भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके थे। ब्राह्मण समाज के साथ ही सर्वसमाज में उनकी अच्छी पकड़ थी। यही कारण था कि विधानसभा चुनाव में भाजपा ने उन्हें सादाबाद से चुनाव मैदान में उतारा था। लेकिन वहां पर उन्हें हार का सामना करना पड़ा था। उनके निधन की सूचना से उनके समर्थकों और राजनीतिक जगत में शोक की लगर फैल गई।
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