Forum of concerned Citizens के बैनर तले यूपी के पूर्व मुख्य सचिव योगेंद्र नारायण के साथ 151 रिटायर्ड आईएएस, रिटायर्ड जज और रिटायर्ड सैन्य अधिकारियों ने उत्तर प्रदेश सरकार को क्लीनचिट देते हुए कुछ पूर्व अधिकारियों पर सरकार को बदनाम करने का आरोप लगाया है। इन लोगों ने लिखित बयान जारी किया है।
लखनऊ। यूपी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाने वाले कुछ ब्यूरोक्रेट्स, पूर्व अधिकारियों के खिलाफ ‘फोरम ऑफ कंसर्न्ड सिटीजन’ ग्रुप से जुड़े 151 पूर्व ब्यूरोक्रेट्स, पूर्व जज और पूर्व सैन्य अधिकारियों ने मोर्चा खोल दिया है। यूपी के पूर्व मुख्य सचिव योगेंद्र नारायण सहित 151 पूर्व अधिकारियों ने कहा है कि राजनीति से प्रेरित होकर कुछ पूर्व अधिकारी पार्टी विशेष के लिए सरकार को बदनाम करने की साजिश रच रहे हैं। ये लोग लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई यूपी सरकार के प्रति जनता के मन में अविश्वास भरना चाह रहे हैं।
योगी सरकार ने अपराध को कम किया तो उसको गलत ढंग से पेश किया
‘फोरम ऑफ कंसर्न्ड सिटीजन’ ग्रुप का कहना है कि राजनीतिक एजेंडा के तहत काम करे कुछ पूर्व अधिकारी योगी आदित्यनाथ की सरकार को बदनाम कर रहे हैं और अपराध के कम हो रहे आंकड़ों को नहीं पेश कर रहे हैं जबकि एनसीआरबी की रिपोर्ट में कभी टॉप पर रहने वाले यूपी में क्राइम ग्राफ बिल्कुल कम हो चुका है।
इनका कहना था कि विरोधी आरोप लगा रहे हैं कि यूपी में एनकाउंटर्स के नाम पर क्रिमिनल्स को नहीं बल्कि दलित, पिछड़ों और मुसलमानों को मिटाया जा रहा है। यह बेहद ही अफसोसनाक बयान है जो हमारे आईएएस और आईपीएस अधिकारियों की कार्यप्रणाली पर सवाल खड़े कर रहे हैं। जबकि सच्चाई यह है कि 20 मार्च 2017 से 11 जुलाई 2021 तक यूपी में कुल 8367 पुलिस एनकाउंटर्स हुए हैं। 18025 क्रिमिनल्स घायल हुए, 3246 अरेस्ट हुए और 140 मारे गए।
एनकाउंटर में मारे गए 140 क्रिमिनल्स में 115 अपराधी इनामिया थे। इनमें से 9 पर तो डेढ़ लाख रुपये का इनाम घोषित था और 21 पर पचास हजार रुपये का इनाम था। यहां यह बता दें कि 140 मारे गए अपराधियों में 51 अपराधी अल्पसंख्यक वर्ग के थे। जबकि 13 पुलिस वाले भी इन एनकाउंटर्स में मारे गए और 1140 घायल हुए हैं।
पूर्व अधिकारियों के ग्रुप ने बताया कि राज्य सरकार की पुलिस द्वारा किए गए ये सभी एनकाउंटर्स को एनएचआरसी और पीयूसीएल की गाइडलाइन के अनुसार मजिस्ट्रेटी जांच भी कराई जा चुकी है। इसमें सारे आरोप झूठे साबित हो चुके हैं क्योंकि उन लोगों ने पॉलिटिकल एजेंडा के लिए यह झूठ फैलाया था।
सिद्धिकी कप्पन की गिरफ्तारी भी जायज
ग्रुप ने बताया कि केरल के पत्रकार सिद्दीकी कप्पन को मथुरा जिला से गिरफ्तार किया गया था। वह हाथरस जा रहे थे। यह पुलिस व मजिस्ट्रेट के स्तर का मामला है कि कहीं अस्थिर कानून और व्यवस्था की स्थिति को देखते हुए कोई जबरिया जाने वाला हो तो उसे अरेस्ट किया जा सके। कप्पन कथित तौर पर रेडिकल पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (पीएफआई) के सक्रिय सदस्य हैं और उन्हें देश के कानून के अनुसार न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया था, और सक्षम अदालतों द्वारा योग्यता के आधार पर उन्हें जमानत देने से इनकार कर दिया गया था।
सीएए विरोध में तोड़फोड़ करना शांतिपूर्ण नहीं होता
पूर्व मुख्य सचिव योगेंद्र नारायण सहित 151 पूर्व अधिकारियों-न्यायाधीशों के हस्ताक्षर से जारी बयान में कहा गया है कि सीएए के प्रदर्शन के दौरान तोड़फोड़ करना या सार्वजनिक संपत्ति का नुकसान करना किसी भी सूरत में शांतिपूर्ण नहीं कहा जा सकता। इनकी गिरफ्तारी व वसूली कानून के दायरे में है।
धर्मांतरण ब्रिटिश काल से अवैध रहा
ग्रुप ने विरोधी वक्तव्य पर कहा कि न्यायमूर्ति आदित्य नाथ मित्तल की अध्यक्षता में सातवीं राज्य विधि आयोग की 8वीं रिपोर्ट के व्यापक निष्कर्षों पर एक नजर डालते हुए धर्मांतरण पर टिप्पणी करनी चाहिए। उन्हें यह भी ध्यान रखना चाहिए था कि भारत की आजादी से पहले भी ब्रिटिश राज के दौरान कोटा, पटना, सरगुजा, उदयपुर और कालाहांडी सहित रियासतों ने धर्म परिवर्तन के संबंध में कानून पारित किए थे।
आजादी के बाद उड़ीसा, मध्य प्रदेश, अरुणाचल प्रदेश, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड आदि ने गैरकानूनी धर्मांतरण से संबंधित मामलों पर कानून बनाए थे। यह काननू गलत बयानी, बल, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन, कपटपूर्ण साधनों के आधार पर विवाह और गैर कानूनी धर्मांतरण को खारिज करता है। यह कानून विवाह में शामिल महिलाओं की गरिमा की रक्षा करता है जिससे धर्मांतरण होता है।
गलत ढंग से एनएसए को गोहत्या से पूर्व सेवकों ने जोड़ा
पूर्व अधिकारियों ने बयान में कहा है कि 1980 का राष्ट्रीय सुरक्षा अधिनियम पूरे भारत की सरकारों को किसी व्यक्ति को सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए किसी भी तरह से प्रतिकूल कार्य करने से रोकने के लिए उसे हिरासत में लेने का अधिकार देता है। विशेष सलाहकार बोर्ड और न्यायालय प्रक्रिया की निष्पक्षता और निष्पक्षता की देखरेख करते हैं। यह प्रचलन में है और सभी पूर्व सिविल सेवकों, जो अब इसकी शिकायत कर रहे हैं, के सेवा करियर के दौरान जहां भी वांछनीय हो, उचित उपयोग में लाया गया था। वर्ष 2020 के गलत आंकड़े देकर एनएसए को विशेष रूप से गोहत्या से जोड़ना अत्यधिक पूर्वाग्रह से ग्रसित है।
2020 में कुल 222 मामलों में एनएसए लगाया गया था, जिसमें से केवल 88 मामले गोहत्या से संबंधित थे, जो एक संवेदनशील राज्य में सार्वजनिक व्यवस्था के लिए एक गंभीर खतरा के रूप में एनएसए के दायरे में आते हैं। भारत के संविधान का अनुच्छेद 48 राज्य को गायों और बछड़ों और अन्य दुधारू और मसौदा मवेशियों के पशु वध पर प्रतिबंध लगाने के लिए प्रयास करने का निर्देश देता है।
उत्तर प्रदेश गोहत्या रोकथाम अधिनियम, 2020 को उत्तर प्रदेश गोहत्या निवारण अधिनियम को अधिक प्रभावी एवं परिणामोन्मुखी बनाकर संवैधानिक जनादेश को पूरा करने के लिए अधिनियमित किया गया है। इन 222 मामलों में से 118 जघन्य अपराधों से संबंधित हैं। केवल 19 मामले सीएए विरोध के दौरान सार्वजनिक संपत्ति के नुकसान से संबंधित हैं। इसलिए शिकायतकर्ता पूर्व सिविल सेवकों आदि के समूह द्वारा प्रयास किया गया आख्यान वास्तव में एक बहुत बड़ी विकृति है।
कोरोना महामारी दूसरी लहर
सरकार के पक्ष में बयान जारी करने वाले पूर्व अधिकारियों ने कहा कि उत्तर प्रदेश में कोविड-19 महामारी से निपटने के संबंध में पक्षपातपूर्ण आरोप लगाते हुए, पूर्व सिविल सेवकों ने अपने उत्तराधिकारी इन-सर्विस सिविल सेवकों को बिल्कुल नासमझ अंदाज में दोषी ठहराया है। वे इस तथ्य से चूक गए हैं कि कोविड -19 के दौरान, लगभग 40 लाख प्रवासी श्रमिकों को रिवर्स माइग्रेशन की अभूतपूर्व लहर में उनके मूल निवास स्थान पर भेज दिया गया था। वे पूरे भारत से आए थे, जिन्हें स्वास्थ्य देखभाल के अलावा भोजन और आश्रय की आवश्यकता थी।
यूपी कोरोना की दूसरी लहर को नियंत्रण में लाने में सक्षम था। उदाहरण के लिए 13 जुलाई को पॉजिटिव मामले केवल 96 आए थे। टेस्ट पॉजिटिविटी रेट गिरकर 0.9 प्रतिशत और रिकवरी रेट 98.6 प्रतिशत तक बढ़ गया है। सरकारी मेडिकल कॉलेजों/संस्थानों के लिए प्रति मिनट 120 मीट्रिक टन के बराबर 58010 लीटर प्रति मिनट ऑक्सीजन उत्पादन क्षमता के 64 संयंत्र स्वीकृत किए गए हैं।
राज्य ने पहले ही आरटीपीसीआर और एंटीजन परीक्षणों के साथ प्रति दिन 4 लाख से अधिक परीक्षण करने की क्षमता बढ़ा दी है। सिविल सेवक चौबीसों घंटे व्यवस्था बेहतर करे के लिए उपायों के लिए दिन रात एक किए हुए हैं।
इसके इतर गंगा नदी में तैरती लाशों की कुछ तस्वीरों को वायरल कर मेहनती और निडर कोरोना योद्धाओं को नुकसान पहुंचा रहे हैं। इस तरह के अनुपातहीन रूप से नकारात्मक आख्यान के निर्माण के बजाय, इन रोते हुए पूर्व सिविल सेवकों को जनशक्ति संसाधनों के पूरक के लिए संकट क्षेत्रों में बहुत अनुभवी स्वयंसेवकों के रूप में काम करने का विकल्प चुनना चाहिए था।
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