गोरखपुर: नालियों में बहता कीचड़ उगलता है सोना, 100 से ज्यादा परिवार आमदनी के लिए तेजाब से गलाकर कर रहे ये काम

यूपी के जिले गोरखपुर में नालियों में बहता कीचड़ से सोना निकालकर 100 से अधिक लोग गुजारा कर रहे है। सोने के छोटे-छोटे कण के मिलने के बाद उसको सोनार के पास बेच देते है और फिर उससे जो पैसा मिलता है उससे गुजारा करते है।

Asianet News Hindi | Published : Nov 30, 2022 7:40 AM IST

गोरखपुर: उत्तर प्रदेश के जिले गोरखपुर की नालियों में बहता कीचड़ भी सोना उगलता हैं। यह बात सुनकर हैरान तो हर कोई हो जाएंगा पर यही सच है। सिर्फ यहीं शहर नहीं बल्कि करीब सभी शहरों में एक ऐसी जगह जरूर होती है, जहां कीचड़ में सोना बहता है। शहर में रोजना कीचड़ से मिलने वाले सोने को बेचकर सौ से अधिक परिवार अपनी आजीविका चला रहे हैं। ऐसा भी नहीं है कि इस जगह को किसी ने देखा नहीं हैं बल्कि रोज लोग यहां से गुजरते रहते है। इसके अलावा बहुत से लोग ऐसे भी होंगे जो कीचड़ से सोना निकालने वालों को देखा भी होगा पर शायद कभी ध्यान नहीं दिया हो।

छोटे कण छिटककर कारीगर से होते है गायब
शहर के घंटाघर स्थित सोनारपट्टी में सोने के जेवरात की कारीगिरी करने वाले सैकड़ों दुकानें हैं। इन जगहों पर कारीगिरी करने के दौरान सोने का छोटा-मोटा कण अक्सर छिटककर गायब हो जाता है। इसके अलावा काम करते समय औजार में भी छोटे कण चिपक जाते हैं। जो बाद में धुलाई के दौरान एसिड में मिल जाते हैं। इसके बाद कारीगर भी इन कणों को वापस ढूंढने पर कभी ध्यान नहीं देते और एसिड फेंक देते हैं, जो बाहर की नाली में चला जाता है। सोने के इतने छोटे कण रहते है कि इसको दोबारा खोजना बहुत कठिन ही नहीं बल्कि सामान्य लोगों के लिए नामुमकिन होता है। तो शहर में सैकड़ों डोम जाति के लोग रोज सुबह इन दुकानों के बाहर के कीचड़ को इकट्ठा करते है, जिसको निहारी कहते हैं।

बंजारों की मेहनत को देखकर डोम जाति के लोग भी उतरे
डोम जाति के लोग इसके बाद इन कचड़ों को एक तसले में रखकर नाली के ही गंदे पानी से इसे चलाते हैं। घंटों तक कीचड़ को चलाते रहते हैं और फिर खराब कचड़े को ऊपर से निकालते हैं। काफी मेहनत के बाद अंत में बचा हुआ जो भी इकट्ठा कीचड़ा रहता है को उसे तेजाब और पारे से गला दिया जाता है। तब जाकर उसमें से नाम-मात्र का सोना निकलता है। उसके बाद यह लोग इस सोने को सोनार के पास बेच देते हैं और यह पैसे ही उनकी आमदनी का जरिया है। ऐसा पता चला है कि यह पेशा खासकर नागपुर और झांसी आदि जगहों से आए बंजारों का है पर एक से दो घंटे की मेहनत में दो-चार सौ रुपए की कमाई को देखकर इन दिनों डोम जाति के लोग भी काम पर उतर आए हैं।

श्मशान घाट किनारे नदी में डूबकर लोग निकालते है सोना
निहारी करने वाले लोगों का कहना है कि शहर में करीब सैकड़ों लोग यह काम करते हैं। इस काम की खास बात यह है कि इसमें ज्यादातर महिलाएं ही शामिल हैं। इतना ही नहीं इनमें से कई महिलाएं तो इस काम में ही अपनी पूरी जिंदगी भी बीता चुकी हैं। बीते करीब 45 साल से निहारी का काम करने वालों का अनुसार कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो श्मशान घाट स्थिति नदी में डुबकर सोना निकालते हैं। इस तरह के लोगों का कहना है कि दाह संस्कार के दौरान ज्यादातर महिलाओं के शव से जेवरात नहीं निकाले जाते हैं। दाह संस्कार के बाद जब नदी में इनका अस्ती विसर्जन होता है तो उसमें जेवरात आदि भी रहते हैं। पानी में अस्थियों की राख डालते ही बह जाती है लेकिन सोने के जेवरात पानी में डूब जाते हैं। बाद में पानी में निहारी करने वाले लोग काफी देर-देर तक नदी में डुबकी लगाकर सोना निकालते हैं।

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