वाराणसी की ज्ञानवापी में मिले 'कथित शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग नहीं होगी। शुक्रवार 14 अक्टूबर को वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने ये फैसला सुनाया। हिंदू पक्ष ने इसके लिए सर्वे कराने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया।
What is Carbon Dating: वाराणसी के ज्ञानवापी मामले (Gyanvapi Case) में कार्बन डेटिंग को लेकर फैसला आ गया है। अदालत ने कहा है कि ज्ञानवापी में मिले 'कथित शिवलिंग' की कार्बन डेटिंग नहीं होगी। बता दें कि इसके लिए हिंदू पक्ष ने सर्वे कराने की मांग की थी, जिसे कोर्ट ने खारिज कर दिया। शुक्रवार 14 अक्टूबर को वाराणसी के जिला जज डॉ. अजय कृष्ण विश्वेश की अदालत ने ये फैसला सुनाया।
आखिर क्या है कार्बन डेटिंग? कैसे इससे किसी चीज की उम्र का पता चलता है? आइए जानते हैं।
क्या होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन डेटिंग वो विधि है, जिसकी मदद से उस वस्तु की उम्र का अंदाजा लगाया जाता है जो काफी पुरानी है। कार्बन डेटिंग के जरिये वैज्ञानिक लकड़ी, चारकोल, बीज, बीजाणु और पराग, हड्डी, चमड़े, बाल, फर, सींग और रक्त अवशेष, पत्थर व मिट्टी से भी उसकी बेहद करीबी वास्तविक आयु का पता लगा सकते हैं। ऐसी हर वो चीज जिसमें कार्बनिक अवशेष होते हैं, जैसे शैल, कोरल, बर्तन से लेकर दीवार की चित्रकारी की उम्र भी कार्बन डेटिंग से पता चल जाती है।
कार्बन डेटिंग की विधि?
वायुमंडल में कार्बन के 3 आइसोटोप होते हैं। कार्बन 12, कार्बन 13 और कार्बन 14 मौजूद होते हैं। कार्बन डेटिंग के लिए कार्बन 14 की जरूरत होती है। इसमें कार्बन 12 और कार्बन 14 के बीच अनुपात निकाला जाता है। जब कोई जीव मर जाता है, तब इनका वातावरण से कार्बन का आदान-प्रदान भी बंद हो जाता है। इसलिए जब पौधे और जानवर मरते हैं, तो उनमें मौजूद कार्बन-12 से कार्बन-14 के अनुपात में बदलाव आने लगता है। इस बदलाव को मापने के बाद किसी जीव की अनुमानित उम्र का पता लगाया जाता है।
कैसे होती है कार्बन डेटिंग?
कार्बन-12 स्थिर होता है, इसकी मात्रा घटती नहीं है। वहीं कार्बन-14 रेडियोएक्टिव होता है और इसकी मात्रा घटने लगती है। कार्बन-14 लगभग 5,730 सालों में अपनी मात्रा का आधा रह जाता है। इसे हाफ-लाइफ कहते हैं। किसी विशेष स्थान पर एक चट्टान कितने समय से है, यह कार्बन डेटिंग की अप्रत्यक्ष विधियों का इस्तेमाल करके निर्धारित किया जा सकता है। अगर चट्टान के नीचे कार्बनिक पदार्थ, मृत पौधे या कीड़े फंसे हुए हों, तो वे इस बात का संकेत दे सकते हैं कि वो चट्टान, या कोई अन्य चीज उस जगह पर कब से है।
कब हुई कार्बन डेटिंग की खोज :
रेडियो कार्बन डेटिंग तकनीक का आविष्कार 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के विलियर्ड लिबी और उनके साथियों ने किया था। 1960 में उन्हें इस काम के लिए रसायन का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया। उन्होंने कार्बन डेटिंग के माध्यम से पहली बार लकड़ी की उम्र पता की थी। इसे एब्सोल्यूट डेटिंग भी कहते हैं। हालांकि, वैज्ञानिकों का मानना है कि वो इससे एक अनुमानित उम्र ही बता सकते हैं।
कार्बन डेटिंग को लेकर सवाल भी उठे :
पुरानी चीजों की आयु पता करने के लिए कार्बन डेटिंग विधि अपनाई जाती है। हालांकि, इसकी अपनी कुछ लिमिटेशन हैं। इसके जरिए टेराकोटा की मूर्ति की उम्र का अंदाजा नहीं लगाया जा सकता है। इससे किसी धातु की उम्र का पता भी नहीं लगाया जा सकता।
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