ज्ञानवापी मस्जिद विवाद मामले में आखिर क्या हैं दोनों पक्षों के अलग-अलग दावे

काशी की ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे शनिवार 14 मई को सुबह 8 बजे से शुरू हो गया है। एडवोकेट कमिश्नर अजय मिश्र और वादी-प्रतिवादी पक्ष के लोग ज्ञानवापी परिसर में मौजूद हैं। स्थानीय प्रशासन ने यहां करीब 500 मीटर तक आम लोगों की आवाजाही पर रोक लगा दी है।

Gyanvapi Case: वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) का सर्वे शुरू हो चुका है। कोर्ट के आदेश के बाद परिसर में एडवोकेट कमिश्नर, उनके सहायक, वादी-प्रतिवादी और दोनों पक्षों के वकील भी ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में सर्वे के लिए पहुंचे हैं। बता दें कि ज्ञानवापी मस्जिद को लेकर दोनों पक्षों के अलग-अलग दावे हैं। एक तरफ जहां पांचों महिलाएं अपने वकील के साथ पहुंची हैं तो वहीं दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष के वकील भी वहां मौजूद हैं। आइए जानते हैं काशी स्थित ज्ञानवापी विवाद को लेकर क्या हैं अलग-अलग पक्षों के दावे।  

क्या है हिंदू पक्ष का दावा : 
वाराणसी में काशी विश्वनाथ मंदिर परिसर में ही ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) बनी हुई है। हिंदू पक्ष का दावा है कि मस्जिद को प्राचीन विश्वेश्वर मंदिर तोड़कर उसके उपर बनाया गया है। इसको लेकर 1991 में वाराणसी की लोकल कोर्ट में एक मुकदमा दायर किया गया। मंदिर के पुजारियों के वंशज पंडित सोमनाथ व्यास समेत तीन लोगों ने कोर्ट में अर्जी लगाते हुए दावा किया कि औरंगजेब ने यहां मंदिर तोड़कर उस पर मस्जिद बनवाई थी। वादी पक्ष (हिंदू) के वकील विजय शंकर रस्तोगी के पास पूरे ज्ञानवापी परिसर का नक्शा मौजूद है, जिसमें मस्जिद के प्रवेश द्वार के बाद चारों तरफ देवी-देवताओं के मंदिरों का जिक्र है। बीच में विश्वेश्वर मंदिर है। परिसर में ही ज्ञानकूप और नंदी विराजमान हैं। 

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श्रृंगार गौरी मंदिर को लेकर 5 महिलाओं ने लगाई याचिका : 
अगस्त, 2021 में वाराणसी की 5 महिलाओं ने यहां की लोकल कोर्ट में मां श्रृंगार गौरी के मंदिर में पूजा-अर्चना की मांग करते हुए एक याचिका दायर की। उन्होंने मांग की की श्रृंगार गौरी मंदिर में अभी साल में एक बार ही पूजा होती है, लेकिन हम यहां रोज पूजा-पाठ करना चाहते हैं। कोर्ट ने इस याचिका को एक्सेप्ट करते हुए श्रृंगार गौरी मंदिर के बारे में और जानकारी के लिए एक कमीशन गठित किया। और ज्ञानवापी परिसर में वीडियोग्राफी कराकर सर्वे रिपोर्ट देने को कहा। 

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इस वजह से रुकी थी वीडियोग्राफी : 
वीडियोग्राफी का आदेश देने के बाद मुस्लिम पक्ष ने जमकर हंगामा किया और फिर कोर्ट पहुंच गया। मस्जिद का रखरखाव करने वाली 'अंजुमन इंतजामिया कमेटी' ने 1991 के प्लेसेस ऑफ वरशिप एक्ट का हवाला देते हुए दावा किया कि ज्ञानवापी मामले में कोई फैसला नहीं दिया जा सकता। इस पर कोर्ट ने वीडियोग्राफी रुकवा दी थी। हालांकि, बाद में 12 मई को वाराणसी कोर्ट ने ज्ञानवापी मस्जिद का सर्वे और वीडियोग्राफी कराने का आदेश दिया और शनिवार यानी 14 मई सुबह 8 बजे से यहां वीडियोग्राफी का काम शुरू हो गया। 

व्यास परिवार का अलग दावा : 
व्यास परिवार ज्ञानवापी मस्जिद (Gyanvapi Mosque) की जमीन के मालिकाना हक का दावा करता है। व्यास परिवार का कहना है कि जिस जमीन पर मस्जिद बनी है वो उनकी है। इलाहाबाद हाईकोर्ट से पहले आगरा हाईकोर्ट ने तय किया था कि ज्ञानवापी परिसर की जमीन का मालिकाना हक व्यास फैमिली का है। हालांकि, उस पर बनी मस्जिद मुसलमानों की है। व्यास फैमिली का ये भी कहना है कि मुस्लिम पक्ष के पास जमीन का कोई कागज नहीं है।

मुस्लिम पक्ष का दावा : 
दूसरी ओर, मुस्लिम पक्ष भी ये बात तो स्वीकार करता है कि व्यास फैमिली की जमीन पर ही मस्जिद बनी है, लेकिन खुद ज्ञानचंद व्यास ने ये जमीन मस्जिद को दी थी। रिपोर्ट्स के मुताबिक, 1991 में वाराणसी कोर्ट में याचिका दायर करते हुए ज्ञानवापी परिसर में पूजा करने की अनुमति देने के साथ ही मस्जिद को ढहाने की मांग की गई थी। बाद में सुरक्षा कारणों की वजह से 1993 में माता श्रृंगार गौरी की परिक्रमा को बंद कर दिया गया था। 

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