हाथरस: 21 साल बाद SC-ST एक्ट में चार राजपूत आरोपियों को मिला न्याय, वादी पक्ष खुद फंसा 

हाथरस में 21 साल बाद दलित उत्पीड़न के आरोप में चार निर्दोष राजपूतों को न्याय मिला है। कोर्ट के सामने वादी पक्ष ने स्वीकारा कि वकील के बहकावे में आकर उन्होंने झूठा मुकदमा दर्ज करवाया था। वादी पक्ष अब इस मामले में फंसता नजर आ रहा है। 

हाथरस: उत्तर प्रदेश के हाथरस जिले में 21 साल बाद चार निर्दोष लोगों को न्याय मिला है। कोर्ट ने चारों निर्दोषों को दलित उत्पीड़न के आरोप से मुक्त कर दिया है। हाथरस के थाना सिकंदरमऊ के तहत आने वाले गांव निजामपुर निवासी नेतराम ने 23 फरवरी 2001 में न्यायलय के आदेश पर चार लोगों के खिलाफ एससी एसटी एक्ट का मुकदमा दर्ज कराया था। नेतराम की तहरीर के आधार पर निजामपुर के रहने वाले अशोक सिंह, जुगेंद्र सिंह, बलवीर सिंह और भगवान सिंह पर 323 326 504 506 और 3 (1)(10) एससी एसटी एक्ट के तहत मामला दर्ज कर लिया था। 

21 साल बाद मिला न्याय
नेतराम ने चारों व्यक्तियों पर जमीनी विवाद को लेकर मारपीट का आरोप लगाया था। उन्होंनें अपनी तहरीर में बताया था कि चारों युवकों ने उनके साथ मारपीट करने के अलावा उनके खिलाफ जातिसूचक शब्दों का इस्तेमाल किया था। जिसके बाद कोर्ट ट्रायल में यह मामला फर्जी पाया गया था। आपसी रंजिश के चलते मुकदमा दर्ज करवाने की बात सामने आई थी। दलित उत्पीड़न के आरोप से मुक्त हुए पीड़ितों के परिवार ने बताया कि इस दौरान उनके परिवार की स्थिति काफी खराब हो गई थी। साथ ही मामला रफा-दफा करने के लिए उनसे मोटी रकम की मांग भी की गई थी।

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झूठे निकले सभी आरोप
कोर्ट में मामला पहुंचने के बाद गांव के स्थानीय निवासियों ने इस तरह की घटना के बारे में जानकारी होने से इंकार कर दिया। जिसके बाद खुद मुकदमा दर्ज करवाने वाले परिवार ने भी कोर्ट के समक्ष यह कुबूल किया कि इस तरह की कोई घटना नहीं हुई थी। नेतराम के पुत्र दिनेश कुमार ने कोर्ट में कहा कि मारपीट जैसी कोई भी घटना नहीं हुई थी। वकीलों के बहकावे में आकर उन्होंने चारों युवकों पर मुकदमा दर्ज करवाया था। मामले पर सुनवाई और सच सामने आने के बाद विशेष न्यायाधीश त्रिलोक पाल सिंह ने चारों निर्दोषों को दोषमुक्त होने का फैसला सुनाया। न्यायाधीश त्रिलोक पाल सिंह ने झूठा मुकदमा दर्ज करवाने के आरोप में वादी पक्ष पर अलग से मामला दर्ज करने का आदेश दिया है।

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