Give me trees ने HCL के साथ मिलकर नोएडा के सोरखा में बनाया Urban Forest, जानिए क्या है इसकी खासियत

नोएडा सेक्टर 115 के पास सोरखा गांव में देश की बड़ी टेक कंपनियों में से एक एचसीएल, Give me trees एवं नोएडा एडमिनिस्ट्रेशन ने एक साथ मिलकर एक ऐसा अर्बन फॉरेस्ट तैयार किया है जो लोगों को शुद्घ आबोहवा तो दे ही रहा है बल्कि एक पिकनिक स्पॉट के तौर पर भी मशहूर हो रहा है।

Asianet News Hindi | Published : Apr 20, 2022 9:37 PM IST / Updated: Apr 21 2022, 12:59 PM IST

नोएडा। एनसीआर में नोएडा में शहरी इलाके को विकसित करने के लिए कई पेड़ों को काटा गया। जहां बड़ी-बड़ी रिहायशी बिल्डिंग बनाई गई हैं। लेकिन इस पूरे प्रोसेस ने पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाया है। जिसे देखते हुए नोएडा सेक्टर 115 के पास सोरखा गांव में देश की बड़ी टेक कंपनियों में से एक एचसीएल एवं Give me trees ने नोएडा एडमिनिस्ट्रेशन के साथ मिलकर एक ऐसा अर्बन फॉरेस्ट तैयार किया है जो लोगों को शुद्घ आबोहवा तो दे ही रहा है बल्कि एक पिकनिक स्पॉट के तौर पर भी मशहूर हो रहा है। कुछ साल पहले तक विरान पड़ा यह इलाका 70,000 पेड़ों के साथ एक विशाल अर्बन फॉरेस्ट बन चुका है।

कैसे हुई शुरुआत
गौतमबुद्घ नगर जिले के तत्कालीन डीएम बीएन सिंह ने जानकारी देते हुए कहा कि सोरखा गांव न्यू ओखल इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट अथॉरिटी का हिस्सा था, जिसे बाद में एनसीआर में शामिल किया गया। उन दिनों एनसीआर में देहात से भारी संख्या में  माइग्रेशन हुआ। जिसकी वजह से लैंड माफिया जमीनों को अपने कब्जे में ले रहे थे।  इस बीच सबसे बड़ा चुनौती पूर्ण कार्य था Dense-Forestry के माध्यम से एक ऑक्सीजन फैक्ट्री का विकास। जिसमें गांव के लोगों को जोड़ा गया। एचसीएल की प्रोजेक्ट मेनेजर निधि से सम्पर्क कर इस प्रोजेक्ट के साथ जोड़ा गया। साथ ही Give me trees एवं पीपल बाबा को भी इस प्रोजेक्ट के साथ जोड़ा गया। जिसके बाद सोशल फॉरेस्ट्री के तहत एक बड़े भू-भाग में घने जंगल के विकास की प्रक्रिया शुरू हुई।

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क्या है इस जगह की खासियत
अब यहां पर ढेर सारे कीट-पतंगों, पशु-पक्षियों का बसेरा है। विदेशी पक्षी भी यहां आने लगे हैं। करीब 58 प्रकार के जीव इस शहरी वन की शोभा बढ़ा रहे हैं। सोरखा स्थित हरित उपवन सोरखा का जंगल अब पूरी तरह से आत्मनिर्भर बन चुका है। शहरी वनों के विकास के शुरूआती दौर में टैंकर से पानी की सप्लाई होती थी। पेड़ों के बड़े होने के बाद टैंकरों का आना जाना काफी कठिन है। ऐसे में पौधों की सिंचाई के लिए कृत्रिम तालाबों पर निर्भरता काफी बढ़ जाती है। पीपल बाबा बताते हैं कि जहां कहीं भी वो कृत्रिम जंगल बनानें की शुरुआत करते हैं वहां पर सबसे ढलान वाली जगह पर तालाब का निर्माण भी करते हैं। हर वर्ष बरसात के पानी के एकत्र होने से 5 से 6 सालों बाद ये कृत्रिम तालाब सालों साल पानी से भरे रहते है।

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