जातीय रैलियों पर 4 सप्ताह में देना होगा हाईकोर्ट को जवाब, लंबे समय के बाद हुई थी सुनवाई

जातीय रैलियों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जवाब मांगा है। कोर्ट ने चार सप्ताह के भीतर जवाब दाखिल करने को कहा है। इसके बाद दो सप्ताह में सभी पक्षकार प्रति उत्तर दाखिल करेंगे। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 18, 2023 4:45 AM IST

लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ ने जातीय रैलियों पर रोक के मामले में जवाब मांगा है। यह जवाब केंद्र व राज्य सरकार के साथ ही केंद्रीय निर्वाचन आयोग, कांग्रेस, भाजपा, सपा और बसपा से मांगा गया है। इसे चार सप्ताह के भीतर ही दाखिल करना होगा। इसके बाद दो सप्ताह में सभी पक्षकार अपने प्रति उत्तर दाखिल कर सकेंगे। 

2013 में याचिका हुई थी दाखिल 
यह आदेश न्यायमूर्ति रमेश सिन्हा और न्यायमूर्ति सुभाष विद्यार्थी की खंडपीठ के द्वारा दिया गया है। आदेश स्थानीय वकील मोतीलाल यादव की जनहित याचिका पर दिया गया जो कि 2013  में दाखिल की गई थी। याचिका में कहा गया था कि प्रदेश में जातियों पर आधारित होने वाली रैलियों की बाढ़ आ गई है। सियासी दलों के द्वारा ब्राह्मण रैली, क्षत्रिय रैली, वैश्य सम्मेलन आदि किया जा रहा है। 

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जाति के नाम पर जमकर हुई थी रैलियां और सम्मेलन 
मामले को लेकर याचिका दाखिल होने के बाद कोर्ट ने 11 जुलाई 2013 को एक आदेश जारी करते हुए पूरे प्रदेश में जातियों के आधार पर की जाने वाली रैलियों पर रोक लगा दी थी। इस मामले में सभी पक्षकारों को नोटिस भी जारी किया गया था। वहीं अब इस मामले की अगली सुनवाई छह सप्ताह बाद होगी। गौरतलब है कि 2013 में लोकसभा चुनाव से पहले बसपा ने प्रदेश में ब्राह्मण भाईचारा सम्मेलन किए थे। इसी के साथ सपा ने भी लखनऊ में ऐसे ही सम्मेलन किए थे। कई जगहों पर मुस्लिम सम्मेलन का आयोजन भी किया गया था। 

ऐसे सम्मेलनों को बताया गया संविधान की मंशा के खिलाफ
याचिका के माध्यम से बताया गया था कि जातीय रैलियों के आयोजन से सामाजिक एकता और समरसता को काफी नुकसान होता है। इस प्रकार की रैलियां या आयोजन समाज के लोगों के बीच में जहर घोलने का काम करते हैं। यह सब संविधान की मंशा के खिलाफ है। ज्ञात हो कि 9 साल से अधिक लंबित यह मामला जब 11 नवंबर को कोर्ट के सामने आया तो नोटिस के बावजूद भी पक्षकारों की ओर से कोई पेश नहीं हुआ। इसी के चलते इस मामले में कोर्ट ने नोटिस जारी करते हुए सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किए जाने का आदेश दिया। मामले में 16 जनवरी को हुई सुनवाई में केंद्रीय निर्वाचन आयोग के साथ ही केंद्र और राज्य सरकार के अधिवक्ता भी पेश हुए। 

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