मैनपुरी उपचुनाव को लेकर अखिलेश और शिवपाल यादव के बीच हुआ समझौता क्या आगे भी जारी रहेगा इसको लेकर तमाम संशय बरकरार हैं। यह भी सवाल उठ रहा हैं कि क्या आने वाले समय में प्रसपा का सपा में विलय होगा।
लखनऊ: समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के प्रमुख शिवपाल यादव मैनपुरी उपचुनाव से पहले एक बार फिर एक हो चुके हैं। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भी चाचा-भतीजे ने इसी तरह की एका दिखाई थी। ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है जब शिवपाल यादव और अखिलेश ने आपसी मतभेद भुलाकर एक-दूसरे से सहयोग की घोषणा की है। लेकिन पूर्व में यह सहयोग ज्यादा दिनों तक जारी नहीं रह सका। इस बार हुई नई सुलह को लेकर भी समर्थक अभी संशय में हैं।
कहा जा रहा है कि अखिलेश और शिवपाल के रिश्ते की मजबूती उपचुनाव के परिणाम पर निर्भर करेगी। अगर डिंपल रिकॉर्ड वोटों से चुनाव जीतती हैं तो यह संबंध टिकाऊ साबित होगा। वहीं अगर उपचुनाव में डिंपल की हार हो जाती है तो फिर से चाचा भतीजे के बीच दूरी देखी जाएगी। वहीं सपा नेता और पूर्व मंत्री राजेंद्र चौधरी ने मीडिया से इसको लेकर कहा कि चाचा-भतीजे का यह संबंध अटूट है। अब जब नेताजी (मुलायम सिंह यादव) नहीं है तो दोनों मिलकर उनका सपना पूरा करेंगे और उनके ही बताए रास्ते पर आगे भी चलेगा। हालांकि प्रसपा के सपा में विलय को लेकर राजेंद्र चौधरी ने कहा कि यह निर्णय वो लोग (अखिलेश-शिवपाल) तय करेंगे। लेकिन अब राजनीतिक रिश्ता स्थायी हो चुका है। हालांकि जानकारी मानते हैं कि यदि अखिलेश और शिवपाल का रिश्ता आगे जारी रहता है तो भी तमाम तरह की कठिनाईयों का सामना करना पड़ेगा।
लोकसभा और आगे के चुनाव में कैसे होगा सीट का बंटवारा
शिवपाल और अखिलेश के बीच सबसे ज्यादा मतभेद चुनाव में सीटों को बंटवारे को लेकर होता है। लोकसभा चुनाव 2024 के दौरान भी सीटों के बंटवारे में अखिलेश और शिवपाल की सहमति कैसे बन पाएगी इसको लेकर संशय बरकरार है। बीते दिनों मौलाना शहाबुद्दीन रजवी बरेलवी ने भी शिवपाल यादव को सलाह दी थी। उन्होंने भी कहा था कि शिवपाल यादव को डिंपल का समर्थन नहीं करना चाहिए क्योंकि लोकसभा चुनाव आने पर अखिलेश फिर उनकी (शिवपाल यादव) के प्रत्याशियों की लिस्ट कूड़ेदान में डाल देंगे।
मंच पर अभी भी लाल टोपी नहीं लगाते हैं शिवपाल यादव
रिश्तों में कड़वाहट दूर होने का दावा भले ही पार्टी के बड़े नेता कर रहे हों लेकिन यह भी सच है कि मंच पर अभी भी शिवपाल यादव लाल टोपी नहीं लगाते हैं। उपचुनाव को लेकर कई ऐसी सभाएं हुई जहां अखिलेश यादव और शिवपाल यादव साथ में नजर आए। मंच पर शिवपाल को भरपूर सम्मान भी मिला। लेकिन तमाम नेताओं की तरह उन्होंने लाल टोपी नहीं लगाई।
प्रसपा के सपा में विलय को लेकर नहीं हुई कोई बात
चाचा-भतीजे में भले ही कोई समझौता हुआ हो लेकिन यह बात अभी तक साफ नहीं हो पाई है कि क्या प्रसपा का सपा में विलय होगा? वहीं अगर दोनों ही नेताओं ने मौखिक तौर पर कोई समझौता किया है या बंटवारे को लेकर कोई रणनीति बनी है तो वह भी किसी के सामने नहीं आई है। ऐसे में कार्यकर्ताओं के बीच असमंजस बरकरार है।
क्या मंच का सम्मान बैठकों में भी रहेगा जारी
शिवपाल यादव को जो सम्मान मंच पर इन दिनों अखिलेश यादव के द्वारा दिया जा रहा है क्या वह उपचुनाव के बाद भी जारी रहेगा इसको लेकर भी संशय बरकरार है। ज्ञात हो कि यूपी विधानसभा चुनाव के बाद शिवपाल यादव ने ही सपा की बैठक में उन्हें न बुलाए जाने का आरोप लगाया था। ऐसे में अब क्या उपचुनाव के बाद आगे वह चीजे फिर से सामने नहीं आएंगी? वहीं शिवपाल पहले भी कई बार खुद से ज्यादा बाहरी व्यक्तियों को ज्यादा अहमियत देने का आरोप भी अखिलेश पर लगा चुके हैं। इन चीजों में क्या बदलाव देखने को मिलेगा?
क्या होगा सपा से बागी और शिवपाल के खास नेताओं का भविष्य
उन तमाम नेताओं के भविष्य को लेकर भी कोई बात अभी फिलहाल सामने नहीं आ रही है जिन्होंने सपा से बगावत कर शिवपाल यादव का साथ दिया था। ऐसे कई नेता हैं जिन्होंने प्रसपा के गठन के बाद सपा से खुलेआम बगावत की थी। कई नेताओं ने तो सार्वजनिक तौर पर भी अखिलेश यादव को लेकर बयानबाजी की थी। आखिर मैनपुरी उपचुनाव के परिणामों के बाद यदि सपा-प्रसपा का समझौता यूं ही जारी रहता है या विलय की स्थिति बनती है तो उनका क्या होगा।