दहेज उत्पीड़न के मामलों पर इलाहाबाद HC का अहम फैसला, 'FIR दर्ज होने के बाद 2 माह तक नहीं होगी कोई गिरफ्तारी'

एक पारिवारिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे विवाद निपटाने के लिए पहले परिवार कल्याण समितियों के पास भेजा जाए और कूलिंग पीरियड के दौरान दो महीने तक किसी की गिरफ्तारी न हो। 

Hemendra Tripathi | Published : Jun 15, 2022 4:35 AM IST

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh) में लगातार पति पत्नी के बीच पारिवारिक विवाद से जुड़े अनेकों मामले सामने आते हैं। जिसमें पुलिस टीम मुकदमा दर्ज करने के साथ तत्काल गिरफ्तारी की कार्रवाई करती है। ऐसे ही एक पारिवारिक विवाद से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए मंगलवार को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ऐतिहासिक फैसला लिया है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि ऐसे विवाद निपटाने के लिए पहले परिवार कल्याण समितियों के पास भेजा जाए और कूलिंग पीरियड के दौरान दो महीने तक किसी की गिरफ्तारी न हो। 

प्रदेश सरकार के साथ जिला न्यायालयों को भेजी जाए आदेश की कॉपी
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि पारिवारिक विवादों को निस्तारित करने के लिए मामलों को पहले गठित होने वाली परिवार कल्याण समितियों के पास भेजा जाए। इसके साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि कूलिंग पीरियड यानि एफआईआर दर्ज होने के बाद दो महीने के समय के दौरान पुलिस टीम की ओर से किसी भी प्रकार की गिरफ्तारी नहीं की जाएगी। कोर्ट ने हाईकोर्ट के महानिबंधक को निर्देश दिया है कि वह कोर्ट के आदेश की कॉपी को उत्तर प्रदेश सरकार, मुख्य सचिव, प्रमुख सचिव कानून, जिला न्यायालयों को भेजेंगे। कोर्ट ने कहा कि जिससे परिवार कल्याण समितियां गठित होकर तीन महीने में काम शुरू कर दें। इसके साथ ही आपको बता दें कि यह आदेश जस्टिस राहुल चतुर्वेदी ने हापुड़ जिले के साहिब बंसल, मंजू बंसल और मुकेश बंसल की पुनर्विचार याचिका पर एक साथ निस्तारित करते हुए दिया है।

कोर्ट ने अधिवक्ताओं के दायित्वों को किया रेखांकित
कोर्ट ने हापुड़ की एक याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि मामले में वादी मुकदमा ने अधिवक्ता की ओर से एफआईआर की भाषा ऐसी लिखाई है कि उसे पढ़ने पर मन में घृणित भाव पैदा होता है। कोर्ट ने मामले में वादी मुकदमा की ओर से दर्ज कराई गई एफआईआर की निंदा करते हुए कहा कि प्रतिवादी की ओर से चित्रमय विवरण देने का प्रयास किया गया है। एफआईआर सूचना देने के लिए है ये अश्लील साहित्य नहीं है, जहां चित्रमय विवरण प्रस्तुत किया जाए।  कोर्ट ने मामले में सर्वोच्च न्यायालय के एक केस का हवाला देते हुए अधिवक्ताओं के दायित्व को भी रेखाकिंत किया। कोर्ट ने कहा कि वे बहुत बार मामले को बढ़ा-चढ़ाकर पेश करते हैं, जिसमें भाषा की मर्यादा को भी लांघ जाते हैं।

जानिए क्या था पूरा मामला
आपको बताते चलें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जिस मामले की सुनवाई करते हुए ये फैसला सुनाया वह मामला हापुड़ जिले के पिलखुआ थाने का है। शिवांगी बंसल ने अपने पति साहिब बंसल, सास मंजू बंसल, ससुर मुकेश बंसल, देवर चिराग बंसल और ननद शिप्रा जैन पर मारपीट करने, यौन उत्पीड़न और दहेज अधिनियम के तहत मामला दर्ज कराया था। मामले में जांच के दौरान आरोप बेबुनियाद पाए गए थे।  जिसमें सत्र न्यायालय ने फैसला सुनाया था। याचियों ने सत्र न्यायालय के फैसले के खिलाफ यह पुनर्विचार याचिका दाखिल की थी। कोर्ट ने सुनवाई कर याचिकाओं को खारिज कर दिया और मामले में तीन मुद्दों पर नए निर्देश जारी किए गए हैं।
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