सार
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यूपी के विभिन्न जिलों में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल को बड़ी राहत दी है। हाईकोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ चल रही विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी है। इन पुलिसकर्मियों ने अलग-अलग याचिकाएं दाखिल कर उनके विरुद्ध चल रही विभागीय कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी।
लखनऊ: उत्तर प्रदेश के संगम नगरी में स्थित इलाहाबाद हाईकोर्ट ने राज्य के विभिन्न जिलों में तैनात पुलिसकर्मियों के खिलाफ चल रही विभागीय कार्रवाई पर रोक लगा दी है। उत्तर प्रदेश के अलग-अगल के जिलों में तैनात पुलिस इंस्पेक्टर, सब इंस्पेक्टर, हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल के खिलाफ चल रही कार्रवाई पर रोक लग गई है। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने भ्रष्टाचार व अन्य आपराधिक मामलों को लेकर प्रदेश के अनेक पदों के विरुद्ध चल रही विभागीय कार्रवाई पर अग्रिम आदेशों तक रोक लगा दी है। कोर्ट ने प्रदेश सरकार व संबंधित जिलों के पुलिस अधिकारियों से 6 सप्ताह में जवाब मांगा है।
राज्य के इन शहरों में तैनात हैं पुलिसकर्मी
इलाहाबाद हाईकोर्ट में यह आदेश पुलिसकर्मियों द्वारा दाखिल अलग-अलग याचिकाओं पर जस्टिस राजीव जोशी और जस्टिस राजीव मिश्रा की अलग-अलग कोर्ट ने सुनवाई करते हुए पारित किया है। इन पुलिसकर्मियों ने अलग-2 याचिकाएं दाखिल कर उनके विरुद्ध चल रही विभागीय कार्रवाई को हाईकोर्ट में चुनौती दी थी। प्रदेश के विभिन्न जिलों में पुलिसकर्मियों पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम तथा अन्य अलग-अलग धाराओं में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज कराई गई थी। उस याचिका को दाखिल करने वाले इंस्पेक्टर, दरोगा, हेड कांस्टेबल व कांस्टेबल थे। राज्य के मेरठ, गाजियाबाद, मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, अलीगढ़, कानपुर नगर, बरेली व वाराणसी में तैनात हैं।
भ्रष्टाचार के आधार पर पुलिसकर्मियों के खिलाफ दी चार्जशीट
दरअसल अधिकारियों ने भ्रष्टाचार व अन्य आपराधिक मामलों के आधार पर इन सभी पुलिसकर्मियों के खिलाफ चार्जशीट दी और विभागीय कार्रवाई भी शुरू कर दी। याची की तरफ से सीनियर अधिवक्ता विजय गौतम का कहना है कि पुलिस अधिकारियों के खिलाफ उत्तर प्रदेश पुलिस अधीनस्थ श्रेणी के पुलिस अधिकारियों की (दंड एवं अपील) नियमावली 1991 के नियम 14 (1) के अंतर्गत कार्रवाई करते हुए जो आरोप पत्र दिए गए वो गलत है। साथ ही कहा गया कि विभागीय कार्रवाई पूर्व में दर्ज प्राथमिकी को आधार बनाकर की जा रही है और क्रिमिनल केस के आरोप और विभागीय कार्रवाई के आरोप एक समान हैं।
एक ही आरोप में चल रहीं आपराधिक और विभागीय कार्रवाई
इसके साथ साक्ष्य भी एक है। ऐसे में इस प्रकार की कार्रवाई सुप्रीम कोर्ट के कैप्टन एम पाल एंथोनी में दिए गए विधि के सिद्धांत के विरुद्ध है। याची के एडवोकेट विजय गौतम ने बताया कि जब आपराधिक और विभागीय दोनों कार्रवाई एक ही आरोपों को लेकर चल रही हों, तो विभागीय कार्रवाई को आपराधिक कार्रवाई के निस्तारण तक स्थगित रखा जाए। इसके अलावा याची की तरफ से कहा गया कि यूपी पुलिस रेगुलेशन को सुप्रीम कोर्ट ने वैधानिक माना है और स्पष्ट किया है कि इसका उल्लंघन करने से आदेश अवैध और अमान्य हो जाएंगे। बता दें कि इलाहाबाद हाईकोर्ट में याचिका दाखिल करने वाले इंस्पेक्टर, दरोगा, हेड कांस्टेबल और कांस्टेबल यूपी के मुजफ्फरनगर, मुरादाबाद, अलीगढ़, मेरठ, गाजियाबाद, कानपुर नगर, बरेली और वाराणसी में तैनात हैं।
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