इलाहाबाद हाईकोर्ट का कोविड-19 के मरीजों को लेकर अहम फैसला, राज्य सरकार को अनुग्रह राशि को लेकर दिया निर्देश

इलाहाबाद हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ताओं की रिट पर फैसला सुनाते हुए कहा की एक बार कोविड-19 के तौर पर भर्ती मरीज की मौत को किसी अन्य बीमारी से नहीं मानी जाएगी। फिर चाहे हृदय गति रुकने या किसी अन्य अंग की मृत्यु के कारण मृत्यु हुई हो। उसकी मौत कोविड-19 के कारण ही मानी जाएगी।

Asianet News Hindi | Published : Jul 31, 2022 2:46 AM IST / Updated: Jul 31 2022, 08:25 AM IST

प्रयागराज: उत्तर प्रदेश की संगम नगरी प्रयागराज में स्थिति इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसला सुनाया है। कोविड-19 के मरीजों को लेकर कोर्ट ने निर्णय सुनाते हुए कहा कि एक बार कोविड-19 के तौर पर मरीज के भर्ती हो जाने पर उसकी मौत की चाहे कोई भी वजह हो, लेकिन उसकी मौत अन्य बीमारी से नहीं मानी जाएगी।  फिर चाहे हृदय गति रुकने या किसी अन्य अंग की मृत्यु के कारण मृत्यु हुई हो। उसकी मौत कोविड-19 के कारण ही मानी जाएगी। कोर्ट ने यह फैसला याचिकाकर्ता कुसुम लता यादव और अन्य कई लोगों के द्वारा दायर रिट याचिकाओं को स्वीकारिते हुए जस्टिस एआर मसूदी और जस्टिस विक्रम डी चौहान की खंडपीठ ने यह आदेश दिया है।

अदालत ने याचिकाकर्ताओं की रिट पर सुनाया ये फैसला
हाईकोर्ट ने यूपी सरकार के अधिकारियों को निर्देश दिया है कि 30 दिन की अवधि के अंदर कोविड पीड़ितों के आश्रितों को अनुग्रह राशि का भुगतान जारी करें। अगर एक माह में राशि का भुगतान नहीं किया गया तो नौ प्रतिशत ब्याज सहित भुगतान करना होगा। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने यह फैसला देते हुए कहा कि हम पाते हैं कि कोविड-19 के कारण अस्पतालों में होने वाली मौतें पूरी तरह से प्रमाण की कसौटी पर खरी उतरती हैं। यह तर्क कि हृदय की विफलता या अन्यथा का उल्लेख करने वाली चिकित्सा रिपोर्ट को कोविड-19 के लिए जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता है। अदालत को इस कारण से प्रभावित नहीं करता है कि कोविड -19 एक संक्रमण है, जिसके परिणामस्वरूप किसी भी अंग को प्रभावित करने से व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है, चाहे वह फेफड़े हों या दिल आदि। 

याचिकाकर्ताओं ने कोविड-19 को लेकर कोर्ट ने दिए तर्क
वहीं पांच जुलाई के फैसले में कोर्ट ने निर्देश दिया है कि प्रत्येक याचिकाकर्ता जिनके दावों को यहां अनुमति दी गई है उसे 25000 रुपए का भुगतान किया जाए। याचिकाकर्ताओं ने एक जून 2021 के सरकारी आदेश को मुख्य रूप से इस आधार पर चुनौती दी थी कि वह अधिकतम सीमा प्रदान करता है। जो केवल 30 दिनों के अंदर मृत्यु होने पर मुआवजे के भुगतान को प्रतिबंधित करता है। इतना ही नहीं याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया है कि यह शासनादेश का उद्देश्य उस परिवार को मुआवजा देना है, जिसने कोविड के कारण पंचायत चुनाव के दौरान अपनी रोटी कमाने वालों को खो दिया। राज्य सरकार ने एक माह में राशि का भुगतान नहीं किया तो देना 9 प्रतिशत ब्याज देना होगा।

मुद्दों की जांच के लिए अधिकारियों को दिया जाए समय
इस दौरान कोर्ट ने निर्देश में यह भी तर्क दिया था कि राज्य के अधिकारियों ने स्वीकर किया कि याचिकाकर्ता पति की मृत्यु कोविड के कारण हुई थी, लेकिन भुगतान केवल खंड 12 में निहित सीमा के कारण किया जा रहा है, जो केवल 30 दिनों के अंदर मृत्यु होने पर मुआवजे के भुगतान को प्रतिबंधित करता है। साथ ही यह प्रस्तुत किया गया था कि मृत्यु को 30 दिनों तक सीमित रखने का कोई उचित कारण नहीं था। यह कहा गया कि ऐसा देखा गया है कि व्यक्तियों की मृत्यु 30 दिनों के बाद भी होती है। यह तर्क दिया गया है कि ऐसे मुद्दों की जांच करने के लिए सक्षम प्राधिकारी को विवेकाधिकार दिया जाना चाहिए और 30 दिनों की सीमा पूरी तरह से तर्कहीन लगती है।

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