
हमीरपुर: उत्तर प्रदेश में हमीरपुर जिले में एक ऐसा गांव है जहां पर दीपावली के दिन दशहरा मनाया जाता है और रावण का पुतला दहन किया जाता है। बताया जाता है कि यह परंपरा पिछले सौ सालों से चली आ रही है। शुरूआत में यह कार्यक्रम काफी छोटे स्तर पर होता था। लेकिन समय बदलने के साथ ही कई दशकों से चली आ रही इस परंपरा को अनोखे और भव्य स्तर पर मनाया जाने लगा है। हमीरपुर जिले से 88 किमी दूर राठ में लगभग 100 सालों से दिवाली के दिन रावण का पुतला जलाकर ही दिये जलाने की परंपरा चली आ रही है। यूं तो रावण के पुतले का दहन दशहरा में होता है मगर यहां की परंपरा कुछ अलग ही है।
रामलीला का किया जाता है आयोजन
स्थानीय लोग बताते हैं कि सौ वर्ष पहले जब रामलीला की शुरूआत हुई तो उस स्थान पर बरसात का पानी भरा रहता था। जब तक पानी सूखता तब तक दशहरा निकल चुका होता था। इसलिए दीपावली के दिन दशहरा मनाने की परंपरा की शुरूआत हो गई। भगवान श्री राम और रावण के बीच युद्ध और 20 फीट ऊंचे रावण के पुतले के दहन के समय होती आतिशबाजी विशेष आकर्षण का केंद्र रहती है। दीपावली के दिन रामलीला मैदान में राम और रावण के बीच मनोरम एवं रोमांचित करने वाले युद्ध का मंचन किया जाता है। बता दें कि उस दौर में हिंदू और मुस्लिम समाज के कलाकारों ने दीपावली के दिन रावण दहन कर इस अनोखी परंपरा को शुरू किया था।
लोहे के फ्रेम में बनाया जाता है रावण का पुतला
इस दौरान होने वाली रामलीला का समापन भी दशहरा के दिन होता है। रामलीला में भाग लेने वाले स्थानीय लोग ही होते हैं। आज भी रामलीला में हिंदू और मुस्लिम कलाकार भाग लेते हैं। ग्रामीणों ने बताया कि दीपावली के दिन रामलीला मैदान में एक घंटा राम और रावण के बीच में भीषण युद्ध होता है। इसके बाद फिर रावण के वध के बाद उसका पुतला दहन किया जाता है। लोगों ने बताया कि कई साल पहले रावण का पुतला बनाने के लिए लोहे का फ्रेम बनवाया गया था। यह फ्रेम पूरे साल गांव में ही लगा रहता है। हर वर्ष इसी लोहे के फ्रेम में पटाखे भरकर दीपावली के दिन रावण दहन किया जाता है। हर वर्ष रावण के पुतले का आकार घटता-बढ़ता रहता है।
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