काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण 13 दिसंबर को पीएम मोदी करेंगे। वह न केवल दर्शन-पूजन करेंगे बल्कि बाबा के भोग का प्रसाद भी ग्रहण करेंगे। काशी विश्वनाथ धाम का लोकार्पण रेवती नक्षत्र में शुभ मुहुर्त पर किया जा रहा है।
नई दिल्ली। काशी विश्वनाथ धाम परियोजना (Kashi Vishwanath dham Project) पर पीएम मोदी (PM Modi) की अलग छाप है। काशी विश्वनाथ कॉरिडोर (Kashi Vishwanath Corridor) के विकास के लिए पीएम मोदी की यात्रा एक नए भारत के निर्माण के उनके अद्वितीय दृष्टिकोण को दर्शाता है जो एक आधुनिक दृष्टिकोण वाला राष्ट्र, आध्यात्मिक पुन: जागरण के माध्यम से रखी गई नींव पर आत्मविश्वास से खड़ा है। यह पीएम के इनपुट रहे हैं जिन्होंने डिजाइन से लेकर आर्किटेक्चर और सुविधाओं से लेकर भूमि अधिग्रहण तक की पूरी प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया है। इसने यह सुनिश्चित किया है कि काशी विश्वनाथ अत्याधुनिक वास्तुकला और सुविधाओं को सुनिश्चित करते हुए बिना किसी मुकदमे के एक मॉडल परियोजना के रूप में उभरा है।
एक लुप्त हुई परंपरा को फिर स्थापित किया
काशी (Kashi, the holy city) में सदियों पुरानी परंपरा है कि लोग गंगा नदी (Ganga River) में स्नान करते हैं, पवित्र नदी से जल ले जाते हैं और मंदिर में गंगाजल चढ़ाते हैं। सदियों से आसपास के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर निर्माण और अतिक्रमण के कारण यह परंपरा लुप्त होती जा रही थी। बेरोकटोक निर्माण ने भी मंदिर तक पहुंचना और दर्शन करना भक्तों के लिए एक कठिन कार्य बना दिया। पीएम मोदी की लंबे समय से पुरानी परंपरा को बहाल करने की इच्छा थी। इसे प्राप्त करने के लिए, पीएम मोदी ने गंगा नदी को काशी विश्वनाथ मंदिर से जोड़ने के लिए काशी विश्वनाथ कॉरिडोर को मूर्तरूप देने की ठानी।
यहां आने वाले को न हो कोई असुविधा...
विश्वनाथ कॉरिडोर के बारे में पीएम मोदी चाहते थे कि यहां आने जाने वाले किसी तीर्थयात्री को परेशानी न हो न ही उसके आध्यात्मिक उत्साह में कोई कमी आए। हालांकि, तीर्थयात्रियों की सुविधाओं को ध्यान में रखने पर तमाम प्रकार की बाधाओं की आशंकाएं थी। लेकिन पीएम मोदी के विजन से मुकदमा फ्री प्रोजेक्ट की ओर काम सब बढ़े।
दरअसल, जब इस प्रोजेक्ट के बारे में सोचा जा रहा था तो एक आम धारणा थी कि इतनी घनी आबादी, तमाम प्रकार की असहमतियों की वजह से इस परियोजना को काफी विवाद और केस झेलने पड़ेंगे जोकि इसके पूरा होने में रोड़ा बन सकती है। सबसे बड़ी बाधा तो संपत्तियों का अधिग्रहण थी। हालांकि, पीएम मोदी ने अधिकारियों को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि निरंतर बातचीत के माध्यम से सभी को साथ लिया जाए। अधिकारियों को पीएम ने लचीला और धैर्यवान दृष्टिकोण अपनाने और सभी शिकायतों को हल करने के लिए समय देने के लिए कहा। सबका प्रयास के इस दृष्टिकोण के परिणामस्वरूप परियोजना मुकदमेबाजी मुक्त हो गई। लगभग 400 परिवारों के इस महादान से परियोजना के लिए भूमि उपलब्ध हुई।
प्रोजेक्ट की डिजाइन से लेकर काम पूरा होने तक मॉनिटरिंग
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की छाप पूरे प्रोजेक्ट पर देखने को मिल जाएगी। पीएम मोदी ने न केवल आर्किटेक्ट्स को शुरुआती ब्रीफिंग दी, बल्कि आर्किटेक्चरल डिजाइन के लिए लगातार इनपुट और अपना विजन भी दिया। प्रोजेक्ट का 3डी मॉडल के जरिए समीक्षा भी करते रहे। विस्तार पर उनका ध्यान क्षेत्र को विकलांगों के अनुकूल बनाने के उनके इनपुट में भी दिखाई देता है। परियोजना के डिजाइन के साथ-साथ, पीएम मोदी ने इसे पूरा कराने में भी सक्रिय भूमिका निभाई।
कोविड काल में वीडियो कांफ्रेंसिंग से की समीक्षा
पीएम मोदी ने वीडियो कांफ्रेंसिंग के माध्यम से कोविड काल में भी परियोजना की प्रगति की निगरानी की। कोविड के बावजूद, बाबा के आशीर्वाद से, पीएम के प्रयासों ने परियोजना को रिकॉर्ड समय में पूरा करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया। पीएम ने काशी की इस भावना को साबित किया जिसमें कहा जाता है कि “मुश्किल समय में भी काशी ने दिखा दिया है कि वो रुकती नहीं है, वो थकती नहीं है।”
काशी की आध्यात्मिक पहचान को नई दृष्टि मिली
पीएम मोदी का विजन यह भी सुनिश्चित करना था कि प्रस्तावित कॉरिडोर को बंद करने वाली संपत्तियों को हटाया जा रहा है, साथ ही मौजूदा विरासत संरचनाओं को भी संरक्षित किया जाए। पीएम की यह दूरदर्शिता तब काम आई जब इमारतों के विध्वंस के दौरान, श्री गंगेश्वर महादेव मंदिर, मनोकामेश्वर महादेव मंदिर, जौविनायक मंदिर, श्री कुंभ महादेव मंदिर आदि जैसे 40 से अधिक प्राचीन मंदिरों की खोज की गई, जो वर्षों से रास्ते में बहुमंजिला इमारतों में समाहित हो गए थे। ये कोई 'छोटा' मंदिर नहीं हैं; उनमें से प्रत्येक का एक इतिहास है जो कुछ सदियों की परंपरा को बताती है। फिर से खोजे गए ये मंदिर शहर की गौरवशाली विरासत को और समृद्ध करेंगे।
खोई हुई विरासत की यह पुनर्खोज प्रधान मंत्री की दृष्टि और खोई हुई विरासत को विदेशी भूमि से भी वापस लाकर सांस्कृतिक बहाली के अथक प्रयासों के अनुरूप है। यह हाल ही में कनाडा से मां अन्नपूर्णा देवी की दुर्लभ मूर्ति को वापस लाने और काशी विश्वनाथ मंदिर में स्थापित करने के उनके प्रयास के माध्यम से इसका प्रतीक था।
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