कागजों में मर चुका है लखीमपुर का ये परिवार, 5 भाई समेत खुद के जिंदा होने का सबूत दे रहा बुजुर्ग

यूपी के जिले लखीमपुर खीरी में एक परिवार कागजों में मर चुका है। 60 साल के बुजुर्ग खुद को और अपने पांच भाइयों को जिंदा साबित करने के लिए 7 साल से नगर पालिका, लेखपाल, प्रधान के चक्कर लगा रहे हैं लेकिन कागजों में वो जिंदा नहीं हो पा रहे हैं। 

लखीमपुर: उत्तर प्रदेश के जिले लखीमपुर खीरी में एक ऐसा परिवार है, जो कागजों में मर चुका है। छह भाई खुद को जिंदा साबित करने के लिए सात साल से सबूत ही दे रहे है। दरअसल शहर के मोहम्मदी के निवासी नत्थू राम के परिवार का है। फिलहाल नत्थू तो इस दुनिाय में नहीं हैं लेकिन उनके छह बेटे लाखों की संपत्ति के मालिक होने के बाद भी दर-दर भटक रहे हैं। नत्थूराम के बड़े बेटे महेंद्र का कहना है कि यह बात साल 1989 की है, जब दादा शोभा और उनके भाई मूला दोनों एक साथ रहते थे। परिवार आगे बढ़ा तो पिता नत्थू राम और चाचा शिवदयाल भी साथ-साथ रहने लगे। सभी का जीवन खेतीबाड़ी से चलता था। नत्थू राम का बेटा आगे कहता है कि वह साथ भाई है और उनके चाचा के भी चार बच्चे हैं। धीरे-धीरे सभी भाइयों की शादी हो गई। पिता के निधन के बाद शादी नहीं करने का प्रण ले  लिया और शादी नहीं की। अभी तक सब कुछ ठीक चल रहा था।

साल 2000 में चाचा ने भाई की मौत के बाद खेल दिया बड़ा दांव
मृतक नत्थू राम के बेटे महेंद्र आगे बताते है कि साल 2000 में एक दिन किसी काम के लिए चाचा शिवदयाल ने घर और जमीन के कागज मांगे। उनका कहना था कि नगरपालिका में कुछ अपडेट करवाना है। फिर दो दिन बाद वह घर के कागज वापस कर आए। इस दौरान हम लोगों को अंदाजा भी नहीं था कि हमारे साथ इतना बड़ा धोखा होने वाला है। समय के साथ चाचा और उनके लड़के छोटी-छोटी बात में विवाद करने लगे। फिर कुछ समय बाद दोनों अलग हो गए। महेंद्र कहता है कि वह अपने छह भाइयों के साथ रहने लगा। तब भी कई बार चाचा के द्वारा धमकी दी जाती कि जायदाद से बेदखल कर देंगे। कोई गड़बड़ी न हो इसलिए वह साल 2014 को अपने भाई राम सिंह के साथ नगरपालिका दफ्तर पहुंचा। वहां पर जमीन के कागज दिखाकर अपने नाम करने की बात कही तो कागज देखकर सामने बैठा अधिकारी बोला जमीन के मालिक को बुलाकर लाओ। तब हमने कहा कि जमीन के मालिक तो हम ही हैं, सभी भाइयों के नाम बताए। तब अधिकारी ने बताया कि आप लोग सभी कागजों में मर चुके है। इस जमीन का मालिक शिव दयाल हैं और तब जाकर पता चला कि चाचा ने पिता को मृत दिखाकर खुद उनका वारिस बन गए। इसी वजह से पिता की जमीन उनके नाम हो गई और वह सभी को मृत घोषित करवा दिए।

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परिवार नगर पालिका, लेखपाल समेत थाने के काट रहे है चक्कर
महेंद्र आगे कहता है कि सात साल पहले मेरे भाई नरेश की मौत हो गई थी। इसी वजह से नगर पालिका में नाम दर्ज करवाने के लिए पहुंचे थे पर वहां पता चला कि जमीन हमारे नाम नहीं है। चाचा शिवदयाल ने धोखे से सारी जमीन अपने नाम करवा ली है। उसके बाद चाचा के पास भी गए और उनके द्वारा की गई हरकत का विरोध किया। पर उन्होंने हमारे परिवार पर ही हमला कर दिया। इस काम में उनका साथ एक जमीन माफिया भी दे रहा है। चाचा से बात करने के बाद भी बात नहीं बनी तो वरासत के लिए लेखपाल के पास पहुंचे तो बात करने से पहले ही उसने पांच सौ रुपए मांगे। तब जेब में सिर्फ तीन सौ रुपए थे जो लेखपाल को दे दिए। उसके बाद फिर लेखपाल ने कहा कि दो चार दिन बाद आना। तीन दिन बाद दोबारा पहुंचा तो उसने बताया कि तुम्हारे नाम जमीन ही नहीं है तो वरासत में कैसे दर्ज होगी। उसने भी वापस भेज दिया और तब से लेकर आज तक नगर पालिका, लेखपाल, एसडीएम ऑफिस, ग्राम प्रधान और थाने के चक्कर काट रहे हैं। इसके बाद भी जमीन हमारे नाम नहीं हो पा रही है। चाचा के बच्चे अब जमीन पर काम भी नहीं करने देते हैं। इतना ही नहीं चाचा व उनके लड़कों ने खेत भू-माफिया को बेच दिया है।

SDM ने दिए जांच के निर्देश, फर्जी हस्ताक्षर करके जारी किए गए थे प्रपत्र
पीड़ित परिवार के महेंद्र ने यह भी बताया कि वह कम से कम चार बार सीएम विंडो पर भी शिकायत डाली है लेकिन कोई सुनता ही नहीं। साल 2016 में तो हमारा राशन कार्ड भी काट दिया गया। जिसकी वजह से गरीबों वाला राशन मिलना भी बंद हो गया। जब कागजों में सभी भाई मर चुके हैं तो उनके बच्चों का नाम भी आगे नहीं बढ़ पा रहा है। हर समाधान दिवस में जाता हूं। वो लोग कागज में नाम नहीं चढ़ा रहे हैं। हम जिंदा हैं पर कागज में मर चुके हैं। इस मामले को लेकर एसडीएम पंकज श्रीवास्तव का कहना है कि बाबा महेंद्र का मामला संज्ञान में आया है। फिलहाल अभी जांच की जा रही है। जांच में पता चला है कि पालिका अध्यक्ष और सभासद के नाम से फर्जी हस्ताक्षर से प्रपत्र जारी किया गया है। इस पत्र में कोई पत्रांक संख्या नहीं दी गई है। उन्होंने आगे कहा कि इससे कुछ गड़बड़ी लग रही है। नियमों के तहत अगर मरने वाले किसी व्यक्ति के वारिस का नाम छूट जाता है तो उसे तहसीलदार न्यायलय में केस करके जुड़वाया जा सकता है। इस वजह से महेंद्र को भी वहीं भेजा गया है।

मृतक किसान के घरवालों को ऑनलाइन दर्ज कराना होगा डेथ सर्टिफिकेट 
दूसरी ओर इस मामले में वर्तमान में नगर पालिका अध्यक्ष संदीप मेहरोत्रा का कहना है मृतक शोभा के परिवार का डिटेल हमारे हस्ताक्षर से जारी नहीं किया गया है। कैसे जारी हुआ है हमें जानकारी भी नहीं है। यह मसला सामने आया है, जिसकी जांच कराई जाएगी। वहीं सभासद रूबी के पति नासिर का कहना है मेरी पत्नी कम पढ़ी लिखी है। वह वरासत के बारे में कुछ नहीं जानती। तो हो सकता है उसने अंजाने में चाचा शिवदयाल के प्रार्थना पत्र पर हस्ताक्षर कर दिए हों। बता दें कि राजस्व नियमों के अनुसार अगर किसी व्यक्ति की मौत हो जात है तो उसके बेटों को प्रधान और क्षेत्रीय लेखपाल से लिखावकर राजस्व अभिलेख में दर्ज कराना होता था। उसमें स्पष्ट लिखना होता था कि मेरे पिता का देहांत हो गया है और अब परिवार में बेटे उनके वारिस हैं। उसके आधार पर ही वारिसों का नाम खतौनी में दर्ज कर दिया जाता था। उसके बाद इसी के आधार पर वरासत भी दर्ज होती है। हालांकि सरकार ने राजस्व अभिलेखों में संशोधन करते हुए उत्तर प्रदेश राजस्व अधिनियम नियमावली में नई व्यवस्था लागू की है। अब मृतक किसान के घरवालों को ऑनलाइन डेथ सर्टिफिकेट और वरिसों के नाम दर्ज कराने पड़ते हैं। उसके बाद लेखपाल वारिसों के आधार कार्ड और पुरानी खतौनी का लेखा जोखा चेक करता है। फिर उन सभी के आधार कार्ड वरासत में लगाए जाते हैं। उसके बाद मृतक किसान के वारिसों को राजस्व अभिलेख में पंजीकृत कर खातेदार बनाया जाता है।

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