भारतीय वायुसेना (Indian Airforce) में शुक्रवार को एक और जांबाज सिपाही (Soldier) शामिल हो गया। यह है स्वदेशी (Made in india) लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर। इसके जरिये एयरफोर्स पहाड़ों की ऊंची चोटियों पर बैठे दुश्मन को आसानी से टारगेट कर सकेगी।
झांसी। लंबे इंतजार के बाद शुक्रवार को देश को अपना पहला स्वदेशी लाइट कॉम्बैट हेलकॉप्टर (LCH) मिल गया। रानी लक्ष्मी बाई के जन्मदिवस (राष्ट्र रक्षा समर्पण पर्व)के मौके पर प्रधानमंत्री नरेंद्र (Narendra moldi) ने इसे इंडियन एयरफोर्स (Indian Airforce) को सौंपा। यह दुनिया का पहला ऐसा लड़ाकू हेलिकॉप्टर है, जो 16 हजार फीट की ऊंचाई पर जाकर दुश्मन के बंकर्स को तबाह कर सकता है। 15 साल की मेहनत के बाद हिंदुस्तान एयरोनॉटिकल लिमिटेड (HAL) ने इसे तैयार किया है। यह हेलिकॉप्टर अमेरिका के सबसे एडवांस अपाचे हेलिकॉप्टर से भी बेहतर है, क्योंकि यह हल्का होने के कारण कहीं भी टेक ऑफ और लैंडिंग कर सकता है। इसके अलावा यूएवी ड्रोन और इलेक्ट्रॉनिक वारफेयर सूट भी सेना की ताकत बढ़ाएंगे।
2006 में एचएएल ने की थी प्रोजेक्ट की घोषणा
हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड (HAL) ने हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टर (LCH) बनाने की घोषणा 2006 में की थी। 4 फरवरी 2010 को इसका पहला प्रोटोटाइप ने सफल उड़ान भरी। India Air force को HAL 65 और आर्मी को 114 हल्के लड़ाकू हेलिकॉप्टरों की आपूर्ति करेगा। दो इंजन वाले इस हेलिकॉप्टर का वजन 6 टन है। यह इकलौता लड़ाकू हेलिकॉप्टर है जो 16,400 फीट की ऊंचाई पर हथियारों और फ्यूल के साथ लैंड या टेक ऑफ कर सकता है।
चोटियों पर आसानी से मिशन को अंजाम देगा LCH
-16,400 फीट की ऊंचाई पर हथियारों और फ्यूल के साथ लैंडिंग और टेक ऑफ कर सकता है।
- दुनिया का इकलौता हेलिकॉप्टर जो दुनिया के सबसे ऊंचे युद्धक्षेत्र सियाचिन ग्लेशियर में उड़ान भरने में सक्षम।
- 50 डिग्री सेल्सियस तापमान और माइनस 50 डिग्री दोनों में ऑपरेट हो सकता है।
- हवा से हवा और हवा से जमीन में मार करने वाली मिसाइलों से लैस है यह हेलिकॉप्टर।
- 2006 में एचएएल ने हल्के लड़ाकू विमान बनाने की घोषणा की थी। यानी 15 साल की मेहनत लगी है इसपर।
- 20MM गन और 70MM रॉकेट से लैस इस हेलिकॉप्टर में एयर टु एयर मिसाइल भी है।
- 180 डिग्री पर खड़ा कर मिशन को अंजाम दिया जाता है। हवा में 360 डिग्री भी घूम सकता है।
- 150 करोड़ रुपए लागत है एक एचसीएल हेलिकॉप्टर की। वजन करीब 6 टन है।
इसलिए पड़ी जरूरत :
1999 में कारगिल युद्ध के दौरान भारत को ऐसे हेलिकॉप्टर की जरूरत महसूस हुई जो ऊंची चोटियों पर बैठे दुश्मन पर टारगेट कर सके। इसके बाद 2006 में HAL ने इस प्रोजेक्ट की घेषणा की। 15 साल की मेहनत के बाद यह तैयार हो पाया है। ये लाइट कॉम्बैट हेलिकॉप्टर अमेरिका के बेहद एडवांस अटैक हेलिकॉप्टर अपाचे से भी बहुत आगे है।
ड्रोन यूएवी (UAV) की खासियत
4,000 मीटर की ऊंचाई तक उड़ने में सक्षम।
15 किमी के दायरे में निगरानी कर सकते हैं।
इन्हें डीआरडीओ ने डिजाइन किया है।
जरूरत क्यों : पूर्वी लद्दाख LAC बेहद ऊंचाई वाले पहाड़ों का लंबा इलाका है। इन ड्रोन्स से पूर्वी लद्दाख से सटी 826 किमी लंबी एलएसी की मॉनीटरिंग की जाएगी।
इलेक्ट्रॉनिक वायफेयर सूट
मिसाइल हमलों के खिलाफ भारतीय नौसेना के जहाजों की रक्षा के लिए इसकी जरूरत थी। वाइडबैंड इलेक्ट्रॉनिक सपोर्ट मेजर्स (ESM) और इलेक्ट्रॉनिक काउंटर मेजर (ECM) के साथ इसे जोड़ा गया है। यह राडार की सटीक दिशा में मदद करता है। इसे स्वदेशी विमान वाहक पोत, आईएनएस विक्रांत (INS Vikrant) पर स्थापित किया जा रहा है।
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