मां और दादा के बीच परवरिश को लेकर फंसा नन्हा आरव, CWA के फैसले को बदलते हुए मुजफ्फरनगर कोर्ट ने दिया ये फैसला

यूपी के जिले मुजफ्फरनगर में सात साल का नन्हा आरव मां और दादा के बीच परवरिश को लेकर फंस गया है। बाल कल्याण समिति ने आरव की परवरिश उसके दादा के हाथों दी लेकिन जिला अदालत ने इसको बदलते हुए मासूम की कस्टडी उसके मां के हाथों दी है।

Asianet News Hindi | Published : Sep 2, 2022 5:34 AM IST

मुजफ्फरनगर: उत्तर प्रदेश के जिले मुजफ्फरनगर की एक अदालत ने बाल कल्याण समिति का फैसला पलट दिया है। दरअसल बाल कल्याण समिति ने सात साल के मासूम को उसकी मां से जुदा करने का निर्णय दिया लेकिन कोर्ट के आदेश के बाद नन्हा आरव अपनी मां की ममता की छांव में ही पलेगा। आईटीबीपी के जवान रहे आरव के पिता का डेढ़ साल पहले निधन हो गया था। जिसके बाद से आरव की परवरिश को लेकर उसकी मां और दादा के बीच विवाद चल रहा है। सात साल का मासूम आरव दोनों के बीच चल रहे विवाद में उलझा हुआ है।

जानिए आरव की बदकिस्मती की पूरी कहनी
जानकारी के अनुसार आरव के पिता सूरज कुमार पुत्र राजकुमार निवासी बिहारीपुर जिला बागपत आईटीबीपी में जवान थे लेकिन चार फरवरी 2021 को बीमारी के चलते उनका निधन हो गया। जिसके बाद से आरव की परेशानियां शुरू हो गई। पिता सूरज की मृत्यु के बाद आरव की मां प्रियांशी अपने बेटे को लेकर शाहपुर क्षेत्र के गांव ककाड़ा स्थित अपने पिता के घर आ गई थी। मासूम आरव अपने पिता को यादकर तब से मां प्रियांशी की आगोश में ही पल रहा है। तो वहीं दूसरी ओर मां प्रियांशी के पास रह रहे आरव की कस्टडी को लेकर दादा राजकुमार ने बाल कल्याण समिति मुजफ्फरनगर का दरवाजा खटखटाया था।

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CWA ने दादा राजकुमार को दी आरव की कस्टडी
आरव के दादा राजकुमार ने 19 मार्च 2021 को अपने आपको उसका संरक्षक बताते हुए कस्टडी की मांग की। बहू प्रियांशी के अधिवक्ता रामअवतार तायल ने बताया कि बाल कल्याण समिति ने इस मामले की सुनवाई करते हुए 13 जुलाई 2021 को एक पक्षीय फैसला देते हुए आरव की कस्टडी उसके दादा राजकुमार को सौंपने का आदेश जारी किया। उन्होंने आगे बताया कि बाल कल्याण समिति के दिए गए निर्णय के विरुद्ध आरव की मां ने जिला एवं सत्र न्यायालय का दरवाजा खटखटाया था। पहले तो कोर्ट में मामले के क्षेत्राधिकारी को लेकर बहस हुई। कोर्ट ने मुकदमा सुनने की अनुमति दी।

एडीजे प्रथम कोर्ट ने निरस्त किया CWA का फैसला
अदालत की अनुमति के बाद कोर्ट के सामने तर्क रखा कि बाल कल्याण समिति ने बालक आरव की ममता को नहीं समझा। समिति ने आरव को उसकी मां की ममता की छांव से दूर करने का फैसला दिया है। प्रियांशी के अधिवक्ता ने अदालत में कहा कि आरव महिला के भविष्य का सहारा है। दादा राजकुमार बीमार और वृद्ध हैं, उनके संरक्षण में आरव की सुरक्षित परवरिश संभव नहीं है। जिसके बाद कोर्ट ने बाल कल्याण समिति पर सवाल खड़ा किया कि उसे यह केस सुनने का अधिकार ही नहीं है। अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश प्रथम जय सिंह पुंडीर ने दोनों पक्षों की बहस सुनी और उसके बाद बाल कल्याण समिति के 13 जुलाई 2021 को दिए निर्णय को निरस्त करने का आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने निर्देश दिया कि बाल कल्याण समिति दोनों पक्षों को फिर से सुने।

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