परिवहन में सालों से नहीं मिली मृतक आश्रितों को नौकरी, जानिए क्यों हो रही विभाग को निजी हाथों में देने की चर्चा

यूपी के परिवहन विभाग निगम में चार सालों से किसी भी मृतक आश्रितों को नौकरी नहीं मिली है। इसके साथ ही विभाग को निजी हाथों में देने के लिए चर्चाएं भी हो रही है। नियुक्ति की मांग को लेकर यह सभी प्रदर्शन कर चुके हैं। 

Asianet News Hindi | Published : Dec 21, 2022 12:32 PM IST / Updated: Dec 21 2022, 06:07 PM IST

लखनऊ: यूपी परिवहन निगम को निजी हाथों में सौंपने को लेकर सुगबुगाहट चल रही है। हालांकि इसको लेकर कोई अधिकारिक सूचना अभी सामने नहीं आई है। इस बीच उन तमाम लोगों का हाल भी बेहाल है जो इस विभाग में नौकरी की आस में बैठे हैं। परिवहन विभाग में बस कंडक्टर और ड्राइवर के कई ऐसे बच्चे हैं, जिनके पिता की नौकरी के दौरान ही मौत हो गई। नियुक्ति की मांग को लेकर यह सभी प्रदर्शन कर चुके हैं। इतना ही नहीं परिवहन मंत्री दयाशंकर सिंह के साथ-साथ अधिकारियों से भी मिल चुके हैं लेकिन आश्वासन के अलावा अभी तक कुछ नहीं मिला है। 

भर्ती के बाद विभाग इकट्ठा करता रहा मृतक आश्रितों का डेटा
मृतक आश्रितों को नौकरी नहीं मिलने पर सुसाइड करने के लिए कई लोगों ने परिवहन विभाग के मंत्री और यूपी सरकार को जिम्मेदार भी ठहराया है। दरअसल मृत सरकारी सेवकों के आश्रितों की भर्ती नियमावली-1974 के अनुसार होती है। परिवहन विभाग ने पिछली बार 588 पदों पर भर्ती की गई थी और उसके बाद डेटा इकट्ठा करता रहा लेकिन किसी की नियुक्ति नहीं हुई। मृतक आश्रितों की कुल संख्या अब 815 हो गई है। जिसमें से ज्यादातर उन ड्राइवर और कंडक्टर के बच्चे हैं, जिनकी मौत एक्सीडेंट में हुई है। साल 2019 में मृतक आश्रित लोग उस समय के परिवहन मंत्री अशोक कटारिया के पास पहुंचे भी थे। उन्होंने विभाग को आदेश दिया कि सारा डेटा इकट्ठा करके सरकार के पास भेजा जाए।

आचार संहिता की वजह से नहीं हो पाया था इस मामले में फैसला
परिवहन विभाग ने आंकड़े भेजने में करीब दो साल लगा दिया और साल 2021 में सरकार के पास सभी मृतक आश्रितों का पूरा डेटा मौजूद था। इसको लेकर पांच जनवरी 2022 को कैबिनेट में नियुक्ति को लेकर फैसला होना था लेकिन आचार संहिता की वजह से फैसला नहीं हो पाया। उसके बाद यूपी कैबिनेट ने मृतक आश्रितों को 11 जुलाई के एक शासनादेश का हवाला देते हुए मृतक आश्रितों की भर्ती वाली फाइल विभाग को वापस कर दिया। इस वजह से तुरंत नियुक्ति किसी संभावना पर भी रोक लग गई। इस दौरान परिवहन मंत्री दयाशंकर ने कहा था कि हमने नियुक्ति के लिए प्रमुख सचिव और सीएम योगी से आग्रह किया लेकिन उस समय निरुतर हो गए। उसके बाद तर्क दिया कि परिवहन निगम घाटे में चल रहा है। विभाग घाटे में होगा तो नियुक्ति नहीं दे सकता है। 

दो दिन में परिवहन विभाग को हुआ था 11 करोड़ रुपए का फायदा
बता दें कि परिवहन विभाग पिछले पांच साल से लगातार फायदे में है। विभाग से ही प्राप्त आंकड़ों के अनुसार 2017-18 में 122.10 करोड़ का फायदा हुआ है। उसके बाद साल 2018-19 में 98 करोड़ का फायदा हुआ और फिर 2019-20 के सत्र में सबसे अधिक 142 करोड़ रुपए का फायदा हुआ। 15 और 16 अक्टूबर 2022 को यूपीएसएसएससी ने पेट की परीक्षा करवाई थी। इन्हीं दिनों में विभाग को 11 करोड़ का फायदा हुआ था। इस वजह से विभाग के घाटे में होने की बात बिल्कुल गलत नजर आ रही है। 

23 जोन में है परिवहन विभाग की 45 हजार करोड़ की संपत्ति
वहीं यूपी परिवहन विभाग के पास 23 जोन में 45 हजार करोड़ की संपत्ति है। गोरखपुर में 1900 करोड़ और वाराणसी में कुल 1600 करोड़ की संपत्ति है। लखनऊ में विभाग की कुल 8 हजार करोड़ की संपत्ति है। पिछले महीने विभाग के प्रमुख सचिव का कहना था कि रोडवेज की 75% सेवाएं अनुबंध पर होंगी, विभाग सिर्फ 25% सेवाओं को ही चलाएगा। ऐसे में इस बात की आशंका को और बल मिलता है कि रोडवेज को भी निजी हाथों में सौंपा जाएगा। गोरखपुर, प्रयागराज, आगरा, लखनऊ, कानपुर सहित 14 जिलों में 583 इलेक्ट्रिक बसें चल रही हैं। यह सभी पहले से ही निजी हाथों में हैं। सरकार ने इन्हें 315 करोड़ रुपए की सब्सिडी दी है। इसके अलावा यूपी सरकार का टारगेट है कि आने वाले दिनों में बसों की संख्या 700 से अधिक की जाए।

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