यूपी निकाय चुनाव टलने को लेकर कई वजह सामने आ रही है। ऐसा माना जा रहा है कि सरकार द्वारा आयोग बनाकर आरक्षण तय करने के साथ-साथ ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की वजह से चुनाव टल सकता है। हर बार निकाय चुनाव में स्थानीय निकाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
लखनऊ: इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ खंडपीठ के फैसले के बाद सरकार की ओर से पिछड़ों का आरक्षण तय करने के बाद ही यूपी निकाय चुनाव कराने का फैसला हो चुका है। इससे यह तो साफ हो गया कि अब इसमें समय लगेगा क्योंकि सरकार को आयोग का गठना करना होगा। फिर आयोग की निगरानी में ही अन्य पिछड़ा वर्ग को आरक्षण देने की प्रक्रिया अपनानी होगी। वहीं फरवरी में राज्य सरकार ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट करा रही है। उसके बाद फरवरी-मार्च में यूपी समेत विभिन्न बोर्डों की परिक्षाएं भी होनी है। इस वजह से माना जा रहा है कि सरकार के लिए अप्रैल या मई से पहले चुनाव कराना संभव नहीं है।
14 या 15 दिसंबर तक चुनाव आयोग को देना था कार्यक्रम
दरअसल 2017 में नगर निकाय चुनाव के लिए 27 अक्टूबर को अधिसूचना जारी की गई थी। साथ ही तीन चरणों में संपन्न हुए चुनाव की मतगणना एक दिसंबर को हुई थी। इसके अनुसार 2022 में भी समय पर चुनाव कराने के लिए सरकार को अक्टूबर में ही अधिसूचना जारी करनी थी लेकिन नगर विकास विभाग की तैयारियों की वजह से चुनाव प्रक्रिया देर से शुरू हुई। सीटों और वार्डों के आरक्षण दिसंबर में हुए। उसके बाद पांच दिसंबर को मेयर और अध्यक्ष की सीटों का प्रस्तावित आरक्षण जारी किया गया। विभाग यह मानकर चल रहा था कि 14 या 15 दिसंबर तक वह चुनाव आयोग को कार्यक्रम सौंप देगा लेकिन मामला हाईकोर्ट में फंस गया।
नगर विकास विभाग की ओर से चूक की रही कई वजह
नगर विकास विभाग के द्वारा रैपिड सर्वे से लेकर आरक्षण की अधिसूचना जारी करने को लेकर कई स्तरों पर चूक हुई। सूत्रों के अनुसार हर बार निकाय चुनाव में स्थानीय निकाय की महत्वपूर्ण भूमिका होती है लेकिन इस बार रैपिड सर्वे से लेकर आरक्षण तय करने तक की प्रक्रिया से निदेशालय को दूर रखा जो बड़ी चूक है। इसके अलावा इस काम में अनुभवी के स्थान पर नए अधिकारियों को लगा दिया गया। दूसरी ओर नगर विकास विभाग ने सुप्रीम कोर्ट के साल 2010 में दिए उस फैसले का भी ध्यान नहीं रखा। जिसमें साफ निर्देश थे कि चुनाव प्रक्रिया शुरू करने से पहले आयोग का गठन कर अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए वार्डों और सीटों का आरक्षण किया जाए।
विभाग ने पुरानों निकायों में नहीं कराया कोई रैपिड सर्वे
वहीं विभाग ने सिर्फ नए नगर निकायों में रैपिड सर्वे कराते हुए पिछड़ों की गिनती कराई फिर आरक्षण तय कर दिया लेकिन पुराने निकायों में रैपिड सर्वे ही नहीं कराया। इसके अलावा सूत्रों के अनुसार यह भी कहा जा रहा है कि हाईकोर्ट के फैसले से हुई किरकिरी से सरकार नाराज है। इसकी वजह से इसका खामियाजा जिम्मेदार अधिकारियों को उठाना पड़ सकता है। इस चूक के बाद जल्द ही अधिकारियों की जिम्मेदारी तय की जाएगी। इसके अलावा प्रक्रिया से जुड़े अधिकारियों पर कार्रवाई बिल्कुल तय मानी जा रही है। इस बात की भनक लगते ही अपनों को बचाने के लिए उच्च स्तर पर लीपापोती शुरू हो गई है।