विशिष्ट दुकानों से पुस्तकें और यूनिफार्म खरीद के लिए विद्यालय नहीं करेंगे बाध्य, होगा एक्शन

जिला विद्यालय निरीक्षक की ओर से एक पत्र सभी विद्यालयों को भेजा गया है। इस पत्र में कहा गया है कि विद्यालय अब यूनिफार्म, जूते, मोजे और पुस्तकों की खरीद विशेष दुकानों से करने के लिए अभिभावकों को बाध्य नहीं करेंगे। 

लखनऊ: जिला विद्यालय निरीक्षक डॉ. अमर कान्त सिंह की ओर से एक पत्र सभी स्ववित्तपोषित मान्यता प्राप्त विद्यालयों को भेजा गया है। यह पत्र नए सत्र में शुल्क व पुस्तकों को लेकर है। पत्र में कहा गया है कि किसी भी छात्र को पुस्तकें, जूते, मोजे व यूनिफार्म आदि के लिए किसी विशिष्ट दुकान से क्रय करने के लिए बाध्य नहीं किया जाएगा। 

पत्र में कहा गया कि 1 अप्रैल 2022 से नवीन शैक्षिक सत्र प्रारम्भ हो रहा है। विद्यालयों द्वारा ड्रेस एवं पुस्तकों व्यवसायिक दृष्टि से न बेचने के लिए स्ववित्त पोषित अधिनियम-2018 के अध्याय-2 विद्यालयों में प्रवेश एवं शुल्क के बिन्दु शुल्क एवं निधि-3 (10) के अनुसार किसी छात्र को पुस्तकें, जूते, मोजे व यूनिफार्म आदि किसी विशिष्ट दुकान से क्रय करने के लिए बाध्य नहीं किया जायेगा।" आप सभी को निर्देशित किया जाता है कि इस प्राविधानों का पूर्ण अनुपालन करें। किसी अभिभावक से पुस्तकें, ड्रेस आदि क्रय किये जाने के संबंध में किसी प्रकार से दुकान या स्थान का नाम प्रकटीकरण नहीं करेंगे। यदि इस व्यवस्था का उल्लंघन पाया जायेगा या शिकायत प्राप्त होती है तो विद्यालय प्रबन्धक / प्रधानाचार्य के विरुद्ध विधिक कार्यवाही की जायेगी।

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प्रबन्धक/प्रधानाचार्य के विरुद्ध होगी विधिक कार्यवाही 
जाहिर तौर पर इस पत्र को विद्यालयों के लिए दिए गए बड़े निर्देश के तौर पर देखा जा रहा है। अक्सर विद्यालयों द्वारा अभिभावकों को इस चीज के लिए बाध्य किया जाता है कि वह किसी विशेष बताई गई दुकान से जाकर ही किताबें, जूते, मोजे और यूनिफार्म की खरीदी करें। हालांकि अब जिला विद्यालय निरीक्षक की ओर से जारी किए गए पत्र के जरिए इस पर लगाम लगाने का प्रयास किया गया है। पत्र में साफतौर पर लिखा गया है कि ऐसा किए जाने पर विद्यालय के प्रबन्धक/प्रधानाचार्य के विरुद्ध विधिक कार्यवाही की जाएगी।

पत्र के सामने आने के बाद हो रही सराहना
इस पत्र के सामने आने के बाद लोग जमकर जनहित में जारी किए गए इस आदेश की जमकर सराहना कर रहे हैं। उनका कहना है कि निर्धारित दुकान से इन चीजों की खरीदी के लिए विद्यालयों द्वारा अभिभावकों को बाध्य किया जाता था। हालांकि अब वह इस कदम के बाद राहत की सांस ले सकते हैं। 

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