मैनपुरी से डिंपल यादव का जीतना लगभग तय, इन 5 प्वाइंट्स में समझिए कैसे अखिलेश ने बचाया मुलायम का किला

यूपी की मैनपुरी लोकसभा सीट को समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव अपने पिता की सीट को लगभग बचा लिया है। इसी वजह से उन्होंने पत्नी डिंपल यादव को मैदान में उतारा और जनता ने भी नेताजी की बहू का पूरा सहयोग दिया है।

मैनपुरी: समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी संसदीय सीट पर हुए उपचुनाव में उनकी बहू डिंपल यादव ने बड़ी बढ़त बनाई हुई है। राजनीतिक जानकार मान रहे हैं कि इस सीट से उनका जीतना लगभग तय है। इस सीट को लेकर भाजपा और सपा की सीधी टक्कर देखने को मिल रही थी। एक ओर जहां सपा प्रत्याशी डिंपल मैदान में थी तो वहीं दूसरी ओर खुद को नेताजी का चेला बताने वाले बीजेपी प्रत्याशी रघुराज शाक्य मैदान में उतरे थे। इस बड़ी बढ़त से समाजवादी पार्टी ने मैनपुरी में इतिहास जरूर लिख दिया है। ऐसा माना जा रहा है कि इन पांच प्रमुख वजहों से सपा प्रमुख अखिलेश यादव नेताजी का गढ़ बचाने में सफल हो गए। 

परिवार में एकजुटता
समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव ने पत्नी डिंपल यादव को पार्टी का टिकट दिया। जिसके बाद पूरा यादव परिवार एक साथ होकर डिंपल के चुनाव प्रसार में जुट गया। नेताजी के निधन के बाद खाली हुई मैनपुरी लोकसभा सीट में परिवार में एकता की पहल करते हुए लोकसभा के चुनाव मैदान में घर के हर एक सदस्य ने अपने जिम्मेदारियों को बखूबी निभाया है। राजनीतिक जानकारों का कहना है कि परिवार ने एकजुट होकर नेताजी के गढ़ को अपने हित्त में लाकर बचा लिया।

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महिलाओं को आगे बढ़ाने की जिम्मेदारी
समाजवादी पार्टी ने उपचुनाव में डिंपल यादव को मैदान में उतारकर महिलाओं को आगे बढ़ाने की भी कोशिश की। साल 2022 के आम विधानसभा चुनाव में पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव व नेताजी की बहू डिंपल यादव ने कुछ प्रमुख महिलाओं की सीट पर ही चुनाव प्रचार किया था, जैसे- सिराथू, जौनपुर, प्रयागराज। सपा में महिलाओं की बड़ी जिम्मेदारी निभाते हुए अखिलेश ने डिंपल को प्रत्याशी बनाकर पिता के गढ़ को बचाने में कामयाब साबित हो गए है। 

डिंपल के चेहरे का नहीं हुआ विरोध
पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने मैनपुरी सीट पर डिंपल यादव को चुनाव मैदान में उतारकर लोकसभा चुनाव में परिवार की सबसे सुरक्षित सीट सौंपने की जिम्मेदारी का फैसला बिल्कुल ठीक रहा। चुनाव में जीत के बाद अब यह सीट सेफ भी है और अन्य लोगों से बेहतर प्रत्याशी भी रही। डिंपल कन्नौज में तो हारी थी और उनका साल 2024 के लोकसभा चुनाव में जीतना ज्यादा कठिन हो जाता मगर अखिलेश यादव ने मैनपुरी सीट में पत्नी को उतारकर साबित कर दिया कि यह फैसला उनका किसी भी तरह से गलत नहीं था।

2019 लोकसभा से अखिलेश ने ली सीख
बीजेपी के प्रत्याशी रघुराज शाक्य के मैदान में उतरने से जीत मुश्किल जरूर लग रही थी लेकिन पार्टी ने साल 2019 के लोकसभा चुनाव से सीख ली। इस दौरान पार्टी के साथ उपचुनाव में सपा के साथ बसपा तो नहीं थी लेकिन बसपा वोट में सेंध लगाकर सपा ने बाजी पलट दी है। साल 2004 में हुए आम चुनाव में नेताजी ने 3.37 लाख वोटों के भारी अंतर से जीत दर्ज की थी। फिर साल 2019 के आम चुनाव में नेताजी की जीत सिर्फ 94 हजार वोटों से ही हुई। इस बार नेताजी की बहू ने उपचुनाव में इतने वोटों से भारी जीत दर्ज कर ली है।

दिग्गज नेताओं ने संभाल रखी थी चुनाव की जिम्मेदारी
सपा प्रत्याशी डिंपल यादव की जीत के लिए परिवार समेत पार्टी के कार्यकर्ताओं ने पूरी रणनीति तैयार की तभी तो आज नतीजा सभी के सामने है। धर्मेंद्र यादव ने कई नेताओं के साथ मिलकर भाभी डिंपल की जीत के लिए तैयारियों की लगातार समीक्षा करते रहे। कार्यकर्ताओं ने खासतौर पर ध्यान दिया कि बीजेपी उपचुनाव में पार्टी का वोट नहीं काट पाए क्योंकि भाजपा ने हमेशा वोट काटने का हथकंडा अपनाया है। इस बार बीजेपी का यह तरीका सफल नहीं रहा और समाजवादी पार्टी के हर एक सदस्य की मेहनत से आज डिंपल यादव उपचुनाव जीत चुकी है।

पांच दिसंबर को हुई थी वोटिंग
बता दें कि स्थानीय लोगों का मानना था कि अपने ससुर मुलायम सिंह यादव की तरह डिंपल के लिए जीत की राह उतनी आसान नहीं है, यह बात बिल्कुल सही निकली। इन सबके बाद भी डिंपल यादव जीत गई और पार्टी समेत मैनपुरी में नया इतिहास रच दिया। दूसरी ओर कई लोगों का यह भी मानना है कि सपा संस्थापक के निधन के बाद डिंपल यादव जनता की सहानुभूति के चलते उनकी परंपरा को बरकरार रखी। नेताजी ने कई बार मैनपुरी को कर्मस्थली का ऐलान किया तो हमेशा से जनता उनके साथ रही। पार्टी का गठन चार अक्टूबर 1992 को मुलायम सिंह यादव ने किया था। यहां की सीट पर वोटिंग पांच दिसंबर को हुई।

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