पालकी पर सवार होकर पहुंचे भगवान रंगनाथ, साल में एक बार ही खुलता है बैकुंठ द्वार, जानिए दर्शन से क्या है लाभ 

मथुरा में विशालतम रंगनाथ मंदिर में भक्तों का उत्साह देखने लायक था। भगवान अपनी पालकी पर विराजमान होकर बैकुंठ द्वार पहुंचे। तकरीबन आधे घंटे तक भगवान की पालकी यहां द्वार पर रही। 

मथुरा: दक्षिण भारत की शैली पर बना विशालतम मंदिर रंगनाथ यूपी के मथुरा में स्थापित है। यहां बैकुंठ द्वार बना हुआ है। यह द्वार वर्ष में एक बार ही खुलता है। सोमवार को ब्रह्म मुहूर्त में यहां भक्तों की भारी भीड़ देखी गई। भगवान रंगनाथ, माता गोदा जी के साथ परंपरागत वाद्य यंत्रों की मधुर ध्वनि के बीच पालकी पर विराजमान होकर बैकुंठ द्वार पहुंचे। यहां भगवान रंगनाथ की पालकी तकरीबन आधे घंटे तक द्वार पर रही। 

वैदिक मंत्रोचार के साथ हुआ पूजा पाठ 
इस दौरान मंदिर के श्रीमहंत गोवर्धन रंगाचार्य के नेतृत्व में सेवायत पुजारियों ने पूजा पाठ किया। वैदिक मंत्रोचार के साथ यह पूजन किया गया। इसके बाद में भगवान रंगनाथ, शठ कोप स्वामी, नाथ मुनि स्वामी, आलवर संतों की कुंभ आरती भी की गई। भगवान की सवारी ने इसके बाद मंदिर के प्रांगण का भ्रमण भी किया। भ्रमण के पश्चात ही पालकी पौंडानाथ मंदिर जिसे बैकुंठ लोक भी कहा जाता है वहां विराजमान हुई। इस दौरान उत्साहित भक्तों ने जमकर जयघोष भी किया। भक्त लंबे समय से पालकी के बैकुंठ द्वार पर आने का इंतजार कर रहे थे और जैसे ही पालकी वहां पहुंची तो वह दर्शनों के लिए बेताब नजर आए। 

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द्वार से निकलने मात्र से मिलता है फल
मंदिर परिसर में इस दौरान मौजूद भक्तों के द्वारा भजन गाए गए। हजारों भक्तों का हुजूम देर रात से ही मंदिर परिसर में एकत्रित होना शुरू हो गया। मंदिर के पुजारी के द्वारा जानकारी दी गई कि 21 दिवसीय बैकुंठ उत्सव के 11वें दिन एकादशी पर्व पर बैकुंठ द्वार को खोला जाता है। यह एकादशी सभी एकादशियों में सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। माना जाता है कि इस दिन जो भी भक्त बैकुंठ द्वार से निकलता है उसे बैकुंठ धाम की प्राप्ति भी होती है। मंदिर की मुख्य कार्यकरी अधिकारी अनघा श्रीनिवासन ने बताया कि आचार्य बैकुंठ उत्सव के दौरान अपनी रचित गाथाओं को भी सुनाते हैं। 

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