देश भर में गुरुवार को महिलाएं करवा चोथ का पर्व मना रही हैं लेकिन उत्तर प्रदेश की कान्हा की नगरी मथुरा में एक ऐसा गांव भी है जहां महिलाएं इस त्योहार को नहीं मानती है। ऐसा कहा जाता है कि सती के श्राप के डर की वजह से अनहोनी होने का डर सताता है।
मथुरा: देश भर में गुरुवार को महिलाएं करवा चोथ का पर्व मना रही हैं और अपने पति की दीर्घायु के लिए कामना कर रही है। वहीं दूसरी ओर कान्हा की नगरी मथुरा में एक गांव ऐसा भी है जहां महिलाएं करवा चौथ का त्योहार नहीं मनाती हैं। ऐसा माना जाता है कि यहां सती का श्रामप लगा हुआ है। इसकी वजह से गांव में आई विवाहिता आज भी करवाचौथ के दिन न कोई श्रृंगार करती है और नाही व्रत रखती है। आज के समय में भी महिलाओं में सती का खौफ है इसलिए इस व्रत के रहने से अनहोनी का डर सताता रहता है।
करवाचौथ के दिन का निकला चांद महिलाओं के लिए विशेष महत्व रखता है क्योंकि पति की लंबी उम्र का साक्षी होता है। राज्य के मथुरा जिले के कब्से सुरीर के नगला वघा थोक की महिलाओं के लिए यह चांद कोई महत्व ही नहीं रखता। शहर के कस्बे सुरीर के मोहल्ला वघा में ठाकुर समाज के सैकड़ों परिवारों में सुहाग सलामती के इस त्योहार से परहेज की परंपरा सालों से चली आ रही है। महिलाओं के अंदर सती के श्राप का भय इस कदर छाया हुआ है कि उन्हें करवाचौथ के व्रत की इजाजत नहीं दे रहा है। उनको इस बात का डर है कि अगर सती की इच्छा के विरुद्ध व्रत रख लिया तो कहीं कोई अनहोनी न हो जाए।
ठाकुर समाज का ब्राम्हण युवक से हुआ था विवाद
इसको लेकर गांव की बुजुर्ग महिलाओं का कहना है कि न उन्होंने कभी करवाचौथ का व्रत रखा और न नवविवाहिता व्रत रखती है। गांव के बुजुर्गों का मानना है कि सैकड़ों साल पहले गांव रामनगला (नौहझील) का ब्राह्मण युवक अपनी पत्नी को विदा कराकर घर लौट रहा था। मथुरा के कस्बे सुरीर से होकर निकलने के दौरान वघा मोहल्ले में ठाकुर समाज के लोगों का ब्राह्मण युवक की बग्घी में जूते फंसने को लेकर विवाद हो गया। दोनों के बीच विवाद इस कदर बढ़ गया कि इन लोगों के हाथों ब्राह्मण युवक की मौत हो गई थी। पति की मौत को अपने सामने होता देख कुपित मृतक की पत्नी ने इन लोगों को श्राप देते हुए सती हो गई थी। इसको सती का श्राप कहें या बिलखती पत्नी के कोप का कहर। इस घटना के बाद से मोहल्ले में कहर आ गया था। अचानक से जवान लोगों की मौत का सिलसिला शुरू हो गया। इतना ही नहीं महिलाएं जवानी में विधवा होने लगीं।
मंदिर बनाकर ग्रामीणों ने शुरू की पूजा-अर्चना
ऐसा बताया जाता है कि जब कुछ नहीं सूझा तब गांव के समझदार लोगों ने इसे सती का श्राप मानते हुए क्षमा याचना की। ग्रामीणों के द्वारा मोहल्ले में मंदिर बनाकर सती की पूजा-अर्चना को शुरू कर दिया था। इसकी वजह से सती का कोप का असर तो थम गया लेकिन इनके परिवारों में पति और बेटों की दीर्घायु को मनाए जाने वाले करवाचौथ और अहोई अष्टमी के त्योहार पर सती ने तभी से बंदिश लगा दी। उसी दिन से करवाचौथ को मनाना तो दूर इनके परिवार की महिलाएं पूरा श्रृंगार भी नहीं करती है। उन सभी को इस बात का डर सताता है कि कही सती नाराज न हो जाए। गांव की बुजुर्ग महिला का कहना है कि अब अहोई अष्टमी का व्रत तो कुछ नवविवाहिता रखने लगी हैं, लेकिन करवा चौथ का व्रत अभी भी महिलाएं नहीं रखती हैं।
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