Inside Story: यूपी चुनाव में गूंज रही सोरों सूकर क्षेत्र की तीर्थ नगरी...नाथ नगरी उपेक्षित, जानिए क्या है वजह

हिंदुत्व को और धार देने के लिए उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कासगंज जिले के सोरों सूकर क्षेत्र को तीर्थ स्थल घोषित करके महत्व दिया, जिसे भाजपा विधानसभा चुनाव में भुनाने में लगी है। कासगंज में तीसरे चरण में चुनाव होना है लेकिन नाथों के प्राचीन स्थल की नाथ नगरी बरेली योगी सरकार से अपने धार्मिक और पर्यटक महत्व न मिलने से चुनाव में उपेक्षित ही रह गई।

राजीव शर्मा
बरेली: भाजपा ने राम मंदिर के बाद काशी और मथुरा को हिंदुत्व की धार को और मजबूत करने के लिए काफी पहले से हवा दी ही है, विधानसभा चुनाव से कुछ माह पहले अक्टूबर में सोरों सूकर क्षेत्र को तीर्थ स्थल भी घोषित कर दिया था। कासगंज जिले का सोरों भगवान विष्णु का बराह जन्मस्थल है इसलिए वहां से लंबे समय से इसे तीर्थ स्थल घोषित किए जाने की मांग उठ रही थी। इसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने स्वीकार किया तो पूरे कासगंज की नहीं, उत्तर प्रदेश में भी यह संदेश गया कि भाजपा सरकार हिंदू धार्मिक स्थलों को संवारने का काम कर रही है। विधानसभा चुनाव में भी भाजपा सोरों सूकर क्षेत्र को तीर्थ स्थल घोषित किए जाने के अपने निर्णय को भुनाने में लगी हुई है। सोरों सूकर क्षेत्र ब्रज क्षेत्र में कासगंज जिले का हिस्सा है, जहां तीसरे चरण में चुनाव हो रहा है। ऐसे में, इन जिलों में चुनावी रैलियों को संबोधित करने के दौरान मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत सभी भाजपा नेता सोरों को तीर्थ स्थल घोषित किए जाने के अपने कदम को जनता के सामने रख रहे हैं, लेकिन सवाल नाथ नगरी बरेली को लेकर सामने आ रहे हैं, जहां के धार्मिक महत्व को देखते हुए लंबे वक्त से इसे पर्यटन नगरी के रूप में संवारने की मांग उठती आई है लेकिन किसी भी सरकार ने इसे महत्व नहीं दिया। योगी सरकार से नाथ नगरी को उम्मीद थी, वो भी पूरी नहीं हो सकी।

क्या है नाथ नगरी का महत्व
उत्तर प्रदेश में दिल्ली और लखनऊ हाइवे पर बसी बरेली वैसे तो सभी धर्मों के बड़े केंद्र होने की वजह से अपने धार्मिक महत्व के लिए जानी जाती है लेकिन नाथों के प्राचीन मंदिर होने की वजह से इसे नाथ नगरी भी कहा जाता है। यहां छह प्राचीन नाथ मंदिर हैं- अलखनाथ, धोपेश्वरनाथ, त्रिबटीनाथ, वनखंडीनाथ, तपेश्वरनाथ, मढ़ीनाथ। इनके बारे में मान्यता है कि यह 15 वीं शताब्दी में स्थापित हुए होंगे।  इनको महाभारत काल से भी जोड़ा जाता है, इसलिए दूर-दूर तक इनकी मान्यता है। इन मंदिरों के साथ ही बरेली की आंवला तहसील के रामनगर में अहिच्छत्र है, जो महाभारतकालीन किला है। यह क्षेत्र महाभारतकाल में पांचाल राज्य हुआ करता था। इस किले को राजा द्रोपद ने स्थापित कराया था। एएसआई को यहां खुदाई में कई प्रतिमाएं भी मिली हैं। इसके साथ ही, रामनगर में जैन धर्मांवलंबियों का प्राचीन मंदिर है, जो भगवान पार्श्वनाथ की तपोस्थली मानी जाती है। इतना ही नहीं, मुस्लिम धार्मिक स्थलों में यहां आला हजरत की दरगाह, खानकाहे नियाजिया भी है। ऐसे में, बरेली को पर्यटन नगरी घोषित कर यहां के धार्मिक स्थलों को संवारने की मांग लंबे वक्त से की जा रही है लेकिन इस पर किसी सरकार ने कभी कोई गौर नहीं किया।

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घोषणाएं तो बहुत हुईं लेकिन धरातल पर कुछ नहीं
उत्तर प्रदेश में योगी सरकार बनी तो नाथ नगरी बरेली के धार्मिक महत्व को देखते हुए उनकी सरकार की ओर से इसे संवारने और पर्यटन नगरी के रूप में विकसित करने के लि वायदे और दावे किए गए। कई विधायकों और मंत्रियों ने घोषणाएं भी कीं। पर्यटन विभाग ने कुछ प्रस्ताव बनाए। वे शासन में मंजूर भी हुई लेकिन इनमें ज्यादातर काम धार्मिक स्थलों के कुछ कमरों इत्यादि की मरम्मत जैसे ही रहे। इससे आगे कुछ नहीं किया गया। जबकि मांग यह थी कि सरकार यहां के धार्मिक स्थलों को नए सिरे से संवारे और उनको पुनर्स्वरूप दे, साथ ही बरेली के धार्मिक स्थलों को विश्व पटल पर युं प्रदर्शित करे ताकि पर्यटक यहां आ सकें।

अहिच्छत्र को भी नहीं संवारा गया
बरेली के अहिच्छत्र किले को कुछ इस तरह संवारने के प्रस्ताव कई बार बनाए गए, जिससे वहां महाभारतकाल की थीम नजर आए। वहां की लीलौर झील को भी संवारने के प्रस्ताव शासन में भेजे गए लेकिन इन पर शासन स्तर पर कोई महत्व नहीं मिला। नतीजतन, बरेली को पर्यटन नगरी बनाने की यहां के लोगों की मांग अधूरी ही है। अब जब सरकार सोरों शूकर क्षेत्र को तीर्थ नगरी घोषित कर चुकी है तो यहां के लोग चाहते थे कि वह बरेली को नाथ नगरी के रूप में महत्व दे लेकिन ऐसा नहीं किया गया। सोशल एक्टविस्ट गिरीश पांडेय कहते हैं कि बरेली को नाथ नगरी का दर्जा देकर इसे पर्यटन नगरी के रूप में संवारने की बेहद आवश्यकता है। इससे सरकार को राजस्व भी मिलेगा।      

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