देवबंद जमीयत सम्मेलन: ज्ञानवापी और मथुरा पर प्रस्ताव पारित, इस बात को बताया गया अनुचित

देवबंद में जमीयत सम्मेलन के दूसरे दिन ज्ञानवापी और मथुरा को लेकर प्रस्ताव पारित हुआ। इस दौरान कहा गया कि ज्ञानवापी मामले में निचली अदालत के आदेश से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली। 
 

Asianet News Hindi | Published : May 29, 2022 7:58 AM IST

सहारनपुर: देवबंद में जमीयत सम्मेलन के दूसरे दिन जमीयत उलेमा ए हिंद के इजलास में काशी की ज्ञानवापी मस्जिद और मथुरा के ईदगाह को लेकर प्रस्ताव पारित हुआ। इस बीच दारुल उलूम के नायब मोहतमिम मुफ्ती राशिद आजमी ने प्रस्ताव को लेकर सहमति जताई। उनके द्वारा कहा गया कि देश की आजादी में जमीयत का योगदान अहम है। 

नकारात्मक राजनीति में अवसर तलाशना ठीक नहीं 
इसी के साथ उलेमा-ए-हिंद की बैठक में प्राचीन इबादतगाहों को लेकर बार-बार विवाद खड़ा करने और देश के अमन व शांति को खराब करने वाली शक्तियों को समर्थन देने वाले राजनीतिक दलों के रवैये पर भी नाराजगी जाहिर की गई। कहा गया कि बनारस की ज्ञानवापी, मथुरा के ऐतिहासकि ईदगाह और दीगर मस्जिदों के खिलाफ मौजूदा समय में ऐसे अभियान जारी है तो देश के अमन, शांति और अखंडता को नुकसान पहुंचा सकते हैं। कहा गया कि अब विवादों को खड़ाकर सांप्रदायिक टकराव और बहुसंख्यक समुदाय के वर्चस्व की नकारात्मक राजनीति में अवसर तलाशे जा रहे हैं। हालांकि पुराने विवादों को जीवित रखने और इनको लेकर चलाए जाने वाले आंदोलनों से किसी का भी कोई फायदा नहीं होगा। 

पूजा स्थल एक्ट 1991 की हुई अवहेलना
इस दौरान खेद प्रकट करते हुए यह भी कहा गया कि मथुरा की निचली अदालत के आदेश से विभाजनकारी राजनीति को मदद मिली। उस आदेश में पूजा स्थल एक्ट 1991 की स्पष्ट अवहेलना हुई। इस के तहत संसद में तय हुआ था कि 15 अगस्त 1947 को जिस इबादतगाह की जो हैसियत थी वह उसी तरह से बरकरार रहेगी। कहा गया कि जमीयत उलेमा ए हिंद सत्ता में बैठे लोगों को बता देना चाहती है कि इतिहास के मतभेदों को बार-बार जीवित करना देश में शांति और सद्भाव के लिए हरगिज भी उचित नहीं है। 

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