
संतकबीरनगर: तकरीबन छह वर्षों पहले कागज पर मर चुके खेलई ने बुधवार को वास्तव में अपने प्राण त्याग दिए। उनका निधन उस दौरान हुआ जब वह अपने जिंदा होने की गवाही देने तहसील पहुंचे हुए थे। अधिकारियों के सामने वह प्रस्तुत तो हुए लेकिन अपनी बात कहे बिना ही उन्होंने दुनिया छोड़ दी। ज्ञात हो कि वर्ष 2016 में उनके बड़े भाई फेरई का निधन हुआ था लेकिन उनकी जगह पर जीवित खेलई को कागजों पर मार दिया गया था।
कागजों पर मौत के बाद पत्नी और बेटों के नाम हुई थी वरासत
कागजों पर मृत्यु के बाद उनकी संपत्ति और वरासत को खेलई की पत्नी और तीन बेटों के नाम पर कर दिया गया था। इस बात की जानकारी होने के बाद वह खुद के जिंदा होने का सबूत दे रहे थे। इसी क्रम में खेलई बुधवार को भी चकबंदी न्यायालय में बयान दर्ज करवाने के लिए गए थे। हालांकि वहीं पर उन्होंने प्राण त्याग दे दिए। बताया गया कि खेलई को खुद को जिंदा साबित करने के लिए लंबी प्रक्रिया से गुजरना पड़ रहा था। इसी बीच आखिरकार वह जिंदगी की जंग को हार गए।
अचानक तबियत बिगड़ने के बाद हुई मौत
उन्होंने चकबंदी न्यायालय में वाद दाखिल किया था। हालांकि वहां से उनकी संपत्ति उनके नाम पर नहीं हो पाई। बताया गया कि चकबंदी अधिकारी ने बुधवार को उनके बयान दर्ज करने के लिए तहसील बुलाया था। खेलई के साथ में उनके बेटे हीरालाल भी पहुंचे हुए थे। अधिकारियों की हीलाहवाली की मार झेल रहे खेलई की तबियत वहीं पर अचानक बिगड़ गई। इसके बाद दिन में तकरीबन ग्यारह बजे के करीब उनकी मृत्यु हो गई।
उप जिलाधिकारी ने कहा मामले की होगी जांच
खेलई के बेटे हीरालाल ने बताया कि उनकी मां की भी निधन हो चुका है। उन्हें जीवन भर इस बात की दुख रहेगा कि उनके खुद के पिता को स्वंय को जिंदा साबित करने के लिए वर्षों लग गए और आखिरकर सच में उनका निधन हो गया। वहीं मामले को लेकर संतकबीरनगर धनघटा के उप जिलाधिकारी रवींद्र कुमार का कहना है कि जीवित होने के बाद भी खेलई का मृत्यु प्रमाण पत्र कैसे बना और कैसे दूसरे के नाम पर वरासत हुआ इसको लेकर जांच करवाई जाएगी। इस खेल में जो भी शामिल होगा उसके खिलाफ निश्चित ही कार्रवाई होगी। इस घटना की जानकारी वरिष्ठ अधिकारियों को भी दे दी गई है।
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