मनीष का क्वारंटाइन तो खत्म हो गया है लेकिन, वह अभी भी अपनी ड्यूटी पर नहीं जा पाए हैं, क्योंकि उनकी पत्नी इस सदमे से नहीं उबर पा रही हैं। पत्नी लगातार रोती जा रही है। मैंने हमेशा अपने परिवार के आगे अपने काम को प्राथमिकता दी। कुछ दिन पहले ही मैंने अपने पिता को खोया है और अब बेटे को। हालांकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वह लगातार अपने वॉर्ड बॉय मनीष के संपर्क में हैं, जो कि पिछले चार सालों से कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं। वह फरवरी से कोविड ड्यूटी कर रहे हैं।
लखनऊ (Uttar Pradesh) । कोरोना वायरस के खौफ और जिम्मेदारों की लापरवाही के कारण तीन साल मासूम की जान चली गई। कोरोना से संक्रमित लोगों को बचाने में अपनी जिम्मेदारी निभाने वाला वॉर्ड बॉय पिता चाहकर भी कुछ नहीं कर सका। इतना ही नहीं वह अपने कलेजे के टुकड़े को आखिरी बार गले भी नहीं लगा सका। पिछले हफ्ते हुए ऐसे हादसे से वो गुजरा, जिसे वह जीवन भर नहीं भूल सकता। हालांकि इस समय़ वह क्वारंटाइन से बाहर आ चुका है और पत्नी को समझाने का प्रयास कर रहा है।
यह है पूरा मामला
लोकबंधु अस्पताल मनीष वार्डबॉय है। इस अस्पताल में कोरोना वायरस के मरीजों का इलाज चल रहा है। यहां काम करने वाले मनीष सहित कुछ स्टाफ 14 दिन के लिए पास के ही होटल में क्वारंटाइन के लिए चले गए। इसी दौरान मनीष के तीन साल का बेटा बीमार हो गया। मनीष कहते हैं कि रात के कोई 9 बजे होंगे कि कॉल आई। पत्नी ने कहा कि हमारा बच्चा बीमार है। वह उल्टियां कर रहा था और किसी पेट के संक्रमण के चलते उसकी तबियत खराब हो गई थी। मैं थोड़ी ही मदद कर सकता था, लेकिन क्वारंटाइन होने के कारण उसकी कोई मदद नहीं कर सका।
घंटों बीमार बच्चे को लेकर भटकते रहे परिजन
परिवार के लोग पड़ोसी की मदद से जो कि टैक्सी चालक हैं बच्चे को चिनहट स्थित पास के अस्पताल ले गए। अस्पताल ने मेरे बच्चे को एडमिट करने से इनकार कर दिया। इसके बाद परिवार वाले उसे आलमबाग के एक अस्पताल लेकर गए। वहां भी उसे एडमिट करने से मना कर दिया गया। इसके बाद मेरी पत्नी उसे लेकर किंग जॉर्ज मेडिकल कॉलेज लेकर गईं। हालांकि इस समय तक मैंने अस्पताल के अपने सीनियर्स को मोबाइल फोन कर दिया था जिन्होंने केजीएमयू में डॉक्टर्स को फोन कर तुरंत मेरे बेटे का इलाज करने के लिए कहा। लेकिन, तब तक बहुत समय निकल चुका था और बेटे की मौत हो चुकी थी।
..इस तरह केजीएमयू गया था मनीष
मनीष ने कहा कि उनके बेटे को कोरोना वायरस संक्रमण नहीं था। लेकिन, कोरोना वायरस के संक्रमण के संदेह में प्राइवेट अस्पतालों ने उनके बेटे को भर्ती करने से इंकार कर दिया। मनीष कहते हैं कि मैं लड़के को गले भी नहीं लगा पाया। स्पेशल परमीशन लेकर मैं पीपीई किट पहनकर एक एंबुलेंस से केजीएमयू गया। वहां भी मैं अपने परिवार के पास नहीं जा सका। मैंने दूर से सिर्फ अपने बच्चे को आखिरी बार देखा। अगले दिन सुबह बच्चे को लखनऊ के पास ही हमारे गांव में दफना दिया गया। मनीष ने कहा मैं अभी भी इस बात से उबर नहीं पा रहा हूं कि अगर प्राइवेट अस्पतालों ने उसका इलाज कर दिया होता तो वह आज जिंदा होता।
ड्यूटी पर लौट नहीं सके हैं मनीष
मनीष का क्वारंटाइन तो खत्म हो गया है लेकिन, वह अभी भी अपनी ड्यूटी पर नहीं जा पाए हैं, क्योंकि उनकी पत्नी इस सदमे से नहीं उबर पा रही हैं। पत्नी लगातार रोती जा रही है। मैंने हमेशा अपने परिवार के आगे अपने काम को प्राथमिकता दी। कुछ दिन पहले ही मैंने अपने पिता को खोया है और अब बेटे को। हालांकि अस्पताल प्रशासन का कहना है कि वह लगातार अपने वॉर्ड बॉय मनीष के संपर्क में हैं, जो कि पिछले चार सालों से कॉन्ट्रैक्ट पर काम कर रहे हैं। वह फरवरी से कोविड ड्यूटी कर रहे हैं।
(प्रतीकात्मक फोटो)