संगम नगरी में चल रहे माघ मेले में रोजाना हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ आ रही है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे किले के बारे में बताने जा रहे हैं, जोकि 3 नदियों के बीच बना है। इस किले को संगम तट पर मुगल शासक अकबर ने बनवाया था। आइए जानते हैं इस किले से जुड़े किस्से कहानी।
प्रयागराज (Uttar Pradesh). संगम नगरी में चल रहे माघ मेले में रोजाना हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ आ रही है। ऐसे में आज हम आपको एक ऐसे किले के बारे में बताने जा रहे हैं, जोकि 3 नदियों के बीच बना है। इस किले को संगम तट पर मुगल शासक अकबर ने बनवाया था। आइए जानते हैं इस किले से जुड़े किस्से कहानी। गंगा यमुना सरस्वती के संगम पर यह किला बना है। जिसमें गंगा यमुना साफ तौर पर देखी जा सकती है, जबकि सरस्वती अदृश्य है।
20 हजार मजदूर, 45 साल और 6 करोड़ में बनकर तैयार हुआ ये किला
बताया जाता है कि 644 ईसा पूर्व में चीनी यात्री ह्वेनसांग प्रयागराज आया। वो उस समय कामकूप तालाब मैं इंसानी नरकंकाल देखकर दुखी हो गया। उसने अपनी किताब में भी इसका जिक्र किया है। नरकंकाल के बारे में उसने मुगल सम्राट अकबर को बताया, जिसके बाद उन्होंने वहां पर किला बनवा दिया। इतीहासकार कहते हैं, किले की नींव 1583 में रखी गई। करीब 45 साल 5 महीने और 10 दिन तक इसका निर्माण कार्य चला। करीब 20 हजार मजदूरों ने मिलकर इसे बनाया। किले का कुल क्षेत्रफल 30 हजार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में करीब कुल 6 करोड़, 17 लाख, 20 हजार 214 रुपए लगे। अकबर की इच्छा थी कि इलाहाबाद के पास ही एक शहर और सैन्य छावनी बनाई जाए। वो इस किले को अपने बेस के रूप में इस्तेमाल करना चाहता था।
4 हिस्सों में बंटा है ये किला
इतिहासकार कहते हैं, नदी की कटान की वजह से किले का नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था। यही इस किले की खास विशेषता भी है। 1583 में अकबर ने किले का निरीक्षण किया था, इसलिए उसे ही किले का निर्माण काल मान लिया जाता है। वो इस स्थान पर 4 किलों के एक समूह का निर्माण करना चाहता था। लेकिन एक ही किले के निर्माण में इतना समय लग गया कि उसकी मौत हो गई।
किले को 4 भागों में बांटा गया है। पहला भाग खूबसूरत आवास, जो उद्यानों के बीच में है। यह भाग बादशाह का आवासीय हिस्सा माना जाता है। दूसरे और तीसरे भाग में अकबर का शाही हरम था और नौकर चाकर रहते थे। चौथे भाग में सैनिकों के रहने के लिए घर बनाए गए थे। ये किला अपनी विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाता है। नक्काशीदार पत्थरों की विशायलकाय दीवार से यमुना की लहरे टकराती है। इसके अंदर पातालपुरी में कुल 44 देवी देवताओं की मूर्तियां स्थापित हैं, जहां लोग आज भी पूजा पाठ करते हैं।
किले में टिकी है आर्मी
संगम के पास स्थित इस किले का कुछ भाग पर्यटकों के लिए खुला रहता है। बाकी हिस्से का प्रयोग भारतीय सेना करती है। सैलानियों को अशोक स्तंभ, सरस्वती कूप और जोधाबाई महल देखने की इजाजत है। यहां अक्षय वट के नाम से मशहूर बरगद का एक पुराना पेड़ और पातालपुरी मंदिर भी है। बताया जाता है कि किले में उस समय पानी के जहाज और नाव बनाई जाती थी। जो यमुना नदी से समुद्र तक ले जाई जाती थी।