इस गांव में तिरंगा फहराने के बाद ही जलते हैं चूल्हे, दीपावली की तरह जला घरों में जलाए जाते हैं दीपक

देशभर में रविवार को 71वां गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज हम आपको एक ऐसे गांच के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी अशोक चक्र विजेता से लेकर कई स्वतंत्रता सेनानी ने शान बढ़ाई।

Asianet News Hindi | Published : Jan 26, 2020 8:24 AM IST

बागपत (Uttar Pradesh). देशभर में रविवार को 71वां गणतंत्र दिवस धूमधाम से मनाया जा रहा है। आज हम आपको एक ऐसे गांच के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसकी अशोक चक्र विजेता से लेकर कई स्वतंत्रता सेनानी ने शान बढ़ाई। सबसे खास बात ये है कि इस गांच में तिरंगा फहराने के बाद ही लोगों के घरों में चूल्हे जलते हैं और लोग किसी अन्य काम की शुरुआत करते हैं। जब तक तिरंगा नहीं फहरा दिया जाता लोग खाना नहीं खाते। 

दीपावली की तरह घर घर में जलाए दीपक
बागपत के बावली गांव में तिरंगा फहराने के बाद शहीद स्मारक स्थल पर सामूहिक रूप से राष्ट्रगान होता है। राष्ट्रध्वज की पूजा कर घी के दीपक से आरती उतारी जाती है। दीपावली की तरह घर-घर घी के दीपक जलाए जाते हैं। भोग लगाकर लोगों में प्रसाग बांटा जाता है। ग्राम प्रधान पति ओमवीर ने बताया, 26 जनवरी को ध्वजारोहण की यह परंपरा पूर्वजों ने शुरू की थी। यहां जब तक ध्वजारोहण नहीं हो जाता तब तक किसी के घर में चूल्हा नहीं जलता। कुल 25 हजार की आबादी वाले इस गांव में हर घर से कम से कम एक व्यक्ति सेना में है। 

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गांव के बिजेंद्र पाल को इसलिए दिया गया था अशोक चक्र
उन्होंने बताया, गांव के रहने वाले स्वतंत्रता सेनानी 106 साल के इलम सिंह ने 1941-1942 में 25 दिनों तक सिंगापुर में भूखे-प्यासे रहकर अंग्रेजों से मुकाबला किया था। वहीं, दूसरे स्वतंत्रता सेनानी हरिपाल का निधन हो चुका है। इन्होंने आजाद हिंद फौज में शामिल होकर नेताजी सुभाष चंद बोस के नेतृत्व में 1944-1945 में अंग्रेजों से लोहा लिया था। गांव के बिजेंद्र पाल सिंह तोमर ने 18 दिसंबर 1961 के गोवा आपरेशन में देश को पुर्तगालियों से आजाद कराने में अहम योगदान दिया था। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें अशोक चक्र से सम्मानित किया गया था।

अंग्रेजों के खिलाफ होती थी मीटिंग
भूतपूर्व सैनिक सेवा समिति के जिलाध्यक्ष शीशपाल सिंह कहते हैं, अंग्रेजों से निपटने के लिए बावली गांव के बाहर गोपी वाली बनी (जंगल) है, जोकि करीब 200 बीघे में फैला हुआ था। इसमें गांव के लोग रात में एकजुट होकर अंग्रेजों से निपटने के लिए योजनाएं बनाते थे। इसमें बिजरौल गांव के बाबा शाहमल का भी अहम योगदान रहा।

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