घर पोते, रात दिन एक कर मजदूरी भी की; खुद नहीं बन पाया क्रिकेटर मगर बेटे ने टीम इंडिया में ले ली जगह

यूपी के छोटे से जिले भदोही के रहने वाले यशस्वी जायसवाल ने 2020 में दक्षिण अफ्रीका में होने वाले अंडर-19 विश्वकप के लिए इंडियन टीम में जगह बनाई है

Ujjwal Singh | Published : Dec 4, 2019 7:16 AM IST / Updated: Dec 04 2019, 01:19 PM IST

भदोही(Uttar Pradesh ). कहते हैं सफलता किसी सुविधा की मोहताज नहीं होती। कुछ ऐसा ही कर दिखाया है यूपी के छोटे से जिले भदोही के रहने वाले यशस्वी जायसवाल ने। यशस्वी ने 2020 में दक्षिण अफ्रीका में होने वाले अंडर-19 विश्वकप के लिए इंडियन टीम में जगह बनाई है। hindi.asianetnews.com ने यशस्वी के पिता भूपेंन्द्र जायसवाल से बात की। इस दौरान उन्होंने बेटे की सफलता व खुद के संघर्षों की कहानी बताई। 

यूपी के भदोही जिले में एक बाजार है सुरियांवा। इसी बाजार में भूपेंद्र जायसवाल छोटी से पेन्ट की दुकान चलाते हैं। भूपेंद्र जयसवाल अंडर-19 विश्व कप 2020 के लिए इंडियन टीम में चुने गए यशस्वी जयसवाल के पिता है। भूपेंद्र भी पहले काफी अच्छा क्रिकेट खेलते थे लेकिन पारिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी ना होने के कारण वह खेल ज्यादा दिन तक जारी नहीं रख सके। अंततः उन्होंने अपनी दुकान खोल ली। लेकिन भूपेंद्र ने शुरू से ही अपने बच्चों को क्रिकेटर बनाने की ठान ली थी भूपेंद्र के दो बेटे और दो बेटियां हैं। उन्होंने बेटों को क्रिकेट में ही आगे बढ़ाया। छोटा बेटा यशस्वी जिसका चयन अंडर-19 इंडियन टीम में हो चुका है। 

चारपाई खरीदने के लिए करनी पड़ी थी मजदूरी 
भूपेंद्र बताते हैं कि उनका बेटा बचपन से ही क्रिकेटर बनना चाहता था। इसी के चलते वह उसे 10 वर्ष की उम्र में अपने एक रिश्तेदार के पास मुंबई ले गए जहां उसने आजाद मैदान में प्रैक्टिस शुरू की। लेकिन रिश्तेदार का घर काफी छोटा था जिसकी वजह से वहां रह पाना संभव नहीं था, इसलिए एक परिचित के माध्यम से वह आजाद मैदान के पिच स्टाफ के साथ रहने लगा। वह टेंट के नीचे जमीन में सोता था। भूपेंद्र ये वाकया बताते हुए भावुक हो उठे,उन्होंने बताया की एक बार यशस्वी की आँख के पास किसी कीड़े ने काट लिया। जिसके बाद उसका पूरा मुंह सूज गया। मुझे जानकारी मिली तो मैंने उसे वापस आने को कहा। लेकिन उसने कहा कि बिना कुछ हासिल किए वह लौटने वाला नहीं है। जिसके बाद मेरा भी हौसला बढ़ गया, मुझे उस समय एक छोटा सा पेंटिंग का काम मिला था,उस काम में मै भी मजदूरों के साथ लग गया। जिसके बाद मैंने मजदूरी में 3 दिन में 16 सौ रुपए बचा लिए। उसी रूपए को मैंने यशस्वी के पास चारपाई खरीदने के लिए भेज दी। 

घर का खर्च चलाने के लिए मां ने शुरू कर दी प्राइवेट स्कूल में टीचिंग 
भूपेंद्र बताते हैं कि उनकी कमाई का जो भी पैसा बचता था वह दोनों बेटियो की पढ़ाई व बेटों के खेल की व्यवस्थाओं में खर्च हो जाता था। इसलिए मेरी पत्नी कंचन ने पास के ही एक प्राइवेट स्कूल में टीचिंग शुरू कर दी। वहां तनख्वाह ज्यादा तो नहीं थी लेकिन उससे घर खर्च में काफी कुछ मदद मिल जाती थी। 

कभी बैट खरीदना होता तो बढ़ जाती थीं मुश्किलें 
भूपेंद्र बताते हैं कि कभी बेटे को बैट की आवश्यकता होती थी, और वह ये बात मुझसे बताता था परेशानियां ही बढ़ जाती थीं। मेरी कमाई का छोटा सा हिस्सा जो बचता था उससे उसका बैट आना सम्भव नहीं होता था। यशस्वी शाम को गोलगप्पे की दुकान लगाता था। जिसमे वह कुछ पैसा बचा लेता था। कुछ पैसा मैं यहां से भेजता था और कुछ वह खुद से ईनाम व गोलगप्पे की दुकान से इकट्ठा कर बचा के रखता था। जिसके बाद काफी मुश्किल से बैट आ पाता था। 

यहां से बदल गई किस्मत 
भूपेंद्र कहते हैं, यशस्वी 13 साल की उम्र में अंजुमन ए इस्लामिया की टीम से आजाद ग्राउंड पर लीग खेल रहा था। इस दौरान ज्वाला सर आए, उनकी शांताक्रूज में एकेडमी है। वह यशस्वी के खेल से प्रभावित थे। उन्होंने उनसे पूछा-कोच कौन है तुम्हारा? उसने जवाब दिया कोई नहीं। बड़ों को देखकर सीखता हूं। यह बात सुन ज्वाला सर बेटे को अपनी एकेडमी ले गए। यह उसकी जिंदगी का सबसे बड़ा टर्निंग प्वाइंट था। पिछले साल ही सचिन तेंदुलकर ने बेटे को अपने घर बुलाकर गिफ्ट में बैट दिया। जिसे उसने अपने ज्वाला सर के ऑफिस में सजा कर रखा है।

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