पीलीभीत की पूरनपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने के लिए रामौतार गौतम उर्फ हिटलर ने नामांकन दखिल कराया था लेकिन उनका नामांकन खारिज हो गए। इसके बावजूद वह चुप नहीं बैठे हैं और अपनी पुरानी मोटरसाइकिल से गांव-गांव घूमकर आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं।
राजीव शर्मा
बरेली: उत्तर प्रदेश के बरेली जिले के काका जोगिंदर सिंह उर्फ धरतीपकड़ तो जीवन भर चुनाव लड़ते रहे और हारते रहे। हालांकि वह हारने के लिए ही चुनाव लड़ते थे लेकिन उनकी तर्ज पर पीलीभीत जिले के रामौतार गौतम उर्फ हिटलर भी कई चुनाव लड़ चुके हैं लेकिन वह चुनाव हारने के लिए नहीं जीतने के लिए लड़ते हैं। हालांकि अब तक लड़े 11 में से सिर्फ जिला पंचायत सदस्य को छोड़कर और कोई चुनाव वह जीत न सके। इस बार पीलीभीत की पूरनपुर विधानसभा से चुनाव लड़ने के लिए हिटलर ने नामांकन दखिल कराया था लेकिन उनका नामांकन खारिज हो गए। इसके बावजूद वह चुप नहीं बैठे हैं और अपनी पुरानी मोटरसाइकिल से गांव-गांव घूमकर आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुट गए हैं।
11 वीं बार चुनाव लड़ने के लिए कराया था नामांकन
पुराने जमाने की मोटरसाइकिल, जिसे आम बोलचाल की भाषा में फटफटिया कहा जाता है। उसमें चुनावी बैनर लगाकर ठेठ देहाती अंदाज में कंधे पर बैग लटकाए रामौतार गौतम उर्फ हिटलर जनसंपर्क करते देखे जाते हैं। वह गांव-गांव जाकर जनता के बीच खुद को विधायक और सांसद बनने पर बहुत कुछ करने की बात कहते हैं। लोगों की तकलीफ में भागीदारी बनते हैं। हिटलर पूरनपुर के माधोटांडा में रहते हैं और इस विधानसभा चुनाव में उन्होंने 11 वीं बार चुनाव लड़ने के लिए नामांकन कराया था। लेकिन उनका पर्चा बैंक खाते की एक कमी की वजह से खारिज हो गया। हालांकि इसके बाद भी वह निराश नहीं हुए हैं। कहते हैं कि अब लोकसभा चुनाव की तैयारी करेंगे, जो 2024 में होना है। इसके लिए उन्होंने इस विधानसभा चुनाव से ही तैयारी शुरू कर दी है और लोगों के बीच अपनी मोटर साइकिल से जाकर अभी से खुद को जिताने की अपील भी करने लगे हैं।
चुनावी मुद्दों पर हिटलर का कहना है कि जनता को शिक्षा और स्वास्थ्य की सुविधाएं बिल्कुल नि:शुल्क दिलवाने का प्रयास करेंगे। रोजगार दिलाएंगे ताकि मुफ्त के राशन पर लोगों को निर्भर न रहना पड़े। हिटलर साफ़ कहते हैं कि उनके न तो कोई परिवार में है और ना उनके पास कोई संपत्ति है, इसलिए विधायक बनकर कोई घोटाला भी नहीं करेंगे। सब कुछ जनता के लिए ही करेंगे। जनता ही उन्हें चुनाव लड़ाती है। उनके कंधे से लटके थैले में एक मोटी सी डायरी है, जिसमें मतदाताओं के नाम व नंबर लिखते हैं। मुकदमे के कागजात और विभिन्न समाचार पत्रों की कतरने भी उनकी डायरी में चस्पा हैं। इसी थैले में वे टॉफियां रखते हैं जिनका वितरण बच्चों में करते हैं। थैले में उनकी काफी गृहस्थी मौजूद है। वह कहते हैं कि उनके ई-रिक्शा की बैटरियां खराब हो गईं हैं। दूसरी लगवाने में 30 हजार का खर्च आएगा, वर्ना ई-रिक्शा में उनका बिस्तर भी रखा रहता था। जहां रात हो जाती थी वहीं सो जाते थे।
नहीं करते कोई खर्च, चंदे से कराते हैं नामांकन
हिटलर के चुनाव प्रचार का तरीका देखकर हर कोई दंग रह जाता है। वह जीरो बजट चुनाव लड़कर विधानसभा पहुंचना चाहते हैं। सुबह नित्य क्रिया से निपट कर वह सीधे अपनी चुनाव प्रचार के लिए तैयार की गई खास बाइक पर सवार हो जाते हैं और गांवों में निकल जाते हैं। जनसंपर्क के दौरान जनता से मांगकर ही चाय नाश्ता करते हैं और भोजन भी दूसरों के घरों में करते हैं। नामांकन कराने के लिए जो सिक्योरिटी राशि जमा करनी होती है, वह भी रामौतार हिटलर चंदा मांगकर ही जुटाते हैं। चंदा भी किसी से इकट्ठा नहीं लेते। किसी से पांच, किसी से 10 और किसी से 20 और 50-10 रुपये लेकर इतनी धनराशि एकत्रित कर लेते हैं, जितनी उनको चाहिए होती है। अपनी मोटरसाइकिल में पेट्रोल भी चंदे के पैसे से ही भरवाते हैं। दरअसल, रामौतार की आमदनी का कोई जरिया नहीं है। वह कहते हैं कि वह सामाजिक कार्य करते हैं और लोगों की मदद से ही अपना खर्च चलाते हैं।
पहले के चुनाव में बेची था तीन एकड़ जमीन
रामौतार मूलत: किसान रहे हैं लेकिन चुनाव लड़ने के अपने शौक के चलते वह पहले 10 चुनाव लड़ने के लिए अपनी तीन एकड़ जमीन और एक दुकान को बेच चुके हैं। एक बार विधायक का चुनाव लड़ने के लिए चुनाव प्रचार के लिए रामौतार राजस्थान से एक ऊंट खरीद लाए। चुनाव आयोग से लिखित मांग की कि उन्हें चुनाव चिन्ह ऊंट दिया जाए। परंतु नामांकन से तीन दिन पहले ही उनका ऊंट मर गया। चूंकि उन्होंने जमीन बेंचकर ही ऊंट खरीदा था, इसलिए उसका शव उठवाना भी महंगा पड़ गया। दुर्गंध उठी तो गांव के लोगों ने चंदा करके ऊंट का शव उठवाया।
हिटलर नाम इस वजह से पड़ा
अब चूंकि उनके पास न जमीन है, न पैसा है, इसलिए दूसरों की मदद से चुनाव लड़ने का खर्चा करते हैं। रामौतार हिटलर को लोग दिल खोलकर चुनाव के लिए चंदा देते हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि रामौतार लोगों के लिए लड़ते हैं। सरकारी विभागों में जाकर पीड़ितों की पैरवी करते हैं। अफसरों से भिड़ जाते हैं, इसलिए लोगों ने उनका नाम हिटलर रखा। रामौतार बताते हैं कि गरीबों की बदतर हालत देखकर कुछ बदलाव लाने के लिए ही वे राजनीति में उतरे हैं। अन्याय के खिलाफ लड़ने और बिना किसी दबाव के अंत तक डटे रहने के कारण ही उनको हिटलर नाम मिला।
सदस्य का चुनाव जीते तो जिला पंचायत के सामने झोपड़ी डालकर रहने लगे
वर्ष 2016 में रामौतार ने माधोटांडा वार्ड से जिला पंचायत सदस्य का चुनाव लड़ा तो लोगों से कहते थे कि उनके पास खोने को कुछ भी नहीं बचा है। अगर आप लोगों ने वोट नहीं दिया तो उनके पास जीने का कोई जरिया नहीं रहेगा। मतदाताओं को उन पर तरस आया और उन्हें जिला पंचायत सदस्य बना दिया। सदस्य बनने के बाद भी बैटरी चालित ई-रिक्शा खरीद लिया। उसी में ही अपनी गृहस्थी सजाकर हिटलर अपनी जिंदगी जीने लगे। अन्य जिला पंचायत सदस्यों की तरह जिला पंचायत के गेस्ट हाउस के कमरों में वह काबिज नहीं हुए बल्कि पीलीभीत में जिला पंचायत गेस्ट हाउस के सामने झोपड़ी बनाकर रहने लगे। फक्कडों की भांति वहां खुद खाना बनाकर खाते थे। कई बार जिला पंचायत के अधिकारियों ने उन्हें गेस्ट हाउस से हटाने का प्रयास किया लेकिन हिटलर अंत तक जमे रहे। हिटलर बताते हैं कि जिला पंचायत सदस्य रहते उन्होंने अपने क्षेत्र में 22 सड़कों का निर्माण कराया, जो अपने आप में रिकॉर्ड है।