खतौली उपचुनाव: दलित वोट खोलेंगे जीत के द्वार, जातीय चक्रव्यूह को भेदने में लगी भाजपा और रालोद

खतौली उपचुनाव को काफी मायनों में अहम माना जा रहा है। इस चुनाव को जीतने के लिए भाजपा और रालोद के नेता पूरा जोर लगा रहे हैं। उपचुनाव को 2024 चुनावों को सेमीफाइनल के तौर पर देखा जा रहा है। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 28, 2022 5:25 AM IST

मेरठ: चुनावी माहौल के बीच सभी राजनीतिक उपचुनाव में जीत को लेकर दावा कर रहे हैं। हालांकि खतौली विधानसभा उपचुनाव में भाजपा और रालोद की सीधी टक्कर मानी जा रही है। इस चुनाव में दलित वोटों को निर्णायक माना जा रहा है। बसपा ने इस चुनाव से दूर रहने का मन बनाया है। जिसके बाद भाजपा और रालोद दोनों की निगाहें दलित वोटर पर है। खतौली में जीत किसकी होगी यह काफी हद तक इस उपचुनाव में दलित ही तय करेंगे। दलितों को साधने के लिए ही संविधान दिवस पर जयंत चौधरी ने भीम आर्मी के चंद्रशेखर आजाद के साथ मंच भी साझा किया था। हालांकि उसी दिन बीजेपी की ओर से मंत्री असीम अरुण को खतौली में उतार दिया गया।

केंद्रीय राज्यमंत्री के प्रतिष्ठा का विषय है उपचुनाव
मुजफ्फरनगर की खतौली विधानसभा सीट पर उपचुनाव में रालोद के मदन भैया और भाजपा की राजकुमारी सैनी के बीच सीधा मुकाबला माना जा रहा है। इस उपचुनाव को कई मायनों में पश्चिमी उत्तर प्रदेश में 2024 का सेमीफाइनल भी माना जा रहा है। मुजफ्फरनगर के सांसद और केंद्रीय राज्यमंत्री डॉ. संजीव बालियान के लिए यह चुनाव प्रतिष्ठा का विषय माना जा रहा है। जबकि रालोद के बाद आगामी निकाय चुनाव से पहले यहां जमीन तैयार करने को लेकर बेहतर अवसर माना जा रहा है।

जातीय चक्रव्यूह को भेदने की है पूरी तैयारी
इस समय खतौली का उपचुनाव जातीय चक्रव्यूह में उलझा माना जा रहा है। दोनों ही दल इस प्रयास में लगे हैं कि किस तरह से वोटर्स को अपने पाले में किया जाए। भाजपा और रालोद का पुरजोर प्रयास है कि जाट, गुर्जर और अन्य पिछड़ा वर्ग के साथ ही दलित वोटरों पर कैसे डोरा डाला जाए। दरअसल यहां मुस्लिमों के बाद सबसे ज्यादा आबादी दलितों की है। इसके चलते ही इस वोट बैंक को बसपा की मूल ताकत माना जाता है। हालांकि उपचुनाव में यह वोटर किसके पक्ष में जाएगा यह अभी तय नहीं है। फिलहाल जानकार यह जरूर कह रहे हैं कि इस बार का उपचुनाव काफी ज्यादा दिलचस्प होने वाला है। 

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