
लखनऊ: स्वामी प्रसाद मौर्य (Swami Prasad Maurya) ने बीजेपी से इस्तीफा देकर यूपी के राजनीति में सरगर्मियां बढ़ा दी हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य के दूसरे दल में जानें से जाति समीकरण पर असर देखने को मिल सकता है। मौर्य को यूपी के बड़ा ओबीसी चेहरा माना जाता है। इस बात का अंदाजा कही न कहीं बीजेपी को भी है इसी वजह से बीजेपी स्वामी को मनाने की कवायद में भी लगी हुई है। पूर्वांचल और अवध के जिलों मौर्य और कुशवाहा की अच्छी आबादी है। मौर्य के जाने से ऐसे समाज के वोटरों को साधना बीजेपी के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।
हालांकि राजनीतिक विशेषज्ञों के मुताबिक स्वामि प्रसाद मौर्य यूपी की राजनीति में बड़े नाम जरूर माने जाते हैं। लेकिन चुनाव से पहले बार-बार उनका पार्टी बदलना उनकी छवि पर भी खास असर डाल रहा है। ओबीसी वोट बैंक पर उनका प्रभाव जरूर है लेकिन उनके वोटरों के बीच इस बात की भी चर्चा है कि चुनाव के अंतिम समय ही क्यों उनको पिछड़ों की समस्याएं याद आती हैं। बाकी चार साल वो पीछड़ों की समस्यों को पूरी ताकत के साथ क्यों नहीं उठाते हैं।
पूर्वांचल और अवध के जिलों में डाल सकते हैं असर
स्वामी प्रसाद मौर्य यूपी के बड़े ओबीसी नेता हैं। पांच बार के विधायक स्वामी प्रसाद मौर्य का कुशवाहा, मौर्य, शाक्य और सैनी समुदाय पर अच्छा प्रभाव माना जाता है। मौर्य और कुशवाहा सबसे प्रमुख पिछड़ी जातियां हैं। पूर्वांचल और अवध के जिलों में इनकी अच्छी आबादी है। माना जा रहा है कि मौर्य के जाने से बीजेपी को ओबीसी वोटों को अपने साथ जोड़े रखने में चुनौती का सामना करना पड़ेगा। कुछ अन्य छोटे दलों को साथ जोड़ चुकी है, जिनका ओबीसी वोट बैंक पर प्रभाव है।
यूपी में 6 फीसदी सीटों पर डाल सकते हैं असर
स्वामी प्रसाद मौर्य कुशीनगर के पडरौना से विधायक हैं। हालांकि उनका प्रभाव रायबरेली के ऊंचाहार, शाहजहांपुर और बदायूं तक माना जाता है, जहां से उनकी बेटी संघमित्रा मौर्य लोकसभा सांसद हैं। यादव और कुर्मी के बाद मौर्य ओबीसी समाज की तीसरी बड़ी जाति कही जाती है जिससे स्वामी मौर्य ताल्लुक रखते हैं। इनमें काछी, मौर्य, कुशवाहा, सैनी और शाक्य जैसे उपनाम होते हैं। मौर्य आबादी यूपी में 6 फीसदी के आसपास बताई जाती है। ऐसे में 100 सीटों तक असर हो सकता है
मौर्य ओबीसी समुदाय की तीसरी सबसे बड़ी जाति
स्वामी प्रसाद मौर्य का साथ समाजवादी पार्टी को उत्तर प्रदेश के चुनावी रण में बड़ी बढ़त दिला सकता है। राज्य में यादव और कुर्मी के बाद मौर्य ओबीसी समुदाय को तीसरी सबसे बड़ी जाति माना जाता है और स्वामी प्रसाद मौर्य इससे ही ताल्लुक रखते हैं। काछी, मौर्य, कुशवाहा, शाक्य और सैनी जैसे उपनाम भी इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। आबादी के लिहाज से भी देखें तो उत्तर प्रदेश के आठ फीसदी लोग इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। वहीं, वोट बैंक के आंकड़ों पर गौर करें तो उत्तर प्रदेश में सबसे बड़ा वोटबैंक पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) का माना जाता है। लगभग 52 फीसदी पिछड़े वोट बैंक में 43 फीसदी वोट बैंक गैर यादव समुदाय से ताल्लुक रखता है। हालांकि, यह वोट बैंक अब तक किसी भी चुनाव में एकजुट नजर नहीं आता। ऐसे में सभी राजनीतिक दल गैर यादव वोटों को अपने पाले में लाने की कोशिश कर रहा है।
इस्तीफों से मौर्य का पुराना नाता
प्रतापगढ़ जिले के निवासी स्वामी प्रसाद मौर्य वकील भी रह चुके हैं। स्वामी प्रसाद मौर्य ने बौर्ध धर्म अपनाया और आंबेडकर के अनुयायी भी हैं। उन्होंने राजनीति की शुरुआत लोक दल के यूथ विंग के सदस्य के तौर पर 1980 में की थी। 1991 में उन्होंने जनता दल जॉइन की। जिस वक्त उन्होंने इस्तीफा दिया वह जनता दल के राज्य महासचिव पद पर थे। उन्होंने समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन का विरोध किया था और 2 जनवरी 1996 में बीएसपी में शामिल हो गए थे।
2008 में वह बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त हो गए। बाबू सिंह कुशवाहा के पार्टी से निकाले जाने के बाद मौर्य का ओहदा धीरे-धीरे पार्टी में बढ़ता गया और वह बीजेपी के अघोषित ओबीसी चेहरा बन गए थे। वह नेता विपक्ष और मंत्री भी थे।
बीएसपी से बीजेपी ओर अब भाजपा
हालांकि चुनाव से पहले पार्टी बदलने के कारण उनकी छवि राजनीति 'मौसम वैज्ञानिक' के रूप में भी चर्चित रही है जो हवा का रुख बदलते देख पाला बदल लेते हैं। 2017 से पहले स्वामी प्रसाद मौर्य बीएसपी में थे। वहां उनका प्रभाव ऐसा था कि मायावती ने मीडिया में बोलने के लिए पार्टी में सिर्फ उन्हें अनुमति दे रखी थी। वह बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष रह चुके हैं। लेकिन चुनाव से पहले उन पर कुछ आरोप लगे थे जिसके बाद वह बीजेपी में आ गए। इससे पहले वह जनता दल में भी रहे हैं।
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