वाराणसी: युवाओं ने आवारा पशुओं को बचाने के लिए निकाली अनोखी तरकीब, जानें कैसे रिफ्लेक्टिव कॉलर कर रहा है काम

वाराणसी के कुछ युवाओं ने आवारा पशुओं को बचाने की एक अच्छी तरकीब लगाई है। रात में अब गाड़ी की हेडलाइट जानवरों पर पड़ते ही आप अलर्ट हो जाएंगे। दरअसल, इन्होंने लगभग आधे शहर के आवारा पशुओं के गले में वाटर प्रूफ रिफ्लेक्टिव कॉलर बांध दिए हैं।

वाराणसी: उत्तर प्रदेश के जिले वाराणसी के कुछ युवाओं ने आवारा पशुओं को बचाने के लिए अनोखा तरकीब निकाली है। रात में अब गाड़ी की हेडलाइट जानवरों पर पड़ते ही सभी लोग खुद अलर्ट हो जाएंगे। युवाओं ने करीब आधे शहर के आवारा पशुओं के गले में वाटर प्रूफ रिफ्लेक्टिव कॉलर बांध दिए हैं। दरअसल इन कॉलरों या नेक बेल्ट पर रेडियम की कोटिंग की गई है, जिसकी वजह से रोशनी पड़ते ही तेजी से चमकने लगता है। रात में कार या बाइक से आते हैं तो दूर से ही दिख जाता है कि कोई जानवर सामने बैठा या चल रहा है।

500 से अधिक जानवरों को कॉलर से किया लैस 
युवाओं ने जानवरों को रोड एक्सीडेंट से बचाने के लिए इस शानदार मुहिम का नाम प्रोजेक्ट रोशनी रखा गया है। यह उपाय काफी काम आ रहा है। उन सभी ने युवाओं ने खुद के पैसे जुटाकर घर पर ही रिफ्लेक्टिव कॉलर बनाए है। इस प्रोजेक्ट की शुरुआत करने वाले प्रकृति रक्षक एनिमल लवर के हेट और बीएचयू के पूर्व छात्र शिवम प्रजापति का कहना है कि इस टीम में 40 युवा हैं। टीम के सभी युवा शहर के बकरियों, कुत्तों समेत अन्य आवारा पशुओं को यह रिफ्लेक्टिव कॉलर पहना रहे हैं। फिलहाल 500 से ज्यादा जानवरों को कॉलर से लैस कर दिया गया है।

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आवारा जानवरों को 360 डिग्री सुरक्षा भी देती है टीम
छात्र शिवम का कहना है कि रिफ्लेक्टिव कॉलर उनकी टीम और परिवार के लोग खुद ही बनाते हैं। यूट्यूब से हेल्प लेकर और खुद से ही फंड इकत्रित कर काम कर रहे हैं। खास बात तो यह है कि पानी से गीला होकर पशु को बीमार कर देगा। इस पर पानी न तो टिकता है या न ही यह सोखता है। वहीं दूसरी ओर टीम के वॉलंटियर राहुल कुमार का कहना है कि हम चाहते हैं कि लोग हम मुहिम से जुड़े, तभी जानवरों को एक्सीडेंटल केस से बड़े स्तर पर बचाया जा सकेगा। कॉलर के अलावा, युवाओं की टीम आवारा जानवरों को 360 डिग्री सुरक्षा भी देती है। 

युवाओं की टीम घायल जानवरों की करती है मरहम-पट्टी
प्रोजेक्ट रोशनी के अंतर्गत यह भी हो रहा है कि अगर कोई जानवर घायल है तो उनकी मरहम-पट्टी, इंजेक्शन-दवाई, पर्याप्त भोजन, रहने को घर और पर्याप्त रोशनी आदि की व्यवस्था तत्काल उनके ही इलाके में कर दी जाती है। स्प्रिट, हाइड्रोजन, कॉटन, बीटाडीन और पट्टी आदि सब साथ लेकर चलते हैं। उसके बाद जानवर को घायल अवस्था से बाहर निकालने के बाद उसे रिफ्लेक्टिव कॉलर पहना दिया जाता है। इसी बीच अगर किसी जानवर की मौत हो जाती है तो उसकी कब्र के लिए दो गज जमीन भी मुहैया कराई जाती है।

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