रेप के आरोप में बेगुनाह जेल में था, 14 साल में आना था बाहर,..लेकिन मिली 20 साल की सजा..जानिए क्यों?

राज्यपाल को अनुच्छेद 161 में 14 साल सजा भुगतने के बाद रिहा करने का अधिकार है। आरोपी 20 साल जेल में बिता चुका है और ये समझ से परे है कि सरकार ने उसे रिहा क्यों नहीं किया।

ललितपुर (Uttar Pradesh) । रेप के आरोप में पिछले 20 सालों से जेल में एक शख्स को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बरी कर दिया है। साथ ही कोर्ट ने इस बात पर हैरानी जताई कि अभियुक्त पिछले 20 सालों से जेल में है, जबकि कानूनन इसे 14 साल बाद रिहा कर दिया जाना चाहिए था। कोर्ट ने जेल को फटकार लगाई।

16 साल की उम्र में गया था जेल
विष्णु जब 16 साल का था तो साल 2000 में अनुसूचित जाति की एक महिला ने उस पर रेप का आरोप लगाया था। सेशन कोर्ट ने दुष्कर्म के आरोप में विष्णु को 10 साल और एससीएसटी एक्ट के तहत आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी। लेकिन, अब इलाहाबाद कोर्ट ने पाया है कि मामले में रेप के कोई सबूत ही नहीं हैं।

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रेप का दावा करने वाली पीड़िता थी गर्भवती
जब रेप होने का दावा किया गया तब पीड़िता गर्भवती थी और उसके शरीर पर रेप की पुष्टि करने के लिए कोई सबूत नहीं पाया गया था। ये FIR भी पति और ससुर ने घटना के तीन दिन बाद लिखाई थी। पीड़िता ने इसे अपने बयान में भी स्वीकार किया है।

विष्णु ने खो दिए परिवार के चार सदस्य
आगरा की सेंट्रल जेल में बंद ललितपुर निवासी विष्णु 20 साल से रेप के आरोप में सजा काट रहा है, जो उसने किया ही नहीं था। लेकिन, जब तक विष्णु की बेगुनाही साबित होती तब तक वो अपना सब कुछ लुटा चुका था। एक-एक कर उसके मां-बाप चल बसे। दो बड़े शादीशुदा भाई भी यह दुनिया छोड़ गए थे।

मेस में खाना बनाता है विष्णु
विष्णु बेहद गरीब परिवार से था। इस केस को लड़ने के लिए उसके परिवार के पास न तो पैसे थे और ना ही कोई अच्छा वकील। हालांकि, जेल में रहने के दौरान विष्णु मेस में दूसरे बंदियों के लिए खाना बनाता है। इतने साल में वो एक कुशल रसोइया बन चुका है। लेकिन, सेंट्रल जेल आगरा आने के बाद यहां उसे जेल प्रशासन की मदद से विधिक सेवा समिति का साथ मिला।

हाईकोर्ट से मिला न्याय
समिति के वकील ने हाईकोर्ट में विष्णु की ओर से याचिका दाखिल की। सुनवाई चली और एक लम्बी बहस के बाद विष्णु को रिहा कर दिया गया। हालांकि खबर लिखे जाने तक जेल में विष्णु की रिहाई का परवाना नहीं पहुंचा है।

कोर्ट ने कही ये बातें
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक न्यायमूर्ति डा. के जे ठाकर तथा न्यायमूर्ति गौतम चौधरी की खंडपीठ ने कहा है सत्र न्यायालय ने सबूतों पर विचार किए बगैर गलत फैसला दिया। इसके आलावा कोर्ट ने कहा कि दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 432 व 433 में राज्य व केंद्र सरकार को शक्ति दी गई है कि वह 10 से 14 साल की सजा भुगतने के बाद आरोपी की रिहाई पर विचार करे।

14 साल बाद हो जाना चाहिए था रिहा
राज्यपाल को अनुच्छेद 161 में 14 साल सजा भुगतने के बाद रिहा करने का अधिकार है। आरोपी 20 साल जेल में बिता चुका है और ये समझ से परे है कि सरकार ने उसे रिहा क्यों नहीं किया।

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