योगी सरकार का मथुरा को तोहफा, लट्ठमार होली को मिलेगी राजकीय मेले की मान्यता

Published : Oct 19, 2019, 03:36 PM ISTUpdated : Oct 19, 2019, 03:37 PM IST
योगी सरकार का मथुरा को तोहफा, लट्ठमार होली को मिलेगी राजकीय मेले की मान्यता

सार

 बरसाना और नन्दगांव के हुरियार (होली खेलने वाले पुरुष) और हुरियारिनों (होली खेलने वाली महिलाएं) के मध्य पारम्परिक रूप से सदियों से होती आ रही लठामार होली को देखने के लिए दुनिया भर सैलानी यहां आते हैं।  

मथुरा: करीब डेढ़ वर्ष पूर्व होली पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ब्रजवासियों की मांग पर बरसाना की लठामार होली को औपचारिक रूप से राजकीय मेला घोषित कर दिया था। अब राज्य सरकार इस योजना को अमली जामा पहनाने में जुट गई है। इस संबंध में शासन स्तर से जिला प्रशासन को भेजे गए एक पत्र में तीन प्रमुख बिन्दुओं पर आख्या मांगी गई है। बरसाना की लठामार होली को पूरी तरह से एक राजकीय मेले का रूप दिया जाएगा और उसका प्रचार-प्रसार कर अधिकाधिक सैलानियों को आकर्षित किया जा सकेगा।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाने की कोशिश

गौरतलब है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने वर्ष 2018 में बरसाना में पहली बार शासन-प्रशासन एवं कई सरकारी विभागों व गैरसरकारी संगठनों का सहयोग लेते हुए बरसाना की लठामार होली का भव्य आयोजन किया था। इसके अलावा नन्दगांव सहित मथुरा जनपद के अनेक तीर्थस्थलों पर होली से जुड़े विविध सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए गए थे। जिलाधिकारी सर्वज्ञराम मिश्र ने बताया, "अब सरकार देश- विदेश में लोकप्रिय बरसाना और नन्दगांव की होली को देश में होने वाले अंतरराष्ट्रीय स्तर के आयोजनों के बराबर दर्जे पर आयोजित कर एक नई पहचान दिलाना चाहती है। इसके लिए सरकार सभी जरूरी संसाधन जुटाने की पहल कर रही है।"

अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) सतीश कुमार त्रिपाठी ने बताया, "बरसाना की होली को न केवल पूर्ण राजकीय मेला करार देने की प्रक्रिया शुरू हो गई है, बल्कि इस संबंध में ब्रजवासियों की भावनाओं को भी समाविष्ट करने के लिए उनकी राय मांगी गई हैं। इसीलिए शासन की अपेक्षा के अनुरूप रिपोर्ट तैयार कर भेजी जा रही है।"

बरसों से चली आ रही है परंपरा 

 बरसाना की लट्ठमार होली अपने अनूठे तरीके के लिए विश्वप्रसिद्ध है। माना जाता है कि कृष्ण अपने सखाओं के साथ राधा और उनकी सखियों से होली खेलने पहुंच जाते थे। राधा तथा उनकी सखियां ग्वालों पर डंडे बरसाया करती थीं। यह धीरे-धीरे होली की परंपरा में बदल गया। उसी का परिणाम है कि आज भी इस परंपरा का निर्वहन उसी रूप में किया जा रहा है।

(यह खबर समाचार एजेंसी भाषा की है, एशियानेट हिंदी टीम ने सिर्फ हेडलाइन में बदलाव किया है।)

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