India@75: कहानी ज्योतिबा फुले की जिन्होंने तोड़ीं थीं जातिवाद की जंजीरें

भारत में ब्रिटिश शासन का समर्थन करने वालों में से कुछ ने परोक्ष रूप से भारतीय लोगों के आत्मविश्वास को जगाने का काम किया था। उनमें सबसे अविस्मरणीय नाम है महात्मा ज्योतिबा फुले का, जिन्हें भारतीय सामाजिक क्रांति का जनक भी कहा जाा है

वीडियो डेस्क। महात्मा ज्योतिबा फूले का जन्म 1827 में महाराष्ट्र के पुणे में हुआ था। वे पिछड़े जाति के माली समुदाय में पैदा हुए थे जो सब्जियों और फूलों के उत्पादक थे। ज्योतिबा ने स्कॉट मिशन स्कूल में पश्चिमी शिक्षा प्राप्त की, जिसने उनके विचारों को नया आकार दिया। सावित्री से उनकी शादी 13 साल की उम्र में हुई थी और तब वह सिर्फ 9 साल की थीं। ज्योतिबा के जीवन में महत्वपूर्ण मोड़ तब आया, जब वे अपने ब्राह्मण मित्र की शादी में शामिल हुए। ज्योतिबा को पिछड़ी जाति का होने के नाते वहां अपमान सहना पड़ा। इस अनुभव ने ज्योतिबा को जाति व्यवस्था के घोर अन्याय से अवगत करा दिया और उन्होंने इसे बदलने की ठान ली। ज्योतिबा फूले पिछड़े समुदायों के अधिकारों के लिए काम करने वालों में से एक थे। बाबा साहेब अम्बेडकर के लिए भी महात्मा फूले मार्गदर्शक थे। फुले और उनकी पत्नी सावित्रीबाई दोनों ने हीं महिला शिक्षा के क्षेत्र में काम किया था। यही महात्मा फूले थे जिन्होंने दलित शब्द का परिचय दिया। उन्होंने कई किताबें भी लिखीं। सावित्रीबाई फुले प्रसिद्ध कवियत्री थीं।

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