बीमार मां के इलाज के लिए पब्लिक टॉयलेट साफ करता है दिव्यांग, जी रहा है इतनी मुश्किल लाइफ

कुछ लोगों की जिंदगी इतनी कठिन होती है कि उसे बयां कर पाना आसान नहीं होता। लेकिन ऐसे लोग भी जीने के लिए जो संघर्ष करते हैं, वह दूसरों के लिए प्रेरक बन जाता है। मलेशिया का एक युवक जो खुद दिमाग की बीमारी से जूझ रहा है, अपनी बीमार मां के इलाज के लिए बहुत कठिन जिंदगी जी रहा है। 

Asianet News Hindi | Published : Sep 29, 2019 3:22 AM IST / Updated: Sep 29 2019, 09:02 AM IST

पुचोंग परदाना, मलेशिया। कुछ लोगों की जिंदगी इतनी कठिन होती है, जिसकी कल्पना कर पाना भी आसान नहीं होता। लेकिन ऐसे लोग भी जीने के लिए जो संघर्ष करते हैं, वह दूसरों के लिए प्रेरक बन जाता है। मलेशिया के पुचोंग परदाना में रहने वाले 22 साल के युवक मुहम्मद हेलमी फिरदौस अब्दुल हालिद की जिंदगी कुछ ऐसी ही है। यह युवक दिमाग की एक गंभीर बीमारी हाइड्रोसेफलस का शिकार है। इस बीमारी में दिमाग के कुछ हिस्से में पानी भर जाता है और उसका आकार बड़ा हो जाता है। इस बीमारी की वजह से यह युवक व्हीलचेयर पर चलने को मजबूर है। बावजूद इसके वह अपनी बीमार मां के लिए पब्लिक टॉयलेट्स साफ करने का काम करता है। उसकी मां दिल और किडनी की बीमारी से जूझ रही है। 

कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर करता है काम
अब्दुल हालिद पुचोंग परदाना में कॉन्ट्रैक्ट बेसिस पर पब्लिक टॉयलेट्स के केयरटेकर और क्लीनर का काम करता है। इसके लिए वह सुबह 5 बजे ही अपनी व्हीलचेयर पर बैठ कर बंदार किनारा एसआरटी स्टेशन तक 4 किलोमीटर की दूरी तय करता है। उसका कहना है कि रास्ते में उसे टिन के जो कैन्स और स्क्रैप मेटल मिलते हैं, उन्हें भी वह उठा लेता है। इसे बेचने से उसे कुछ एक्स्ट्रा इनकम हो जाती है। वह सुबह 7.30 बजे से काम शुरू कर देता है और शाम 6 बजे तक काम में लगा रहता है। 

कई बार रास्ते में होती है परेशानी
अब्दुल हालिम का कहना है कि उसे कई बार रास्ते में बहुत परेशानी का सामना भी करना पड़ता है। उसे कई बार लूटपाट का शिकार भी होना पड़ा है। कुछ लुटेरे और सड़कों पर आवारा घूमने वाले लोग यह  सोचते हैं कि उसके टूल बैग में पैसा है और वे उस पर हमला कर देते हैं। ऐसे लोगों ने कई बार उसकी पिटाई की है। ऐसी ही एक घटना में उसका व्हीलचेयर टूट गया। अब उसे नया व्हीलचेयर खरीदना होगा, जिसके लिए उसे पैसे जुटाने हैं। 

ज्यादा नहीं होती है कमाई
इतनी मेहनत करने के बावजूद उसे ज्यादा कमाई नहीं होती। वह महीने में 10 हजार से 14 हजार रुपए तक की कमाई कर पाता है। ये सारे पैसे वह अपनी मां को दे देता है, जिससे उसकी घर की सारी जरूरतें पूरी होती हैं और मां का इलाज भी होता है। उसे सोशल वेलफेयर डिपार्टमेंट से करीब 6 हजार रुपए भी मदद के रूप में मिलते हैं, लेकिन यह काफी नहीं है। उसका कहना है कि कई बार जब उसके पास पैसे नहीं होते तो वह एक टाइम ही खाना खा कर गुजारा करता है। 

बीमार हालत में भी उसकी मां करती थी काम
उसकी मां बीमार होने के बावजूद स्नैक्स और मिठाइयां बेचकर कमाई करने की कोशिश करती थी, लेकिन बीमारी बढ़ जाने के बाद उसे यह काम बंद करना पड़ा। मुहम्मद हालिम का छोटा भाई भी ऑटिज्म से पीड़ित है और कोई काम नहीं कर सकता है। मुहम्मद को अपने भाई की भी देखरेख करनी पड़ती है। 

इतनी कठिनाइयों के बावजूद नहीं मानी हार
इतनी कठिनाइयों के बावजूद मुहम्मद ने हार नहीं मानी और संघर्ष में लगा है। वह किसी से मदद नहीं लेना चाहता। उसकी मां कहती है कि उसका बेटा कभी भी उसे अपनी परेशानियों के बारे में नहीं बताता। जब कई बार चोरों ने उससे पैसा लूट भी लिया, तब भी उसने उससे इसके बारे में नहीं कहा।      

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