Pangong झील पर पुल निर्माण पर चीन की सफाई, क्षेत्रीय संप्रभुता की रक्षा है मकसद

पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील पर चीन द्वारा पुल बनाए जाने पर भारत द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद चीन ने सफाई दी है। चीन ने कहा है कि इसका उद्देश्य चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता और सुरक्षा के साथ-साथ चीन-भारत सीमा पर शांति और स्थिरता की रक्षा करना है। 

Asianet News Hindi | Published : Jan 7, 2022 8:30 PM IST

बीजिंग। पूर्वी लद्दाख के पैंगोंग झील (Pangong Lake) पर चीन द्वारा पुल बनाए जाने पर भारत द्वारा आपत्ति जताए जाने के बाद चीन ने सफाई दी है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने शुक्रवार को कहा कि चीन के बुनियादी ढांचे का निर्माण पूरी तरह से उसकी संप्रभुता के भीतर आता है। इसका उद्देश्य चीन की क्षेत्रीय संप्रभुता और सुरक्षा के साथ-साथ चीन-भारत सीमा पर शांति और स्थिरता की रक्षा करना है। 

दरअसल, पैंगोंग झील पर पुल बनाए जाने से संबंध में गुरुवार को भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने गुरुवार को कहा था कि भारत सरकार ऐसे स्थानों पर करीब से नजर बनाए हुए है। इस पुल का निर्माण ऐसे इलाके में किया जा रहा है जिस पर चीन का करीब 60 साल से गैरकानूनी कब्जा है। सरकार देश के सुरक्षा हितों की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए जरूरी कदम उठा रही है।

पैंगोंग त्सो लेक पर पुल बना रहा चीन
बता दें कि चीन पैंगोंग त्सो लेक पर पुल बना रहा है। चीन की सेना झील के अपने हिस्से में पुल बना रही है। दो महीने से इसका निर्माण चल रहा है। इसके बन जाने के बाद चीन की सेना झील के दोनों तरफ से पहुंचेगी। सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों से इसका खुलासा हुआ है। 

पुल पैंगोंग झील के उत्तरी और दक्षिणी किनारों को जोड़ेगा। इसके बन जाने के बाद चीन की सेना भारतीय सीमा तक काफी तेजी से पहुंच सकती है। वर्तमान में उसे यहां तक पहुंचने में करीब 200 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। पुल बन जाने से यह दूरी मात्र 40-50 किलोमीटर रह जाएगी। जिस सफर में चीन की सेना को आठ घंटे लगते हैं उस दूरी को वह 2 घंटे में तय कर लेगी।

पुल का निर्माण खुर्नाक इलाके में किया जा रहा है। यह पैंगोंग झील का सबसे संकरा और दुर्गम हिस्सा है। इसे खुर्नाक से रूदोक तक बनाया जाएगा। चीनी सेना ने पुल के पार्ट्स तैयार कर लिए हैं। इस अब सिर्फ जोड़ा जाना बाकी है। बता दें कि पैंगोंग झील 135 किलोमीटर में फैली है। इसका एक तिहाई हिस्सा भारत के लद्दाख और शेष हिस्सा तिब्बत में पड़ता है। 

 

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