
पेरिस. आतंकवाद के खिलाफ दुनिया के मंच पर बारबार मात खाने के बाद एक बार फिर पाकिस्तान को करारा झटका लगा है। लेकिन यह झटका उसके अपने ही दोस्त ने दिया है। आतंक के खिलाफ ठोस कार्रवाई न करने वाले पाकिस्तान का साथ उसके सदाबहार दोस्त चीन ने भी छोड़ दिया है। पेरिस में चल रही फाइनेंशियल एक्शन टास्क फोर्स (FATF) की मीटिंग में चीन ने भारत, अमेरिका, सऊदी अरब और यूरोपीय देशों का साथ दिया। इन सभी देशों ने एक सुर में पाकिस्तान से कहा कि उसे टेरर फंडिंग और आतंकी सरगनाओं के खिलाफ सख्त कार्रवाई करनी ही होगी।
मीडिया रिपोर्ट्स के द्वारा सामने आई जानकारी के मुताबिक आतंक के खिलाफ कार्रवाई न करने पर अब यह तय हो चुका है कि पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में ही रहेगा। इसकी औपचारिक घोषणा आज यानी गुरुवार को की जा सकती है।
चीन ने चौंकाया
पाकिस्तान को लेकर चीन का यह नया कदम दुनिया को हैरान करने वाला है। FATF की अब तक हुई हर मीटिंग में चीन ने पाकिस्तान को ग्रे लिस्ट से बाहर निकालने की मांग की थी। लेकिन चीन ने इस बार ऐसी कोई मांग ही नहीं की। ऐसा माना जा रहा है कि चीन पर अमेरिका और भारत के साथ ही यूरोप और खाड़ी देशों खासकर सऊदी अरब का दबाव था। एकमात्र तुर्की ऐसा देश था जिसने पाकिस्तान का पक्ष लिया और उसे ग्रे लिस्ट से बाहर किए जाने की वकालत की।
अब दबाव ज्यादा होगा
FTF की इस मीटिंग के बाद पाकिस्तान पर दबाव बहुत ज्यादा होगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, संगठन ने उसे 13 प्वाइंट्स का एक्शन प्लान दिया है। इसे हर हाल में जून तक पूरा करना होगा। अगली बैठक में इसकी गहन समीक्षा होगी। अगर एफएटीएफ पाकिस्तान की कार्रवाई से संतुष्ट नहीं होता तो उसका ब्लैक लिस्ट होना लगभग तय हो जाएगा। पाकिस्तान को अपने यहां मौजूद आतंकी सरगनाओं पर भी सख्त और पारदर्शी कार्रवाई करनी होगी।
जून में फिर होगी समीक्षा
एफएटीएफ की अगली बैठक जून में होगी। इसमें पाकिस्तान सरकार द्वारा टेरर फंडिंग, मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकी सरगनाओं के खिलाफ की गई कार्रवाई की गहन समीक्षा होगी। यानी अगले चार महीने पाकिस्तान एफएटीएफ की ग्रे लिस्ट में ही बना रहेगा। अगर इस दौरान उसने एफएटीएफ की मांगों को पूरा नहीं किया तो वो ग्रे से ब्लैक लिस्ट में आ जाएगा।
मोदी और जिनपिंग के बीच बनी थी सहमति
पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत दौरे पर आए थे। महाबलीपुरम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी बातचीत हुई थी। मुलाकात के बाद जारी साझा बयान में कहा गया था- आतंकवाद इस क्षेत्र के लिए सामूहिक खतरा है। इसके खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए। भारत और चीन एशिया के दो बड़े देश हैं। भारत ने हर मंच से आतंकवाद के खिलाफ आवाज बुलंद की है। पिछले साल यूएन में सिर्फ मलेशिया और तुर्की ने पाकिस्तान का कश्मीर मुद्दे पर समर्थन किया था।
क्या है एफएटीएफ?
एफएटीएफ टेरर फंडिंग पर नजर रखने वाली संस्था है। दूसरे शब्दों में कहें तो यह आतंकियों को 'पालने-पोसने' के लिए पैसा मुहैया कराने वालों पर नजर रखने वाली एजेंसी है। कोई भी देश इसकी 'ग्रे लिस्ट' में नहीं आना चाहता है। एफएटीएफ का गठन 1989 में हुआ था. कई देश इसके सदस्य हैं. अंतराराष्ट्रीय वित्तीय व्यवस्था को साफ-सुथरा बनाए रखना इस संस्थान का मकसद है। यह अपने सदस्य देशों को टेरर फाइनेंसिंग और मनी लॉन्ड्रिंग जैसी गतिविधियों में शामिल होने से रोकता है।
क्या होती है मुश्किलें?
अगर पाकिस्तान एफएटीएफ की 'ग्रे लिस्ट' में बना रहता है या उसे 'डार्क ग्रे' लिस्ट में डाल दिया जाता है तो उसके लिए अंतराष्ट्रीय मुद्राकोष (IMF), विश्व बैंक और यूरोपीय संघ से आर्थिक मदद हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। इससे उसकी स्थिति और खराब हो जाएगी।
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