कमला के बाद अमेरिकी चुनाव में फिर से 'भारतीयों की आवभगत', 100 साल पहले नौकरों से भी बदतर थे हालात

याद ही होगा कि पूर्व प्रेसिडेंट बराक ओबामा को भारतीयों के बीच किस तरह प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने हनुमान के जरिए भारतीय मूल के हिंदुओं, अफ्रीकन के पिता के धर्म से अमेरिकी मुसलमानों और अपने रूप-रंग से ब्लैक अमेरिकन्स को रिझाया था। 

Asianet News Hindi | Published : Aug 17, 2020 11:27 AM IST / Updated: Aug 18 2020, 11:04 AM IST

नई दिल्ली। अमेरिका के प्रेसिडेंशियल चुनाव में एक बार फिर "भारत" बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है। डोनाल्ड ट्रम्प के प्रतिद्वंद्वी डेमोक्रेटिक कैंडिडेट जो बाइडन ने कमला हैरिस को आगे कर मामले को दिलचस्प बना दिया है। दरअसल, बाइडन ने हाल ही में वाइस प्रेसिडेंट कैंडिडेट के रूप में सीनेटर कमला हैरिस के नाम की घोषणा की थी। इसके बाद भारतीयों के बीच अमेरिकी चुनाव को लेकर दिलचस्पी बढ़ गई है। कमला की मां भारतीय मूल की हैं और उनके पिता जमैका से हैं। हालांकि बचपन में ही उनके माता-पिता अलग हो गए थे। 

अमेरिकन चुनाव में ब्लैक नागरिकों के साथ भारतीयों की बड़ी है। और इसकी वजह डोनाल्ड ट्रम्प के प्रेसिडेंट बनने से पहले के कुछ सालों में वहां एनआरआई (अप्रवासी भारतीयों) की संख्या में बढ़ोतरी है। खासकर पिछले 20 साल में ये संख्या बहुत ज्यादा बढ़ी है। न्यूयॉर्क, शिकागो जैसे कई मेट्रोपोलिटिन एरिया हैं जहां भारतीय मूल के लोग चुनाव को प्रभावित कर सकते हैं। यही वजह है कि पिछले 20 सालों के दौरान हुए प्रेसिडेंशियल चुनावों में उम्मीदवारों ने कई मर्तबा भारतीय प्रतीकों को भुनाने की कोशिश की। इस बीच वहां की राजनीति में भारतीय मूल के नेताओं का दखल भी बढ़ा। 

 

याद होंगे हनुमान भक्त बराक 
याद ही होगा कि पूर्व प्रेसिडेंट बराक ओबामा को भारतीयों के बीच किस तरह प्रस्तुत किया गया था। उन्होंने हनुमान के जरिए भारतीय मूल के हिंदुओं, अफ्रीकन के पिता के धर्म से अमेरिकी मुसलमानों और अपने रूप-रंग से ब्लैक अमेरिकन्स को रिझाया था। वो इसी ताकत पर दो बार अमेरिका के प्रेसिडेंट भी बने। उनसे पहले बिल क्लिंटन और उनके बाद डोनाल्ड ट्रम्प ने भी चुनाव में भारतीय प्रतीकों का इस्तेमाल किया। ट्रम्प अभी भी कोशिश कर रहे हैं। अब कमला हैरिस के जरिए जो बाइडन भी ट्रम्प की बाजी पलटने की कोशिश में हैं। 

कमला में कितना बचा है भारत? 
कमला का अतीत चुनाव में डेमोक्रेट को कितना फायदा पहुंचाएगा यह देखने वाली बात होगी, मगर उससे पहले अमेरिकी भारतवंशियों में कश्मीर जैसे भावुक मसलों के बहाने यह बहस भी शुरू हो चुकी है कि डेमोक्रेट कैंडिडेट में अब कितना भारत कितना बचा है? वैसे कमला की उम्मीदवारी से 100-125 साल पहले तक अमेरिका में मामूली मजदूर की हैसियत रखने वाले अमेरिकी भारतीय पिछले तीस सालों के दौरान कारोबार, तकनीकी, हेल्थ, टेक्नोलॉजी, अकादमिक क्षेत्र में ताकतवर बने हैं। चाहे शिक्षा रहन-सहन का स्तर हो या औसत आयु अमेरिका की प्रवासी आबादी में भारतीय कई मायनों में महत्वपूर्ण सबसे आगे और अलग नजर आते हैं। अलग-अलग क्षेत्रों में भारतीय मूल की हस्तियों की मौजूदगी इस बात का सबूत भी है। 

ईस्ट इंडिया कंपनी से अमेरिका पहुंचे भारतीय 
भातीय मूल के लोग आज के अमेरिका में जिस तरह से नजर आते है, पहले ऐसा नहीं था। एक वक्त में दूसरे ब्लैक की तरह ही वहां भारतीयों की हालत बहुत खस्ता थी। 1700 के बाद ईस्ट इंडिया कंपनी के जरिए अमेरिकन कॉलोनियों में भारतीयों के पहुंचने की शुरुआत हुई थी। कंपनी के जरिए ही दुनिया के कुछ और देशों में भी भारतीय कृषि मजदूर या दूसरे "लो स्किल्ड जॉब" के लिए पहुंचे थे। लेकिन अफ्रीका और ब्रिटेन की अपेक्षा अमेरिका में उनकी संख्या मामूली थी। 1900 पहुंचते-पहुंचते भारतीयों की सामाजिक-राजनीतिक हालत तो नहीं सुधरी, लेकिन संख्या जरूर बढ़ने लगी। 1960 से 1990 के बीच गति बढ़ी और पिछले 20 साल में तो भारतीयों की संख्या दोगुनी से ज्यादा बढ़ गई है। नीचे फोटो में देख सकते हैं। 

 

नागरिकता पाने वाले पहले भारतीय 
1900 में कैलिफोर्निया में 2000 से ज्यादा भारतीय सिख रहने लगे थे। मगर क़ानून की वजह से दूसरे ब्लैक लोगों की तरह भारतीयों को भी नागरिक का दर्जा नहीं मिलता था। भिकाजी बालसारा पहले ज्ञात भारतीय हैं जिन्हें अमेरिकी में नागरिकता मिली। मजेदार यह है कि सिर्फ पारसी होने की वजह से उन्हें "फ्री व्हाइट पर्सन" माना गया था। 1923 तक सिर्फ 100 भारतीयों को वहां नागरिक अधिकार मिले थे। जिन्हें फ्री व्हाइट पर्सन नहीं माना गया था, उनके पास कानूनी अधिकार नहीं थे, रिसोर्सेस में हिस्सेदारी नहीं थी और हिंसा और उनके खिलाफ हिंसा-उत्पीड़न आम बात थी। अमेरिका में बड़े पैमाने पर ब्लैक लोगों की लिंचिंग तक का इतिहास भरा पड़ा है। 

लेकिन बाद में वक्त के साथ अमेरिका विकसित होता गया और उसका नजरिया भी बदलता गया। कानूनी सुधारों के बाद ब्लैक लोगों को भी एक नागरिक के तौर पर बुनियादी हक मिले। स्थिति सुधरने के साथ भारतीय मूल की आबादी भी बढ़ती गई। 1960 तक 12 हजार प्रवासी भारतीय अमेरिका में रहने लगे थे। 

मैक्सिको के बाद सबसे ज्यादा भारतीय 
2015 की यूएस की जनगणना के मुताबिक अमेरिका में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की संख्या 2.4 मिलियन है। ये अमेरिका में रहने वाली प्रवासियों की आबादी का दूसरा सबसे बड़ा हिस्सा है। पहले नंबर पर मैक्सिकन प्रवासी हैं। कुल भारतीय प्रवासियों में करीब 1.1 मिलियन से ज्यादा के पास अमेरिकी नागरिकता है। 

दोगुनी है भारतीय प्रवासियों की औसत आय 
1960 से 1990 तक प्रवासी और नागरिक कानूनों में सुधार की वजह से भारतीयों की तादाद अमेरिका में बढ़ती गई। इस दौरान एजुकेशन और रिसर्च के लिए भी बड़े पैमाने पर भारतीय मूल के लोग वहां पहुंचे और बढ़िया मौका मिलने पर वहीं बस गए। कमला की मां श्यामला गोपालन भी उन्हीं में से एक थी। 

कुल मिलाकर भारतीय मूल के प्रवासियों ने वहां के अलग-अलग क्षेत्रो में मिले मौके को जमकर भुनाया। अगर देखें तो अमेरिका में रह रहे दुनिया के दूसरे प्रवासियों के मुक़ाबले भारतीय प्रवासियों की संपत्ति और औसत आय (107,000 अमेरिकी डॉलर) दोगुनी है। 2016 में हाई स्किल्ड H-1B अस्थायी वीजा हासिल करने वालों में भारतीय सबसे टॉप पर थे। यही वजह है कि अमेरिका दुनिया का तीसरा बड़ा डेस्टिनेशन है जहां सबसे ज्यादा भारतीय पहुंचते हैं। इससे पहले नबरों पर सऊदी अरब, कुवैत और ओमान हैं। खाड़ी देशों में लेबर फोर्स का जाना ज्यादा है जबकि सबसे ज्यादा स्किल्ड और प्रोफेशनल अमेरिका का रुख करना पसंद करते हैं।

 

वैसे नेपाल दुनिया का वो देश है जहां सबसे ज्यादा भारतीय हैं। यहां की कुल आबादी में 14.7 प्रतिशत यानी  4 मिलियन के बराबर भारतीय हैं जो भौगोलिक वजहों से हैं। ठीक उसी तरह जैसे अमेरिका में मैक्सिकन आबादी। 

ट्रम्प एडमिनिस्ट्रेशन में प्रमुख भारतीय 

मौजूदा प्रेसिडेंट डोनाल्ड ट्रम्प लगातार भारत का साथ देते रहने की बात करते आए हैं। चीन के साथ सीमा विवाद पर भी ट्रम्प प्रशासन की ओर से भारत के पक्ष में बयान दिए गए थे। इसी कड़ी में कोरोना महामारी से पहले ट्रम्प का भारत दौरा और गुजरात इवेंट भी शामिल था। अमेरिकी भारतीयों को लुभाने के लिए ट्रम्प ने अपने एडमिनिस्ट्रेशन में प्रमुखता से कई भारतीय चेहरों को जगह भी दी थी जिनके नाम और पद नीचे हैं- 

#1. निक्की हेली : यूनाइटेड नेशन में अमेरिका की एम्बेस्डर 
#2. कृष्णा आर : पेरू में अमेरिका के एम्बेस्डर 
#3. मनीष सिंह : आर्थिक मामलों में स्टेट सेक्रेटरी 
#4.नील चटर्जी : फेडरल रेगुलेटरी कमेटी में मेंबर 
#5. राज शाह: डिप्टी असिस्टेंट, प्रेसिडेंट एंड प्रिंसिपल डिप्टी प्रेस सेक्रेटरी 
#6. विशाल अमीन : इंटीलेक्चुअल प्रॉपर्टी इंफोर्समेंट कोर्डिनेटर 
#7. अजित वी पाई : चेयरमैन, द फेडरल कम्यूनिकेशन कमिशन 
#8. सीमा वर्मा : एडमिनिस्ट्रेटर, सेंटर फॉर मेडिसिन एंड मेडिकल सर्विस 

हालांकि ट्रम्प के आने के बाद अमेरिका, H-1B अस्थायी वीजा में बहुत सारे बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रहा है। जिसका सीधा-सीधा और सबसे ज्यादा असर वहां की भारतीय आबादी और भारत से जाने वाले प्रोफेशन्ल्स पर पड़ रहा है। ये देखने वाली बात होगी कमला हैरिस की मौजूदगी से भारतीय मूल के लोगों और भारत को लेकर अमेरिका के नजरिए को किस तरह प्रभावित करने वाला है? वैसे बाइडन ने भरोसा दिलाने की कोशिश की है कि अगर वो जीतने में कामयाब होते हैं तो भारत के हितों की सुरक्षा करेंगे। 

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