H-1B वीज़ा पर अपने ही घर में घिरे ट्रंप-20 राज्यों ने बताया खतरनाक-खटखटाया कोर्ट का दरवाजा

Published : Dec 13, 2025, 10:47 AM IST
h1b visa fees trump lawsuit 20 states oppose 100000 dollar policy

सार

H-1B वीज़ा पर $100,000 फीस बढ़ाने के फैसले ने अमेरिका में बवाल मचा दिया है। 20 राज्यों ने ट्रंप पर केस कर कहा-कोई भी राष्ट्रपति संविधान से ऊपर नहीं। सवाल यह है, क्या यह नीति रुकेगी या भारतीय प्रोफेशनल्स की मुश्किलें बढ़ेंगी?

H-1B Visa Fee Hike: अमेरिका का H-1B वीज़ा प्रोग्राम दुनिया भर के टॉप टैलेंट और स्किल्ड प्रोफेशनल्स के लिए एक बड़ा गेटवे माना जाता है। खासतौर पर भारतीय आईटी और टेक प्रोफेशनल्स के लिए यह वीज़ा अमेरिका में करियर बनाने का सबसे मजबूत जरिया रहा है। लेकिन अब इसी H-1B वीज़ा को लेकर अमेरिका में बड़ा कानूनी और राजनीतिक बवाल खड़ा हो गया है। डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन द्वारा H-1B वीज़ा के हर नए आवेदन पर $100,000 (करीब 83 लाख रुपये) सालाना फीस लगाने के फैसले के खिलाफ 20 अमेरिकी राज्यों ने मिलकर ट्रंप सरकार पर मुकदमा दायर किया है। राज्यों का कहना है कि यह फैसला न सिर्फ गैर-कानूनी है, बल्कि इससे ज़रूरी पब्लिक सर्विसेज़ भी खतरे में पड़ सकती हैं।

क्या है H-1B वीज़ा फीस बढ़ाने का विवाद?

ट्रंप प्रशासन ने सितंबर में ऐलान किया था कि अब किसी भी नए H-1B वीज़ा एप्लीकेशन पर $100,000 की भारी भरकम फीस ली जाएगी। सरकार का तर्क था कि इससे सिस्टम में सुधार होगा और अमेरिकी वर्कर्स को प्राथमिकता मिलेगी। लेकिन इस फैसले के सामने आते ही अमेरिका में काम कर रहे और वहां जाने की तैयारी कर रहे हजारों भारतीय प्रोफेशनल्स में डर और पैनिक फैल गया। टेक कंपनियों से लेकर हेल्थ और सरकारी सेक्टर तक, हर जगह इस फैसले को लेकर चिंता बढ़ गई।

राज्यों का आरोप: ट्रंप के पास अधिकार नहीं

इस मुकदमे की अगुवाई कैलिफ़ोर्निया के अटॉर्नी जनरल रॉब बोंटा कर रहे हैं। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि ट्रंप प्रशासन के पास इस तरह से फीस तय करने का अधिकार नहीं है। बोंटा के मुताबिक, “प्रेसिडेंट ट्रंप की $100,000 H-1B वीज़ा फीस गैर-कानूनी है और यह कैलिफ़ोर्निया के सरकारी एम्प्लॉयर्स और ज़रूरी सेवाएं देने वालों पर बेवजह का आर्थिक बोझ डालती है। इससे कई अहम सेक्टर्स में लेबर की कमी और ज्यादा बढ़ सकती है।”

 

 

“कोई भी राष्ट्रपति संविधान से ऊपर नहीं”

सैन फ्रांसिस्को में हुई एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में रॉब बोंटा ने बेहद सख्त लहजे में कहा, “कोई भी प्रेसिडेंशियल एडमिनिस्ट्रेशन इमिग्रेशन कानून को दोबारा नहीं लिख सकता। कोई भी राष्ट्रपति कांग्रेस को नजरअंदाज नहीं कर सकता, संविधान को इग्नोर नहीं कर सकता और कानून से ऊपर नहीं हो सकता।” उनका कहना है कि कैलिफ़ोर्निया दुनिया की चौथी सबसे बड़ी इकॉनमी है और यहां की ग्रोथ में दुनिया भर से आने वाले स्किल्ड प्रोफेशनल्स की बड़ी भूमिका रही है।

कौन-कौन से राज्य ट्रंप के खिलाफ खड़े?

इस केस में कैलिफ़ोर्निया के साथ-साथ न्यूयॉर्क, मैसाचुसेट्स, इलिनोइस, न्यू जर्सी और वाशिंगटन जैसे बड़े राज्य शामिल हैं। खास बात यह है कि इन सभी राज्यों का प्रतिनिधित्व डेमोक्रेटिक अटॉर्नी जनरल कर रहे हैं। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, यह ट्रंप प्रशासन की वीज़ा फीस बढ़ोतरी को चुनौती देने वाला तीसरा बड़ा मुकदमा है।

ट्रंप प्रशासन का पलटवार

व्हाइट हाउस ने इन आरोपों को खारिज किया है। स्पोक्सपर्सन टेलर रोजर्स ने कहा कि H-1B फीस पूरी तरह कानूनी है और यह प्रोग्राम में सुधार की दिशा में जरूरी कदम है। उनके मुताबिक, “प्रेसिडेंट ट्रंप ने अमेरिकी वर्कर्स को पहले रखने का वादा किया था। H-1B वीज़ा पर यह फैसला कंपनियों को सिस्टम का गलत इस्तेमाल करने से रोकता है और अमेरिकी कर्मचारियों की सैलरी बचाता है।”

H-1B वीज़ा और भारतीय प्रोफेशनल्स की अहम भूमिका

H-1B वीज़ा लंबे समय से भारतीय प्रोफेशनल्स के लिए अमेरिका में काम करने का सबसे बड़ा जरिया रहा है। पहले यह वीज़ा लॉटरी सिस्टम के जरिए दिया जाता था। इस साल Amazon H-1B वीज़ा पाने वाली सबसे बड़ी कंपनी रही, जिसे 10,000 से ज्यादा वीज़ा मिले। इसके बाद TCS, Microsoft, Apple और Google जैसी कंपनियों का नंबर आता है। जियोग्राफिक तौर पर कैलिफ़ोर्निया में H-1B वर्कर्स की संख्या सबसे ज्यादा है।

 

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