बेटे से पहले बाप ने भी भारत के साथ बिगाड़े थे कनाडा के संबंध, जानें क्यों हैं ट्रूडो के भारत के साथ कठिन रिश्ते?

कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो (Justin Trudeau) ने दशकों से चले आ रहे भारत कनाडा संबंध को सबसे खराब स्थिति तक पहुंचा दिया है। इससे पहले उनके पिता पियरे इलियट ट्रूडो ने भी भारत के साथ कनाडा के संबंध को बिगाड़ दिया था।

 

नई दिल्ली। खालिस्तानी आतंकी हरदीप सिंह निज्जर (Khalistani terrorist Hardeep Singh Nijjar) की हत्या में भारतीय एजेंटों के हाथ होने का आरोप लगाकर कनाडा के प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो ने भारत के साथ संबंध को सबसे निचले स्तर तक पहुंचा दिया है। इससे पहले उनके पिता पियरे इलियट ट्रूडो ने भारत कनाडा संबंध को नुकसान पहुंचाया था। खालिस्तानियों को समर्थन के चलते ट्रूडो के भारत के साथ कठिन रिश्ते रहे हैं।

पियरे इलियट ट्रूडो कनाडा के 15वें प्रधानमंत्री बने थे। बात 70 के दशक की है। जनवरी 1971 में पियरे ट्रूडो पांच दिन की यात्रा पर भारत आए थे। उन्होंने भारत सरकार के बार-बार कहने पर भी खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। 1974 में भारत ने अपना पहला परमाणु परीक्षण किया तो उन्होंने भारत के साथ सहयोग समाप्त कर दिया था।

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भारत के न्यूक्लियर टेस्ट से हिल गए गए पियरे ट्रूडो

कनाडा ड्यूटेरियम यूरेनियम (CANDU) रिएक्टर ने परमाणु ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए असंवर्धित यूरेनियम के उपयोग की अनुमति दी थी। यह भारत जैसे विकासशील देशों के लिए फायदेमंद था, जिनके पास यूरेनियम को संवर्धित करने की सुविधाएं नहीं थीं। असंवर्धित यूरेनियम ने प्लूटोनियम तैयार करने और उससे परमाणु हथियार बनाने का रास्ता मिला।

अमेरिका और कनाडा ने सस्ती परमाणु ऊर्जा के लिए भारत के नागरिक परमाणु कार्यक्रम पर सहयोग किया। इसके तहत जुलाई 1960 में कनाडा के सहयोग और होमी जहांगीर भाभा के नेतृत्व में CIRUS (Canadian-Indian Reactor, US) लगा। कनाडा के पीएम पियरे ट्रूडो ने कहा था कि यह प्रोग्राम शांतिपूर्ण उद्देश्य के लिए है अगर भारत ने न्यूक्लियर टेस्ट किया तो कनाडा परमाणु उर्जा के क्षेत्र में सहयोग खत्म कर देगा।

प्लूटोनियम का इस्तेमाल कर किया गया था न्यूक्लियर टेस्ट

स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्च पेपर के अनुसार 1974 में भारत ने CIRUS रिएक्टर से मिले प्लूटोनियम का इस्तेमाल कर पोखरण में न्यूक्लियर टेस्ट किया। भारत ने कहा कि यह एक "शांतिपूर्ण परमाणु विस्फोट" था। इसने कनाडा के साथ समझौते की शर्तों का उल्लंघन नहीं किया, लेकिन कनाडा ने भारत के परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम के लिए सभी समर्थन वापस ले लिया। कनाडा ने भारत में एक अन्य रिएक्टर पर काम कर रहे कनाडाई अधिकारियों को वापस बुला लिया।

फरवरी 1972 में अमेरिकी विदेश विभाग की एक रिपोर्ट (जिसे 2005 में डी-क्लासिफाइड किया गया था) में बताया गया कि कनाडा और अमेरिकी समझौतों की शर्तें स्पष्ट रूप से "शांतिपूर्ण" परमाणु विस्फोटों के लिए रिएक्टरों के उपयोग पर रोक नहीं लगाती हैं। इसके बाद परमाणु क्षेत्र में भारत और कनाडा के संबंध बहाल होने में कई साल लग गए। 2010 में जी20 शिखर सम्मेलन के लिए उस वक्त के पीएम मनमोहन सिंह कनाडा गए थे। इस यात्रा के दौरान दोनों देशों के बीच परमाणु सहयोग समझौते पर साइन किए गए थे।

खालिस्तानी तत्वों के चलते भी बिगड़े थे भारत-कनाडा संबंध

सिर्फ पोखरण परमाणु परीक्षण के चलते भारत और कनाडा के संबंध नहीं बिगड़े थे। इसमें खालिस्तानी तत्वों का भी बड़ा हाथ था। पियरे ट्रूडो का खालिस्तानी तत्वों के खिलाफ कार्रवाई करने से इंकार करना भारत-कनाडाई संबंधों के लिए एक बड़ा झटका था। इसके चलते कनाडाई लोगों पर सबसे बड़ा आतंकवादी हमला हुआ था।

19वीं सदी के अंत से कनाडाई आबादी में सिखों का महत्वपूर्ण हिस्सा रहा है। 1970 के दशक के मध्य में इमिग्रेशन एक्ट में बदलाव के साथ उनकी संख्या तेजी से बढ़ी। कनाडा में सिख आबादी 7.7 लाख से अधिक है। यह कनाडा की कुल आबादी का करीब 2.2 फीसदी है। यह राजनीतिक रूप से प्रभावशाली समुदाय है।

1980 के दशक में भारत ने खालिस्तानी आतंकियों पर कड़ी कार्रवाई की तो बहुत से आतंकियों ने कनाडा में शरण ली थी। इन आतंकियों में से एक था तलविंदर सिंह परमार। वह 1981 में पंजाब में दो पुलिस कर्मियों की हत्या करने के बाद वह कनाडा भाग गया था।

परमार खालिस्तानी संगठन बब्बर खालसा का सदस्य था। उसने विदेशों में भारतीय मिशनों पर हमले और सांप्रदायिक हत्याओं का आह्वान किया था। कनाडा सरकार से भारत ने अनुरोध किया कि परमार को भारत को सौंप दिया जाए, लेकिन पियरे ट्रूडो की सरकार ने इस अनुरोध को ठुकरा दिया। पियरे ट्रूडो ने भारत से भेजी गई खुफिया चेतावनियों को भी अनसुना कर दिया था।

कनिष्क फ्लाइट बम धमाके में मारे गए थे 329 लोग

भारत की खुफिया एजेंसियों ने 1 जून 1985 को कनाडाई अधिकारियों को एक जरूरी संदेश भेजा था। इसमें बताया गया था कि खालिस्तानी आतंकवादियों द्वारा हवाई हमला किया जाने वाला है। इसके बचने के लिए सुरक्षा उपाए करें, लेकिन कनाडा ने इसे भी नहीं सुना।

23 जून 1985 को टोरंटो से ब्रिटेन के लंदन जा रही एयर इंडिया फ्लाइट 182 (कनिष्क) में दो सूटकेस में बम रखा गया था। इसमें हुए धमाके से विमान में सवार सभी 329 यात्रियों की मौत हो गई थी। मारे गए लोगों में से अधिकांश कनाडाई थे। कनिष्क बम विस्फोट कनाडा के इतिहास में सबसे भयानक आतंकवादी हमला है।

यह भी पढ़ें- भारतीय राजनयिक की जासूसी पर आधारित है ट्रूडो के आरोप, सबूत दिखाने की मांग पर लीक की ये जानकारी

जिस परमार को पियरे ट्रूडो ने बचाया था वह कनिष्क बमबारी का मास्टरमाइंड था। 1992 में पंजाब में पुलिस ने उनकी हत्या कर दी थी। इस साल जून में कनाडा में विभिन्न स्थानों पर परमार के सम्मान में पोस्टर देखे गए थे। कनिष्क बम विस्फोट के लिए तलविंदर सिंह परमार सहित गिरफ्तार किए गए सभी लोगों को छोड़ दिया गया। केवल एक व्यक्ति इंद्रजीत सिंह रेयात को 15 साल जेल की सजा दी गई।

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